पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (एससीओ) की मीटिंग में भाग लेने 4 मई को भारत आएंगे. बिलावल अपने परिवार के चौथे सदस्य हैं, जो सरकारी पद पर रहते हुए भारत दौरे पर आ रहे हैं. इससे पहले उनके नाना जुल्फिकार अली भुट्टो और मां बेनजीर भुट्टो प्रधानमंत्री रहते और पिता आसिफ अली जरदारी राष्ट्रपति रहते हुए भारत आ चुके हैं. 


बिलावल गोवा में एससीओ मीटिंग के बाद भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ द्विपक्षीय वार्ता भी कर सकते हैं. हालांकि, इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है. 2011 के बाद पहली बार आधिकारिक तौर पर भारत में पाकिस्तान के किसी विदेश मंत्री का दौरा हो रहा है. 2011 में तत्कालीन विदेश मंत्री हिना रब्बानी भारत आई थीं, तब द्विपक्षीय वार्ता हुई थी. 


क्या है एससीओ, जिसकी मीटिंग में भाग लेने आ रहे बिलावल?
शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ एक पॉलिटिकल, इकोनॉमिकल और सिक्योरिटी संस्था है, जिसका गठन 2001 में चीन और रूस ने किया था. 2017 में भारत इस संस्था का स्थाई सदस्य बन गया.


वर्तमान में एससीओ में 8 स्थाई सदस्य है, जिसका नाम है- रूस, चीन, कजाकिस्तान, तजाकिस्तान​​​​​​, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान, पाकिस्तान और भारत. 


आर्मीनिया, अजरबैजान, कंबोडिया, नेपाल, श्रीलंका और तुर्किए एससीओ का वार्ता सहयोगी हैं,जबकि अफगानिस्तान, ईरान, बेलारूस और मंगोलिया इसके ऑब्जर्वर हैं. शंघाई सहयोग संगठन की आधिकारिक भाषाएं चीनी और रूसी है.


2015 के बाद पाकिस्तान से बिगड़े हालात
2014 में भारत में नई सरकार बनने के बाद पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने के लिए कई तरह के प्रयास किए गए. 2014 में नरेंद्र मोदी ने अपने शपथ-ग्रहण में सार्क नेताओं को आमंत्रित किया, इसमें पाकिस्तान के तत्कालीन पीएम नवाज शरीफ भी शामिल हुए. 


2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने लाहौर की यात्रा की और नवाज शरीफ से मिले, लेकिन इसके कुछ महीने बाद ही पठानकोट एयरबेस पर आतंकियों ने हमला कर दिया. इसके कुछ महीने बाद उरी में जवानों पर हमला कर दिया गया. उरी में सेना के 16 जवान शहीद हो गए.


उरी हमले के बाद भारत ने सीमापार आतंकियों पर सर्जिकल स्ट्राइक कर दिया. भारत के इस स्ट्राइक से 38 आतंकवादी और 2 पाकिस्तानी जवान मारे गए. भारत और पाकिस्तान के बीच इसके बाद रिश्ते और तल्ख हो गए. 


भारत ने पाकिस्तान के साथ सभी तरह की बातचीत को बंद कर दिया. पुलवामा में सैनिकों पर अटैक के बाद फिर भारत ने बालाकोट में एयरस्ट्राइक किया था. 


पाकिस्तानी पीएम ने जाहिर की थी बातचीत शुरू करने की इच्छा
फरवरी 2023 में दुबई में एक इंटरव्यू के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भारत से बातचीत शुरू करने का आग्रह किया था. टीवी चैनल अल अरबिया को दिए इंटरव्यू में शरीफ ने कहा था- दोनों देशों के बीच गंभीर और ईमानदार वार्ता की जरूरत है. 


जून 2022 में बिलावल भुट्टो ने भी भारत के साथ आर्थिक कूटनीतिक को शुरू करने की वकालत की थी, लेकिन भारत ने इसे ज्यादा तरजीह नहीं दी, जिसके बाद बिलावल कश्मीर मुद्दे पर लगातार विवादित टिप्पणी करते रहे हैं. 


2022 में पाकिस्तान के संसद में विदेश राज्य मंत्री हिना रब्बानी खार ने कहा था कि भारत के साथ बैकचैनल से भी बातचीत बंद है. हम शांति स्थापित करने के लिए उत्सुक है.


