(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
24 साल पहले उस दिन कांग्रेस कार्यालय में पार्टी अध्यक्ष सीताराम केसरी के साथ क्या हुआ था?
करीब 24 साल बाद इस बात की चर्चा है कि कांग्रेस का अध्यक्ष इस बार शायद गांधी परिवार से नहीं होगा. इससे पहले Sitaram Kesri ही ऐसे नेता थे जो इस पद को संभाल चुके हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष पद की कुर्सी पर राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत के नाम की चर्चा हो रही है. माना जा रहा है कि कई नामों पर चर्चा होने के बाद मौजूदा पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अशोक गहलोत से बात की है. इसके बाद वह गुरुवार को मेडिकल जांच के लिए विदेश रवाना हो गई हैं.
अगर अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष बनते हैं तो 24 साल बाद गांधी परिवार से इतर पार्टी की कमान किसी नेता के हाथ होगी. इससे पहले सीताराम केसरी के पास कांग्रेस की कमान थी जो गांधी परिवार से नहीं थे.
बिहार से आने वाले सीताराम केसरी साल 1996-1998 तक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं. वो पहले कांग्रेस के कोषाध्यक्ष थे और उनके बारे में एक जुमला बहुत मशहूर था, 'ना खाता ना बही , जो केसरी कहे वही सही'. हालांकि आजादी के बाद कई ऐसे नेता कांग्रेस की कमान संभाल चुके हैं जिनका रिश्ता गांधी परिवार से नहीं था.
लेकिन सीताराम केसरी का कार्यकाल एक बड़े ही नाटकीय घटनाक्रम के बाद खत्म हुआ था. दरअसल यह वह दौर था जब सोनिया गांधी राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय हो चुकी थीं. यह साल 1998 का था. जब अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में बीजेपी की लोकप्रियता बढ़ रही थी और कांग्रेस का खराब दौर चल रहा था.
लेकिन इससे पहले का घटनाक्रम कांग्रेस के इतिहास का अहम मोड़ था. साल 1996 में पीवी नरसिम्हा राव की अगुवाई में चल रही कांग्रेस लोकसभा चुनाव हार गई थी. बीजेपी को 161 और कांग्रेस को 140 सीटें मिली थीं.
इसके बाद साल 1997 में सोनिया गांधी राजनीति में आने और कांग्रेस के लिए प्रचार का ऐलान करती हैं. कांग्रेस के अध्यक्ष उस समय सीताराम केसरी थे. लेकिन वो पार्टी को संभालने में नाकाम साबित हो रहे थे. उसकी एक वजह अंग्रेजी न आना भी बताया जाता है.
क्योंकि वह दक्षिण के और कांग्रेस के अभिजात्य वर्ग के नेताओं से संवाद स्थापित नहीं कर पाते थे. इधर सोनिया गांधी की सक्रियता ने कांग्रेस के अंदरूनी समीकरणों को तेजी से बदलना शुरू कर दिया.
साल 1997 में...दिसंबर की गुलाबी सर्दी पूरे उत्तर भारत में छा रही थी लेकिन कांग्रेस के अंदर का राजनीतिक तापमान बढ़ता जा रहा था. इसी महीने सोनिया गांधी कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में हिस्सा लेने पहुंच गई. ये एक तरह से पार्टी में उनके शामिल होने की औपचारिकता मात्र थी.
सोनिया के राजनीति में प्रवेश की स्क्रिप्ट बिलकुल फिल्मी थी. उनकी पहली रैली तमिलनाडु में उसी जगह हुई जहां पर पूर्व प्रधानमंत्री और उनके पति राजीव गांधी की हत्या की गई थी.
कांग्रेस के अंदर सोनिया गांधी का समर्थन बढ़ता जा रहा था. लेकिन सीताराम केसरी इस परिवर्तन को स्वीकार करने को राजी नहीं थे. इसके बाद 1998 के चुनाव में कांग्रेस को 142 सीटें मिलीं. इस चुनाव में सोनिया गांधी ने 100 से ज्यादा रैलिया की थीं. कांग्रेस के कई दिग्गज चुनाव हार गए थे. पार्टी अमेठी सीट भी नहीं बचा पाई थी.
इस चुनाव में सीताराम केसरी प्रचार करने भी नहीं निकले लेकिन हार का सारा दोष उन्हीं पर मढ़ दिया गया. बताया जाता है कि पार्टी के अंदर सोनिया गांधी के खेमे का बहुमत हो चुका था.
इसके बाद कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाई गई और उसमें प्रस्ताव पास कर सीताराम केसरी से इस्तीफा मांगा गया. इस बैठक में मौजूद सीताराम केसरी नाराज होकर चले गए थे.
कुछ लोगों का दावा है कि जिस दिन सोनिया गांधी 24 अकबर रोड स्थित पार्टी कार्यालय पहुंची वहां पहले से मौजूद सीताराम केसरी को एक कमरे में बंद कर दिया गया था. ये सोनिया गांधी को इसी दिन कांग्रेस की कमान मिली थी.
वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई ने अपनी किताब ‘ए शार्ट स्टोरी ऑफ द पीपल बिहाइंड द फॉल एंड राइज ऑफ द कांग्रेस’ में भी ऐसा ही कुछ दावा किया है. उनका कहना है कि कांग्रेस कार्यालय से सीताराम केसरी को बेइज्जती करके निकाला गया था. उनको कांग्रेस से निकालने में प्रणब मुखर्जी, शरद पवार, जितेंद्र प्रसाद और एके एंटनी जैसे नेताओं का बड़ा हाथ था.