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दिल्ली में लोकसभा की सभी 7 सीटें जीतने के लिए 'आप' की नई कैबिनेट का जातीय समीकरण समझिए

सौरभ भारद्वाज को संगठन और सरकार दोनों के बीच काम करने का अनुभव है. राजधानी में ब्राह्मण वोटरों की संख्या करीब 10 फीसदी है. इसी वोट बैंक को देखते हुए कांग्रेस ने शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री बताया था

मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन के इस्तीफे के बाद अरविंद केजरीवाल ने कैबिनेट फेरबदल का फैसला किया है. केजरीवाल ने सौरभ भारद्वाज और आतिशि को कैबिनेट मंत्री बनाने की सिफारिश उप-राज्यपाल को भेजा है. 10 साल बाद केजरीवाल कैबिनेट में किसी महिला को जगह मिली है. 

कैबिनेट फेरबदल में 2024 चुनाव को भी फोकस किया गया है. आतिशि को कैबिनेट में जगह देकर आप जहां जातिगत समीकरण फिट करने की कोशिश में है, वहीं उनके सहारे पार्टी आधी आबादी में भी पैठ करना चाहती है.

2019 में जब केजरीवाल तीसरी बार कैबिनेट मंत्री बने थे, तो उन्होंने पुरानी कैबिनेट ही बरकरार रखने का फैसला किया था, लेकिन पिछले 3 साल में 3 मंत्री बदले जा चुके हैं.

आतिशि के अलावा कैबिनेट में ब्राह्मण जाति से आने वाले सौरभ भारद्वाज को भी जगह दी गई है. भारद्वाज अरविंद केजरीवाल सरकार में 2013 में भी मंत्री रह चुके हैं. दिल्ली कैबिनेट में आतिशी-सौरभ के साथ-साथ गोपाल राय, इमरान हुसैन, राज कुमार आनंद और कैलाश गहलोत हैं. 

आप ने जातिगत के अलावा मंत्रिमंडल में क्षेत्रिय समीकरण का भी ख्याल रखा है. केजरीवाल कैबिनेट में कौन से मंत्री किस समीकरण को साधने का काम करेंगे. इसे विस्तार से जानते हैं...


दिल्ली में लोकसभा की सभी 7 सीटें जीतने के लिए 'आप' की नई कैबिनेट का जातीय समीकरण समझिए

1. गोपाल राय- भूमिहार जाति से आने वाले गोपाल राय यूपी के मऊ जिले से आते हैं. राय को 2014 में कैबिनेट मंत्री बनाया गया था. आंदोलन के जरिए गोपाल राय की जमीन पर मजबूत पकड़ है. राय दिल्ली प्रदेश आप के अध्यक्ष भी हैं और पूर्वांचल के लोगों में खासे लोकप्रिय हैं. 

दिल्ली में 15 फीसदी के आसपास पूर्वांचल के वोटर्स हैं, जिनका डेढ़ दर्जन से अधिक सीटों पर दबदबा है. पिछले चुनाव में आप ने इन इलाकों में एकतरफा जीत दर्ज की थी. 

उत्तर-पूर्वी के बाबरपुर से गोपाल राय विधायक हैं. यह सीट 2015 से पहले बीजेपी का गढ़ हुआ करता था. राय ने बीजेपी के कद्दावर नेता नरेश गौड़ को इस सीट से हराया था. 

2. इमरान हुसैन- बल्लीमारान से विधायक इमरान हुसैन केजरीवाल की सरकार में खाद्य एवं उपभोक्ता विभाग के मंत्री हैं. हुसैन दिल्ली कैबिनेट में एकमात्र मुस्लिम चेहरे भी हैं. 2015 में केजरीवाल कैबिनेट में पहली बार शामिल किया गया था. हुसैन को आसिम अहमद खान की जगह पर मंत्री बनाया गया था. 

दिल्ली में मुस्लिम वोटरों की संख्या भी करीब-करीब 15 फीसदी हैं. पुरानी दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली के अधिकांश सीटों पर मुसलमान वोटर निर्णायक स्थिति में रहते हैं. हाल ही के नगर निगम चुनाव में केजरीवाल की पार्टी को मुस्लिम बहुल इलाकों में हार का सामना करना पड़ा था. 

3. राजकुमार आनंद- यूपी के अलीगढ़ में जन्मे राज कुमार आनंद को हाल ही में केजरीवाल कैबिनेट में शामिल किया गया है. उन्हें विवादित टिप्पणी करने वाले राजेंद्र पाल गौतम की जगह मंत्री बनाया गया. 

