रूस-यूक्रेन के चल रहे जंग के बीच यूक्रेन से तकरीबन 20 हजार भारतीय छात्रों को अपनी मेडिकल की पढ़ाई छोड़कर भारत लौटना पड़ा. वहां मेडिकल करने जाने वाले भारतीय छात्रों के लिए वतन वापसी इतना आसान नहीं था. अपने देश भारत लौटने वाले ज्यादातर छात्रों में कोई फर्स्ट ईयर का छात्र था तो किसी को एमबीबीएस की डिग्री बस मिलने ही वाली थी.


लेकिन अब उनके वापस लौटने के लगभग आठ महीनों के बाद भी छात्रों के सामने सिर्फ एक ही सवाल है कि उनकी पढ़ाई का आगे क्या होगा? वो सपने कैसे पूरे होंगे जो उन्होंने यूक्रेन में मेडिकल के पढ़ाई की शुरुआत से पहले देखे थे. इस बीच सवाल ये आता है कि आखिर भारत से बच्चों को मेडिकल की पढ़ाई करने दूसरे देश क्यों जाना पड़ता है. अब उन्हीं बच्चों के भविष्य को सही दिशा देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा रोडमैप तैयार किया जा रहा है. जिसमें जनसंख्या के मामले में अपर्याप्त सरकारी सीटें, निजी तौर पर चिकित्सा शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए ज्यादा फीस और तकनीकी कौशल की आवश्यकता पर जोर दिया जाएगा. 


फिक्की और केपीएमजी रिपोर्ट की एक रिपोर्ट में भारत की चिकित्सा शिक्षा को अपग्रेड करने की बात कही गई है. इस रिपोर्ट का शीर्षक 'भारत में हेल्थ केयर वर्कफोर्स को मजबूत करना: एजेंडा 2047' है. इसके तहत आने वाले 10 सालों में शिक्षा के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने और हेल्थ केयर को पसंदीदा पेशे के रूप में चुने जाने के लिए बढ़ावा देने के प्रयासों को तेज किया जाएगा. 


रिपोर्ट में कहा गया कि डब्ल्यूएचओ के अनुसार किसी भी देश को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देने के लिए प्रति 10,000 लोगों पर कम से कम 44.5 स्किल्ड स्वास्थ्य कार्यकर्ता होने चाहिए लेकिन भारत में प्रति 10,000 जनसंख्या पर केवल 33.5 कुशल स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं.  जो कि डब्ल्यूएचओ की सिफारिश से काफी कम है. इस अंतर को कम करने के लिए स्वास्थ्य सेवा कार्यबल और स्वास्थ्य शिक्षा संस्थानों की सप्लाई को बढ़ाने की जरूरत है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को बेहतर इलाज दिया जा सके.  


केपीजीएम हेल्थ केयर सेक्टर के पार्टनर और को फाउंडर ललित मिस्त्री ने कहा, 'कोरोना समेत कई बीमारियों को देखते और हेल्थकेयर वर्कफोर्स की जरूरतों को पूरा करने के लिए मेडिकल और नर्सिंग शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव की जरूरत है. लोगों को बेहतर इलाज देने के लिए मेडिकल और नर्सिंग छात्र को बेहतर स्किल और नए तकनीकों को अपनाने की जरूरत है ताकि वह हर तरह की परिस्थिति में अपने पेशेंट का इलाज कर सके.'


भारत में 612 मेडिकल कॉलेज


रिपोर्ट के अनुसार भारत में फिलहाल 612 मेडिकल कॉलेज हैं. जिसमें से 321 सरकारी और 291 निजी कॉलेज हैं. पिछले एक दशक में मेडिकल कॉलेजों में 83 फीसदी और यूजी सीटों में 121 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. इसमें सरकारी मेडिकल कॉलेजों की संख्या में निजी मेडिकल कॉलेजों में 61 फीसदी की वृद्धि हुई है. साल 2011-12 से 2021-22 तक मेडिकल कॉलेजों की औसत वार्षिक वृद्धि 5.9 प्रतिशत हुई, जो कि पिछले पांच दशकों में सबसे अधिक है. इन 10 सालों में तमिलनाडु (11.4%) और उत्तर प्रदेश (10.9%) में सरकारी और निजी दोनों यूजी मेडिकल कॉलेजों की हिस्सेदारी सबसे अधिक है, इसके बाद कर्नाटक (10.3%) और महाराष्ट्र (10.1%) का स्थान है. 


