ओडिशा: एम्स में हिंदी के फरमान पर बवाल, कांग्रेस ने भी उठाया सवाल
भुवनेश्वर एम्स में हिंदी के फरमान पर बवाल खड़ा हो गया है. कर्मचारियों ने एम्स के सर्कुलर को भ्रमित करनेवाला बताया है. वहीं, मौके की ताक में बैठी कांग्रेस को भी मुद्दा मिल गया. प्रदेश कांग्रेस ने मोदी सरकार की नीयत पर सवाल उठाते हुए हिंदी के बजाय उड़िया भाषा के बढ़ावा देने की मांग की.
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ओडिशा: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की भुवनेश्वर इकाई में हिंदी भाषा के फरमान पर विवाद खड़ा हो गया है. विरोध में कांग्रेस ने मोर्चा खोलते हुए राज्य सरकार से दखल की मांग की है. कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर हिंदी को जबरन थोपने का आरोप लगाया है. दरअसल हिंदी दिवस के मौके पर एम्स के उप निदेशक (प्रशासन) की तरफ से सर्कुलर जारी किया गया था. सर्कुलर में एम्स कर्मचारियों को हिंदी में हस्ताक्षर करने और दस्तावेज तैयार का आदेश दिया गया.
हिंदी थोपे जाने का विरोध तेज
उप निदेशक (प्रशासन) पीके राय की तरफ से जारी सर्कुलर के मुताबिक, कर्मचारियों को आदेश दिया जाता है कि दस्तावेज तैयार करने, फाइल की नोटिंग्स और ड्राफ्टिंग में ज्यादा से ज्यादा हिंदी भाषा का इस्तेमाल करें. यहां तक कि अगर जवाब भी देना है तो हिंदी में लिखा जाए. एम्स की प्रशासनिक बैठक में होनेवाली परिचर्चा और बहस भी हिंदी में होगी. एम्स का आदेश जाकी होते ही कर्मचारियों ने विरोध शुरू कर दिया. उन्होंने इसे मनमाना फैसला करार दिया. साथ ही गैर हिंदी भाषियों पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया. उनका कहना है कि जिनको हिंदी नहीं आती उन्हें हिंदी सीखना होगा. एम्स के एक कर्मचारी ने बताया कि चिट्ठी, इलाज की पर्ची को अंग्रेजी में लिखा जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि बोलचाल की भाषा उड़िया है. उन्होंने कहा कि अब उन्हें हिंदी में आवेदन पर हस्ताक्षर करने हैं. ऐसे में ये फरमान बहुत ही भ्रमित करनेवाला है.
कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर बोला हमला
एम्स कर्मियों के विरोध में विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी कूद पड़ी. प्रदेश अध्यक्ष निरंजन पटनायक ने ट्वीट कर फरमान को गैर हिंदुओं के ऊपर हिंदी थोपे जानेवाला कदम बताया. निरंजन पटनायक ने कहा, "ओडिशा कांग्रेस ऐसा नहीं होने देगी. मोदी सरकार को हिंदी के प्रति उग्रता खत्म करनी चाहिए. हिंदी के बजाय ओडिशा भाषा को बढ़ावा देना चाहिए."
Modi govt must brush off its Hindi-chauvinist mindset and should promote #Odia language, which has been deliberately neglected at the national level despite being a classical language. (2/2)
— Niranjan Patnaik (@NPatnaikOdisha) February 21, 2020
हिंदी के जबरदस्ती थोपे जाने पर कांग्रेस सांसद सप्तगिरी उलेएका ने भी केंद्र सरकार पर निशाना साधा. विरोध बढ़ता देख पीके राय ने सफाई दी, "सर्कुलर पार्लियामेंट की स्टैंडिंग कमेटी की नाराजगी के बाद जारी किया गया था. स्टैंडिंग कमेटी ने एम्स में सरकारी काम में हिंदी भाषा के इस्तेमाल ना करने पर एतराज किया था."
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