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी दलित वोटरों की आबादी करीब 17 फीसदी के आसपास है. दिल्ली में विधानसभा की 12 सीटें दलितों के लिए आरक्षित की गई है. लोकसभा की भी एक सीट रिजर्व कैटेगरी में है.

दलित वोटरों का दिल्ली विधानसभा के 20 सीटों पर सीधा दबदबा है. लोकसभा की 3 सीटों पर भी दलित वोटर ही जीत और हार तय करते हैं. यही वजह है कि अरविंद केजरीवाल ने 49 दिन की सरकार में 2 दलित राखी बिड़लान और गिरिश सोनी को मंत्री बनाया था.

हालांकि, उसके बाद कैबिनेट में सिर्फ एक दलित को जगह मिल पाई. राज कुमार आनंद के सहारे दिल्ली के दलित वोटरों को साधने की कोशिश में आप है. आनंद पश्चिमी यूपी से आकर दिल्ली में बसे वोटरों के बीच काफी पैठ रखते हैं. 

4. कैलाश गहलोत- जाट परिवार से आने वाले कैलाश गहलोत नजफगढ़ से विधायक हैं. दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में गहलोत की पकड़ मजबूत मानी जाती है. दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में 15 फीसदी मतदाता करीब एक दर्जन सीटों पर असर रखती है.

बाहरी दिल्ली की अधिकांश सीटों पर जाट मतदाताओं का भी दबदबा है. 20 फीसदी मतदाता दिल्ली में किंगमेकर की भूमिका निभाते हैं. राष्ट्रीय राजधानी में जाट वोटर इसलिए भी मायने रखते हैं क्योंकि पश्चिमी यूपी और हरियाणा के बॉर्डर इससे लगे हुए हैं.

गहलोत पर हाल ही में जेल बंद ठग सुकेश चंद्रशेखर ने पैसा लेने का आरोप लगाया था. इसके बावजूद गहलोत पर आप ने कोई कार्रवाई नहीं की. सिसोदिया और जैन के जाने के बाद माना जा रहा है कि गहलोत का कद कैबिनेट में सबसे बड़ा रहेगा.

5. सौरभ भारद्वाज- आप का ब्राह्मण चेहरा सौरभ भारद्वाज 49 दिन की सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं. भारद्वाज टीवी पर पार्टी का चेहरा भी हैं. ईवीएम हैक किया जा सकता है, इसका लाइव डेमो विधानसभा के भीतर सौरभ भारद्वाज ने ही दिया था. 

भारद्वाज अन्ना आंदोलन के वक्त से ही आप से जुड़े हुए हैं. 2013 में भारद्वाज ने बीजेपी के वरिष्ठ नेता वीके मल्होत्रा के बेटे अजय मल्होत्रा को ग्रेटर कैलाश सीट से हराया था. इसके बाद वे लगातार 3 बार से विधायक हैं.

सौरभ भारद्वाज को संगठन और सरकार दोनों के बीच काम करने का अनुभव है. राजधानी में ब्राह्मण वोटरों की संख्या करीब 10 फीसदी है. इसी वोटबैंक को देखते हुए कांग्रेस ने शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री बताया था, लेकिन शीला की सरकार जाने के बाद ब्राह्मण वोटर बीजेपी की ओर मूव कर गए.

भारद्वाज को कैबिनेट में शामिल कर आप इन वोट बैंक को अपनी ओर खिंचने की कोशिश करती दिख रही है.

6. आतिशि राजपूत- दिल्ली में राजपूत वोटर्स सिर्फ 1 फीसदी है, इसके बावजूद केजरीवाल कैबिनेट में राजपूत मंत्रियों का दबदबा कायम रहता है. 2015 में केजरीवाल ने सिसोदिया के अलावा जितेंद्र तोमर को भी राजपूत कोटा से मंत्री बनाया था. 

अब जबकि सिसोदिया और तोमर कैबिनेट में नहीं है तो इनकी भरपाई का जिम्मा आतिशि को दी गई है. राजपूत बिरादरी से आने वाली आतिशि कालकाजी सीट से विधायक हैं. 

केजरीवाल कैबिनेट को 10 साल बाद आतिशि के रूप एक महिला मंत्री मिल रही है. आतिशि के जिम्मे आधी आबादी को भी साधना है. तेजतर्रार युवा नेता आतिशी की संगठन में भी मजबूत पकड़ है और सिसोदिया के करीबी मानी जाती हैं. 