ग्रामीण क्षेत्रों में हेल्थकेयर वर्कफोर्स बनाने का समय


फिक्की और केपीएमजी की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के दो सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों - उत्तर प्रदेश और बिहार में प्रति 10,000 जनसंख्या पर क्रमशः 3.6 और 3.7 डॉक्टर हैं, जो के अन्य राज्यों की तुलना में बेहद कम है. देश की एक चौथाई आबादी वाले दोनों राज्यों में सिर्फ 87 मेडिकल कॉलेज हैं जो केवल 11,468 एमबीबीएस सीटों की पेशकश करते हैं.


फोर्टिस हेल्थकेयर के ग्रुप हेड (मेडिकल स्ट्रैटेजी एंड ऑपरेशंस) डॉ विष्णु पाणिग्रही ने कहा कि यह सही समय है, सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में हेल्थकेयर वर्कफोर्स के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये. उन्होंने कहा, " ग्रामीण क्षेत्रों में एक स्वास्थ्य सेवा कार्यबल बनाने का यह सबसे सही समय यही है. जिला अस्पतालों से जुड़े जिला मुख्यालयों में नर्सिंग स्कूल और तकनीशियन प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए जाने चाहिए. इसमें महिलाओं की भूमिका को बढ़ाने की कोशिश की जानी चाहिए." हालांकि इन चुनौतियों से निपटने के लिए, सरकार ने राज्य स्तर पर चिकित्सा शिक्षा में सुधार और चिकित्सा सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए कई पहल किए हैं 


मेडिकल सीटों के आवंटन में पारदर्शिता


मेडिकल शिक्षा में पारदर्शिता लाने के लिए सरकार ने डिस्क्रिशनरी कोटा हटा दिया है. इसके अलावा सरकार निजी मेडिकल कॉलेजों में 50 प्रतिशत सीटों के लिए फीस संरचना का निर्धारण करेगी. फिक्की-केपीएमजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि इन उपायों से यह सुनिश्चित होगा कि कुल मेडिकल सीटों का 75 प्रतिशत रेगुलवेटेड फीस पर उपलब्ध हो.


इसके अलावा, ये कॉलेज एक बेहतर डॉक्टर दे पाए इसके लिए सरकार ने नेशनल एग्जिट टेस्ट (NEXT) नामक एक सामान्य अंतिम वर्ष की परीक्षा का भी प्रस्ताव रखा है, जो दवा का अभ्यास करने के लिए एक लाइसेंसधारी परीक्षा होगी और पीजी पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए एक मानदंड के रूप में भी काम करेगी. 


नए मेडिकल कॉलेजों के लिए वित्तीय प्रोत्साहन


157 नए यूजी मेडिकल कॉलेज स्थापित करने के लिए एक नई योजना 'प्रधान मंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना' शुरू की गई है, जो देश के कम सेवा वाले क्षेत्रों में मौजूदा जिला और रेफरल अस्पतालों से जुड़ी होंगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि इस योजना से देश में 15,700 एमबीबीएस सीटों को जोड़ने का अनुमान है. 


