कोविड-19 महामारी के कारण लगभग दो साल से बंद पड़े स्कूल दोबारा खुल गए हैं. एक तरफ जहां महामारी के बाद छात्रों के नामांकन में बढ़ोत्तरी देखी गई है वहीं यह भी देखा जा रहा है कि पढ़ने के साथ-साथ अंकगणित से लेकर मूलभूत कौशल (बेसिक स्किल्स) में बच्चे पहले से कहीं ज़्यादा पिछड़ गए हैं नतीजतन महामारी ने शिक्षा का स्तर कई साल पहले की ओर धकेल दिया है.


महामारी के बाद से शिक्षा के बिगड़े स्तर पर जारी शिक्षा स्तर पर वार्षिक रिपोर्ट (एएसईआर) 2022 के इस राष्ट्रीय स्तर पर किए जाने वाले अध्ययन से पता चलता है कि इस दौरान स्कूल बंद होने के बावजूद,  6 से 14 वर्ष के आयु वर्ग के लिए समग्र नामांकन आंकड़े पिछले 15 वर्षों से 95% से ऊपर हैं वहीं 2018 में हुए 97.2% नामांकन 2022 में बढ़कर 98.4% हो गए. 


एएसईआर 616 ग्रामीण जिलों में किया गया एक घरेलू सर्वेक्षण है और इसमें 3 से 16 वर्ष की आयु के 6.9 लाख बच्चों को शामिल किया गया है ताकि उनकी स्कूली शिक्षा की स्थिति दर्ज और उनके बुनियादी शिक्षा जैसे पढ़ने और अंकगणितीय कौशल का सही आकलन किया जा सके इस साल यह रिपोर्ट चार साल बाद लाई जा रही है और इसमें 2020 और 2021 में स्कूल बंद होने के साथ-साथ 2022 में बच्चों की स्कूल वापसी के प्रभाव को दर्ज किया गया है. 




सरकारी स्कूलों में हुए नामांकन  में पिछले चार सालों में तीव्र वृद्धि देखी गई है. 2018 में हुए 65.6% नामांकन  2022 तक 72.9%हो गए हैं.  2006 के बाद छात्र नामांकन में लगातार आई गिरावट में भी सुधार देखने को मिला . 


कोरोना लॉकडाउन के बाद खुले स्कूलों के प्रति माता-पिता ही नहीं छात्रों के बीच भी खासा उत्साह देखने को मिल रहा था जिसके बावजूद, बच्चों की बुनियादी साक्षरता के स्तर में बड़ी गिरावट आई, संख्यात्मक कौशल की तुलना में उनकी पढ़ने की क्षमता बहुत अधिक तेजी से बिगड़ रही है और 2012 के पहले के स्तर तक पहुंच गई है.


2018 में सरकारी या निजी स्कूलों में कक्षा 3 में नामांकित हुए बच्चों का प्रतिशत जो कक्षा 2 में पढ़ने में सक्षम थे 27.3% था जो गिरकर 2022 में 20.5% हो गया. यह गिरावट हर राज्य में मौजूद सरकारी ही नहीं बाकि निजी स्कूलों में भी देखने को मिली. 


2018 से  2022 में शिक्षा के स्तर में 10 प्रतिशत से भी अधिक की गिरावट वाले राज्यों में वे राज्य भी शामिल हैं जिनका 2018 में रीडिंग लेवल या पढ़ने की क्षमता का स्तर आज से बेहतर था.  इन राज्यों में केरल (2018 में 52.1% से 2022 में 38.7%), हिमाचल प्रदेश (47.7% से 28.4%), और हरियाणा (46.4% से 31.5%), आंध्र प्रदेश (22.6% से 10.3%) और तेलंगाना (18.1% से 5.2%) शामिल हैं. 


राष्ट्रीय स्तर पर, सरकारी या निजी स्कूलों में कक्षा 5 में नामांकित बच्चों का अनुपात जो कम से कम कक्षा 2 के स्तर का पाठ पढ़ सकते हैं, 2018 में 50.5% से गिरकर 2022 में 42.8% हो गया. 


15 प्रतिशत अंकगणित या उससे अधिक की कमी दिखाने वाले राज्यों की सूची में में आंध्र प्रदेश (2018 में 59.7% से 2022 में 36.3%), गुजरात (53.8% से 34.2%), और हिमाचल प्रदेश (76.9% से 61.3%) जैसे राज्य मौजूद हैं. 