कैबिनेट फेरबदल से 2024 पर नजर
दिल्ली में लोकसभा की कुल 7 सीटें हैं और सभी पर बीजेपी का कब्जा है. राष्ट्रीय पार्टी बनने के बाद आप की कोशिश अब संसद में मजबूत दावेदारी मौजूद करवाने की है.

पार्टी ने इसके लिए लंबे वक्त से तैयारी कर रही है. कैबिनेट फेरबदल पर भी 2024 का छाप साफ दिख रहा है. एमसीडी में जीतने का बाद आप का पूरा फोकस दिल्ली लोकसभा चुनाव पर है.

सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिलने के बाद दिया था इस्तीफा
शराब टेंडर घोटाले में सीबीआई की गिरफ्तारी के खिलाफ दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने सुप्रीम कोर्ट का रूख किया था. कोर्ट से इस मामले में राहत नहीं मिली. सर्वोच्च अदालत ने कहा कि आप हाईकोर्ट जाइए.

सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिलने के बाद मनीष सिसोदिया ने इस्तीफा दे दिया था. सिसोदिया के साथ ही सत्येंद्र जैन ने भी मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा भेज दिया था. मनी लॉन्ड्रिंग केस में जैन 9 महीने से जेल में बंद हैं.

सिसोदिया पर आरोप है कि उन्होंने शराब माफियाओं से पैसे लेकर पहले ही पॉलिसी लीक कर दिया था. सिसोदिया ने उस वक्त एक दिन में 3 फोन भी बदले थे. आरोप है कि सिसोदिया ने शराब टेंडर के पैसों को गोवा चुनाव में खर्च किए.

आरोप लगने के बाद दिल्ली के उप राज्यपाल ने इस केस को सीबीआई के पास भेज दिया था. सीबीआई ने केस में कई दफे सिसोदिया से पूछताछ की. उनके बैंक अकाउंट से लेकर कई लॉकरों को भी खंगाला. 

26 फरवरी को आठ घंटे की पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया था. 27 सितंबर को दिल्ली की एक अदालत ने सिसोदिया को रिमांड पर भेज दिया था. सिसोदिया इसके बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे, जहां उन्हें राहत नहीं मिली थी. 

3 पन्नों के इस्तीफे में मनीष सिसोदिया ने लिखा- मुझे डराने, धमकाने और लालच देने की सारी कोशिश जब नाकाम हो गई तब मुझे जेल भेजा गया है. मुझ पर दिल्ली के लाखों परिवार का आशीर्वाद है और मैं झुकने वाला नहीं हूं. मेरे ऊपर अभी कई और मुकदमे लिखे जाएंगे. मैं जानता हूं कि साजिशकर्ता मुझे और आपको परेशान करने के लिए ये सब कर रहे हैं. 

इस्तीफा में सिसोदिया ने आगे लिखा कि सीबीआई की ओर से लगाए गए सारे आरोप बेबुनियाद है. झूठे आरोप के तहत साजिशकर्ताओं ने सभी सीमाओं को तोड़ते हुए अब जब मुझे जेल में डाल ही दिया है, तो मैं चाहता हूं कि अपने पद से इस्तीफा दे दूं. मैं इस पत्र के माध्यम से इस्तीफा भेज रहा हूं.

8 साल में 7 मंत्री हो चुके हैं बाहर
अरविंद केजरीवाल कैबिनेट से पिछले 8 साल में 7 मंत्री बाहर हो चुके हैं. इनमें संदीप सिंह, जितेंद्र तोमर, आसिम खान, राजेंद्र पाल गौतम, कपिल मिश्रा, सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया का नाम शामिल हैं. 

इनमें से 6 मंत्रियों पर भ्रष्टाचार का आरोप लग चुका है. सिसोदिया और जैन के इस्तीफे के बाद बीजेपी ने अरविंद केजरीवाल का भी इस्तीफा मांगना शुरू कर दिया है. 

बीजेपी प्रवक्ता प्रवीण कपूर ने कहा है कि नई राजनीति चाल के तहत अरविंद केजरीवाल ने नंबर 2 और नंबर 3 को हटा दिया है, लेकिन उन्होंने खुद इस्तीफा नहीं दिया है. 

दिल्ली कांग्रेस ने भी इस मामले में आप पर जमकर निशाना साधा है. अजय माकन ने कहा कि घोटाले के पैसों का उपयोग आप ने कांग्रेस को कमजोर करने के लिए किया है. लिक्विर पॉलिसी पैसा उगाही के लिए ही लाया गया था. हमने शुरू में ही इसका विरोध किया था. 

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