सितंबर की उमस वाली गर्मी में जब राहुल गांधी की अगुवाई में तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर  से 'भारत जोड़ो यात्रा' की शुरुआत हुई तो दिल्ली तक सियासी तपिश महसूस की जाने लगी. लोगों को बरबस की उन यात्राओं की याद आ गई जिनके दम पर कई नेताओं ने राजनीति का मैदान मार लिया था. 


लेकिन कांग्रेस की यह यात्रा कई मायनों में अलग हालातों में शुरू हुई है. एक ओर तो पार्टी इसे गैर-राजनीतिक यात्रा बता रही है, दूसरी ओर इस यात्रा के जरिए वो मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने का दम भी भर रही है.


लेकिन जब सवाल ये आता है कि लोकसभा चुनाव 2024 में पीएम मोदी के खिलाफ चेहरा क्या राहुल गांधी होंगे तो इस पर कांग्रेस के नेताओं के चेहरे पर ही कई सवाल साफ देखे जाते हैं.


दूसरी ओर कांग्रेस के अलावा कई प्रमुख विपक्षी दल राहुल के बजाए नीतीश कुमार को विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाने की बात कर रहे हैं. लेकिन इन सब बातों से इतर जब हम कांग्रेस के अंदरुनी सियासत पर नजर डालते हैं तो ऐसा लगता है कि कांग्रेस की लड़ाई खुद कांग्रेस से ही है.


हालात ये हैं कि राहुल गांधी हाथ मिलवाकर नेताओं में दोस्ती करवाने की कोशिश करते हैं लेकिन दूसरे ही पल वो नेता ताल ठोकते नजर आने लगते हैं. राहुल गांधी की उस अखाड़े में उस रेफरी की तरह है जो इस बात की कोशिश में लगता रहता है कि कहीं गुत्थम-गुत्थी न हो जाए.


कांग्रेस की 'भारत जोड़ो यात्रा' केरल से निकलकर कर्नाटक पहुंचने वाली है. कुछ दिन पहले ही यहां पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिव कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को राहुल गांधी ने एक दूसरे हाथ मिलाने के लिए कहा था. मौका था पूर्व सीएम सिद्धारमैया का जन्मदिन. 


राहुल गांधी ने दोनों नेताओं का हाथ मिलवाकर यह संदेश देने की कोशिश की थी कि पार्टी में सब ठीक चल रहा है. लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है. विधानसभा चुनाव से पहले दोनों नेता एक दूसरे के खिलाफ नजर आ रहे हैं.


कांग्रेस की यात्रा कर्नाटक में करीब 22 दिन रहेगी. पार्टी अपने लाव-लश्कर के साथ पहुंचे कि इससे पहले ही कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने भारत जोड़ो यात्रा को सफल बनाने के लिए उचित कदम नहीं उठाने के लिए लिए कथित तौर पर सिद्धारमैया गुट की खिंचाई की है.


अपनी यात्रा के दौरान राहुल गांधी सबसे ज्यादा कर्नाटक में रहेंगे. इसके लिए प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने बड़े स्तर पर तैयारियां कर रही है. लेकिन प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार सिद्धारमैया से खुश नहीं है.


उन्होंने सिद्धारमैया गुट पर निशाना साधते हुए कहा, "अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने रोजाना के आधार पर राजनीतिक विश्लेषण करने के लिए सुनील कानूगोलू के नेतृत्व में एक एक अलग टीम नियुक्त की है. सभी निर्वाचन क्षेत्रों में लगभग 600 लोग हैं जो कांग्रेस के सभी संभावित उम्मीदवारों को देख रहे हैं. हम उन्हें जानते हों या नहीं जानते हों, मैं सभी मौजूदा जीतकर आए विधायकों, हारे हुए प्रत्याशियों और महत्वाकांक्षी विधायकों को देख रहा हूं."  




यहां डीके शिवकुमार साफ तौर पर सिद्धारमैया गुट के लोगों को आगाह करते नजर आए. वहीं शिवकुमार ने कर्नाटक के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष आरवी देशपांडे को अपने निर्वाचन क्षेत्र से 5,000 हजार लोगों को लाने के लिए कहा था. लेकिन इसके जवाब में देशपांडे ने कहा कि उन्हें लोग नहीं मिल पा रहे, क्योंकि उनका निर्वाचन क्षेत्र काफी दूर है.


इसके बाद 18 सितंबर को डीके शिवकुमार ने यात्रा के प्रबंधन के लिए गठित समितियों की लिस्ट से देशपांडे का नाम काट दिया. अब विधान परिषद में विपक्ष के नेता बीके हरिप्रसाद यात्रा के प्रभारी हैं.  
  