एएसईआर रीडिंग टेस्ट के माध्यम से यह आकलन करता है कि कोई बच्चा पढ़ सकता है या नहीं. कक्षा 1 के कठिनाई स्तर पर अक्षर, शब्द, आसान पैराग्राफ, या कक्षा 2 के कठिनाई स्तर पर कहानी पढ़ने की क्षमता के आधार पर यह परीक्षा की जाती है बुनियादी पढ़ने की क्षमता में गिरावट कक्षा 8 के छात्रों में भी देखी गई है, जहां 69.6% बच्चे सरकारी या निजी स्कूलों में नामांकित हैं. विद्यार्थी 2018 में 73.6 % कम से कम सरल पाठ पढ़ सकते थे लेकिन 2022 में उसमें भी गिरावट आई. 


कक्षा 3 के छात्र जो कम से कम जोड़-घटाव करने में सक्षम थे, 2018 में इनका प्रतिशत 28.2% था जो गिरकर 2022 में 25.9% हो गया. जबकि जम्मू और कश्मीर, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ने 2018 के स्तर को बनाए रखा या थोड़ा सुधार किया. 


इस स्तर में तमिलनाडु में 10 प्रतिशत तक की भारी गिरावट देखने को मिली है. रिपोर्ट के अनुसार भारत भर में कक्षा 5 के बच्चों का अनुपात जो विभाजन कर सकते हैं, 2018 में 27.9% से थोड़ा कम होकर 2022 में 25.6% हो गया है और कुल मिलाकर रीडिंग लेवल यानी पढ़ने की क्षमता के स्तर में भी निचले पायदान पर लुढ़क गया है.


बुनियादी अंकगणित में कक्षा 8 के छात्रों का प्रदर्शन में अलग अलग जगहों में अंतर देखा गया है. राष्ट्रीय स्तर पर, जो बच्चे भाग कर सकते हैं, उनका अनुपात 2018 में 44.1% से बढ़कर 2022 में 44.7% हो गया है.  यह वृद्धि लड़कियों के साथ-साथ सरकारी स्कूलों में नामांकित बच्चों के बीच बेहतर परिणामों के कारण मानी जा सकती है.


निजी स्कूलों ने 2018 से शिक्षा स्तर में गिरावट दिखाई है. सरकारी स्कूलों में कक्षा 8 के बच्चों ने 2022 में उत्तर प्रदेश (32% से 41.8%) और छत्तीसगढ़ (28% से 38.6%) की तुलना में 2022 में काफी बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन पंजाब में यह (58.4% से 44.5% तक) काफी खराब रहा.


परिवारों ने ट्यूशन फीस पर खर्च किए गए पैसे को बचाने के लिए निजी स्कूलों से छात्रों को वापस ले लिया साथ ही बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने और कोरोना के दौरान हुए नुकसान की भरपाई के लिए निजी ट्यूशन कक्षाओं में भी निवेश किया. 


रिपोर्ट की माने तो 2018 में ऐसे छात्रों का अनुपात 26.4% से बढ़कर 2022 में निजी और सरकारी दोनों स्कूलों में 30.5% हो गया जो ट्यूशन पढ़ रहे थे. इसका एक कारण यह भी हो सकता है आमतौर पर ट्यूशन कक्षाओं में गणित और विज्ञान पर ज़्यादा जोर दिया जाता है.




यह रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि महामारी के दौरान परिवारों को लड़कियों की कम उम्र में शादी करने के लिए मजबूर होना पड़ा. यह पता चलता है कि 11-14 वर्ष के आयु वर्ग की लड़कियों का प्रतिशत जो स्कूल से बाहर थीं, 4.1% से घटकर 2% रह गया। यही नहीं स्कूल में नामांकित नहीं होने वाली लड़कियों के अनुपात में कमी  खास तौर पर 15-16 वर्ष आयु वर्ग की बड़ी लड़कियों का है.
 
इस रिपोर्ट में (3-16 वर्ष) आयु वर्ग के बच्चों का अनुपात को शामिल नहीं किया गया है जबकि 2018 में आई रिपोर्ट में  2.8% से गिरकर अब तक के सबसे निचले स्तर 1.6% पर आ गया, जब अंतिम पूर्ण पैमाने पर एएसईआर सर्वेक्षण किया गया था।