पीजी कार्यक्रमों और सीटों का विस्तार


सरकार ने प्रति विभाग पीजी सीटों को बढ़ाने का फैसला किया है. अधिकतम पांच सीटें और एनेस्थिसियोलॉजी, फोरेंसिक मेडिसिन और रेडियोथेरेपी के लिए छह सीटें बढ़ाई जाएगी. इसके अलावा, नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन (NBE) ने एनेस्थीसिया, प्रसूति रोग विशेषज्ञ / स्त्री रोग विशेषज्ञ, बाल रोग, पारिवारिक चिकित्सा, नेत्र विज्ञान, ईएनटी, रेडियो निदान, तपेदिक और छाती रोग जैसे आठ विषयों में दो साल का पोस्ट-एमबीबीएस डिप्लोमा पाठ्यक्रम शुरू किया है. 


'ग्रुप एक्रिडिएशन' कार्यक्रम का शुभारंभ


इस कार्यक्रम से 2025 में सार्वजनिक और निजी दोनों संस्थानों को एक साथ लाकर 25,000 छात्रों को पीजी मेडिकल पाठ्यक्रम प्रदान करने की उम्मीद है. इसके माध्यम से एक डॉक्टर कार्यक्रम के तहत सार्वजनिक और निजी संस्थानों में एक्सपोजर प्राप्त कर सकता है. 


आयुष पर ध्यान 


सरकार आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा और होम्योपैथी (आयुष) की पारंपरिक प्रणालियों के साथ आधुनिक चिकित्सा को एकीकृत करने की भी योजना बना रही है. फिक्की के रिपोर्ट में अमृता इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च सेंटर के चिकित्सा निदेशक डॉ संजीव सिंह ने इस बात पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत में चिकित्सा शिक्षा "कौशल सेट और दक्षताओं" के निर्माण के बजाय "मात्रा" के बारे में अधिक है. 


"ब्रिज कोर्स वास्तव में विशेष स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के अंतर को भरने में मदद कर सकते हैं. भारत में तीन साल और विदेश में दो साल जैसे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भी होने चाहिए ताकि छात्र अलग अलग विश्वविद्यालयों और कॉलेजों से सीख सकें."


क्यों जाते हैं छात्र यूक्रेन


मेडिकल के छात्रों का यूक्रेन जाकर पढ़ाई करने की सबसे बड़ी वजह है कि भारत में निजी कॉलेजों में छात्रों को लाखों रुपये खर्च करने पड़ते हैं. यूक्रेन का रास्ता बताने वाली असली कहानी शुरू होती है नीट एग्जाम का परिणाम आने के बाद. सरकारी कॉलेज में एडमिशन से वंचित रह जानेवालों को एमबीबीएस सीट के लिए बोली लगाने का ही रास्ता बचता है.


निजी मेडिकल कॉलेज में 50 लाख से 1 करोड़ तक की डोनेशन ली जाती है. अब बात करते हैं यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई के खर्च की. यूक्रेन में 6 साल के कोर्स में 3 लाख रुपये सालाना फीस के साथ रहने खाने में 3 लाख रुपये और लगते हैं. यानी यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने पर 30-35 लाख खर्च होते हैं. इसलिए बच्चे यूक्रेन का रुख करते हैं.


यूक्रेन की चार यूनिवर्सिटी में पूरी दुनिया से बच्चे मेडिकल की पढ़ाई करने आते हैं. यूक्रेन और भारत में पढ़ाई करने में सिर्फ इतना अंतर आता है कि विदेश से पढ़कर आने वाले बच्चों को फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएशन एग्जाम (FMGE) क्लीयर करना पड़ता है. 300 अंकों की परीक्षा को 150 अंक लेकर पास की जा सकती है. देश के स्वास्थ्य मंत्री ने संसद में जानकारी दी थी कि भारत में डॉक्टर-रोगी अनुपात 1: 834 है. ये अनुपात विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिश से बेहतर है. डब्ल्यूएचओ की सिफारिश के अनुसार डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात 1:1000 है. इसका मतलब है कि देश मे 834 मरीजों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है. संख्या डब्ल्यूएचओ के हिसाब से भले ठीक है लेकिन विकसित देशों के मुकाबले बेहद कम है.


ये भी पढ़ें:


क्या है असम का 'मियां म्यूजियम' विवाद, क्यों खुलते ही सील हो गया?