वहीं सूत्रों की मानें तो सिद्धारमैया कर्नाटक में भारत जोड़ो यात्रा को अपनी निगरानी में करवाना चाहते हैं. सिद्धारमैया को लगता है कि इस यात्रा से डीके शिवकुमार तो अपना संगठनात्मक कौशल को आलाकमान को दिखाने का मौका दे देगी. जिससे आने वाले समय में उनके लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं. जबकि सिद्धारमैया भारत जोड़ो यात्रा के अलावा राज्य में खुद भी एक रथयात्रा निकालना चाहते हैं.  




 


वहीं गोवा में भारत जोड़ो यात्रा के बीच कांग्रेस को पहले ही बड़ा झटका लगा चुका है. बीते बुधवार को राज्य के आठ विधायकों ने कांग्रेस का साथ छोड़ते हुए बीजेपी में शामिल हो गए थे. राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री दिगंबर कामत और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष माइकल लोबो समेत कांग्रेस के आठ विधायकों को सीएम प्रमोद सावंत की मौजूदगी में बीजेपी में शामिल कराया गया.


बीजेपी में जो कांग्रेस के विधायक शामिल हुए हैं वो हैं- दिगंबर कामत, माइकल लोबो, देलिलाह लोबो, राजेश फलदेसाई, केदार नाइक, संकल्प अमोनकर, एलेक्सियो सेक्विएरा और रूडोल्फ फर्नांडिस. इस मौके पर मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने कहा कि कांग्रेस के छोड़ो यात्रा की शुरुआत हो चुकी है. 


बात करें जम्मू-कश्मीर की तो यहां पर कांग्रेस के सीनियर नेता डॉक्टर कर्ण सिंह ने भारत जोड़ो यात्रा में शामिल नहीं किए जाने को लेकर निराशा जाहिर की. उन्होंने कहा कि "ऐसा लगता है कि पार्टी को अब उनकी जरूरत नहीं है."




एजेंसी आईएएनएस को दिए इंटरव्यू में डॉ. सिंह ने कहा, "मुझे भारत जोड़ो यात्रा के लिए आमंत्रित नहीं किया गया है. कुछ सालों से, मैं पार्टी से अलग महसूस कर रहा हूं. न तो मैं पार्टी की किसी समिति में हूं और न ही पार्टी ने मुझसे परामर्श किया है. कुछ सालों में मेरे और पार्टी के बीच दरार आ गई है. हालांकि, मैं जीवन भर पार्टी में रहा हूं, लेकिन ऐसा लगता है कि पार्टी को अब मेरी जरूरत नहीं है.



दूसरी ओर मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस के लिए एक बार अच्छी खबर नहीं है. कांग्रेस को चुनाव से पहले बगावत की आशंकाओं ने घेर लिया है और संभावित खतरे से पार्टी नेता भी वाकिफ हैं.


कांग्रेस राज्य में लगभग डेढ़ दशक बाद वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में बढ़त पाकर सत्ता में आई थी मगर ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में विधायकों की बगावत के बाद कमल नाथ के नेतृत्व वाली सरकार गिर गई थी.


कांग्रेस को सत्ता जाने से ऐसा दंश मिला था जिसे वह आज तक नहीं भुला पाई है. एक बार फिर चुनाव करीब आते ही कांग्रेस को दलबदल की आशंकाएं सताने लगी हैं.


बीते दिनों बुंदेलखंड के दबंग कांग्रेस नेता और पूर्व विधायक अरुणोदय चौबे ने पार्टी का दामन छोड़ दिया, साथ ही सभी पदों से इस्तीफा भी दे दिया. सियासी तौर पर बुंदेलखंड में कांग्रेस के लिए इसे बड़ा झटका माना जा रहा है. इसके बाद कई नेताओं के बीजेपी के संपर्क में होने और दल-बदल की चर्चाएं जोरों पर हैं.


दल-बदल की आशंकाओं से पार्टी भी वाकिफ है और प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने तो साफ लहजे में कहा कि किसी के छोड़कर जाने से कांग्रेस खत्म नहीं हो जाएगी, कोई जाना चाहता है तो हम उसे रोकेंगे नहीं, जो लोग बीजेपी में भविष्य देख कर जाना चाहते हैं तो जाएं, मेरी गाड़ी उन्हें छोड़कर आएगी. कुल मिलाकर कहीं न कहीं कांग्रेस के अंदर खाने में दलबदल की आशंकाएं हिलोरे मार रही हैं.