Balidan Diwas 19th December: अंग्रेजी हुकूमत ने आजादी मिलने तक भारतीयों पर खूब जुल्म ढहाए थे. हजारों-लाखों वीर सपूत आजादी के लिए जी-जान से लड़े थे, जिनमें से कइयों को अंग्रेजों ने निर्ममता से फांसी पर लटकाया था. ऐसे ही वीर सपूत थे- राम प्रसाद बिस्मिल (Ram Prasad Bismil), अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ां (Ashfaqulla Khan) और ठाकुर रोशन सिंह (Roshan Singh). ये वे महान क्रांतिकारी थे, जिन्हें अंग्रेजों ने 19 दिसंबर 1927 को फांसी दी थी.
इन वीरों की शहादत की याद में बलिदान दिवस मनाया जाता है. आज 19 दिसंबर को देशभर में आमजन से लेकर राजनेताओं तक हर कोई राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ां और ठाकुर रोशन सिंह को याद कर रहा है.
सोशल मीडिया पर अब लोग इन वीरों की कही गई बातों का जिक्र कर रहे हैं, तो कहीं इनकी क्रांति की गाथाएं भी सुनाई जा रही हैं. ये वही वीर थे, जिन्होंने देश की खातिर सब कुछ न्यौछावर कर खुशी-खुशी फांसी का फंदा चूम लिया. आइए, शहादत दिवस के अवसर पर जानते हैं इनकी कहानी..
'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है'
ये पंक्तियां आपने भी जरूर सुनी होंगी. कई फिल्मों में हीरो इन पंक्तियों को बोलते देखे होंगे. राम प्रसाद बिस्मिल, जो कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख सेनानी थे, वह एक अच्छे शायर, लेखक और गीतकार के रूप में भी जाने जाते थे.
उन्होंने कई मौकों पर 'सरफरोशई की तमन्ना...' गाया था. काकोरी कांड में गिरफ्तार होने के बाद अदालत में सुनवाई के दौरान जब उन्होंने 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है' का शेर पढ़ा तो वहां भारतीयों ने खूब नारेबाजी की. कहने को तो ये पंक्ति पटना के अजीमाबाद के मशहूर शायर बिस्मिल अजीमाबादी की रचना थी, लेकिन इसकी पहचान राम प्रसाद बिस्मिल को लेकर ज्यादा बन गई. वह दहाड़ते हुए ये पंक्तियां बोलते थे.
अगस्त 1925 में अंजाम दिया गया था काकोरी कांड
राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ां और ठाकुर रोशन सिंह समेत तमाम क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था. हालांकि, वे अंग्रेजों के हाथ नहीं लग रहे थेत्र. जब इन वीरों ने काकोरी कांड को अंजाम दिया था, तो अंग्रेजी हुकूमत पर इन्हें पकड़ने का दवाब बढ़ गया था. वह 9 अगस्त 1925 की रात थी, जब चंद्रशेखर आजाद की अगुवाई में राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ां, रोशन सिंह और राजेंद्र लाहिड़ी समेत कई क्रांतिकारियों ने लखनऊ से कुछ दूरी पर काकोरी और आलमनगर के बीच ट्रेन में ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया था.
यही घटना इतिहास में काकोरी कांड के रूप में दर्ज हो गई. कुछ महीनों बाद अंग्रेजी हुकूमत की पुलिस ने राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ां, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह को पकड़ लिया था. चंद्रशेखर आजाद इन्हें छुड़ाने की कोशिश करते रहे, लेकिन सफलता नहीं मिली. इन पर मुकदमा चलता रहा. आखिर में दिसंबर के महीने में राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खां और रोशन सिंह को फांसी दे दी गई.
महज 30 साल की उम्र में हुए कुर्बान
राम प्रसाद बिस्मिल पंडित थे. उनका जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में हुआ था. उन्होंने काकोरी कांड के अलावा 1918 के मैनपुरी कांड में भी मुख्य भूमिका निभाई थी. जब उन्हें फैजाबाद जेल में फांसी दी गई, तब वह महज 30 साल के थे. युवावस्था में ही वह भारत मां की बलिवेदी पर कुर्बान हो गए. उनके 2 साथी अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ां और रोशन सिंह को अंग्रेजों ने अलग-अलग जेलों में फांसी दी थी. अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ां को 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई थी. वहीं, ठाकुर रोशन सिंह को इलाहाबाद में मौत की सजा दी गई.
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