विदेश नीति ठीक करना पाकिस्तान के लिए आसान नहीं
भारत के साथ विदेश नीति ठीक करना पाकिस्तान के लिए आसान नहीं है. भारत ने आतंकवाद को बड़ा मुद्दा बनाते हुए पूरी दुनिया में पाकिस्तान की घेराबंदी कर दी है. आइए जानते हैं, किन-किन मुद्दों पर पाकिस्तान बैकफुट पर है...


1. आतंकवाद पर कंट्रोल नहीं- भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पिछले साल पाकिस्तान की पैरवी कर रहे जर्मनी के विदेश मंत्री को साफ कर दिया था कि जब तक सीमापार आतंकवाद पर कंट्रोल नहीं होगा, तब तक पाकिस्तान से बातचीत संभव नहीं है.


भारत का कहना है कि पाकिस्तान एक तरफ राजनयिक बातचीत कर रहा है, तो दूसरी तरफ पाक सेना के सहयोग से आतंकी भारतीय भूभाग पर हमला कर देता है. 


हाल के दिनों में पंजाब बॉर्डर पर पाकिस्तानी ड्रोन काफी ज्यादा देखे गए हैं. तरनतारन में रॉकेट लॉन्चर से पुलिस थाने पर अटैक किया गया था. भारत का कहना है कि सभी पाकिस्तान में छिपे बैठे आतंकियों के इशारे पर किया जा रहा है. 


पाकिस्तान भी आतंकियों पर कार्रवाई की बात कहता है, लेकिन एक्शन लेने के नाम पर चुप हो जाता है. ऐसे में आतंकवाद भारत के साथ विदेश नीति ठीक नहीं होने की बड़ी वजह बन गया है. 


2. चीन का बढ़ता दखल भी वजह- चीन का बढ़ता दखल भी विदेश नीति के लिए बड़ा मुद्दा है. पाकिस्तान में चीन सीपीईसी यानी चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर पर काम कर रहा है. इसमें चीन ने पिछले एक दशक में हजारों बिलियन डॉलर खर्च किए हैं. 


ताइवान की मैगजिन चाइना इंडेक्स 2022 के मुताबिक पाकिस्तान दुनिया के उन 81 देशों में सबसे ऊपर है, जहां चीन का प्रभाव सबसे अधिक है. रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन का पाकिस्तान की विदेश नीति पर 81.8% प्रभाव है.


चीनी दखल की वजह से ही भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते नहीं सुधर रहे हैं. चीन और भारत के बीच 2020 में गलवान घाटी हिंसा के बाद से ही तनाव है. 


जयशंकर का सामना कैसे करेंगे बिलावल?
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के दो टूक बयानों की वजह से अमेरिका, चीन और यूरोप भी बैकफुट पर रहा है. मार्च 2023 में चीन के विदेश मंत्री किन गांग दिल्ली आए थे, जहां जयशंकर के साथ द्विपक्षीय वार्ता हुई थी.


वार्ता में जयशंकर ने चीन को कहा कि 34 महीने से भारत-चीन सीमा पर असामान्य स्थिति बनी हुई है. चीन से बातचीत तो हो रही है, लेकिन सीमा पर हालात नहीं सुधर रहे हैं. 


जनवरी 2023 में रूस-यूक्रेन जंग में भारत की भूमिका पर पूछे गए सवाल को लेकर जयशंकर ने यूरोप को खरी-खोटी सुनाई थी. जयशंकर ने कहा था कि संप्रभुता पर हमला को लेकर यूरोप का स्टैंड एक जैसा नहीं रहता है, जब अमेरिका ने इराक पर हमला किया था, तब पूरा यूरोप चुप था. 


विदेश मंत्री ने रूस से तेल खरीदने को लेकर भी यूरोप पर निशाना साधा था. उन्होंने कहा था- यूरोप हमें कहता है कि आप तेल मत खरीदो, लेकिन यूरोप ने भारत से छह गुना ज्यादा तेल रूस से आयात किया है. जयशंकर का यह बयान चर्चा में रहा था. 


रूस, अमेरिका और चीन को सुनाने वाले एस जयशंकर ने जुलाई 2022 में ताशकंद में विदेश मंत्रियों की एक बैठक में बिलावल से अभिवादन तक नहीं किया था. ऐसे में इस बार बिलावल कैसे सामना करें?


कौन कितना पढ़ा लिखा?
बिलावल भुट्टो ने शुरुआती पढ़ाई-लिखाई पाकिस्तान में की है. इसके बाद दुबई से 12वीं तक की पढ़ाई पूरी की. 12वीं करने के बाद बिलावल लंदन चले गए, जहां उन्होंने आधुनिक इतिहास में ग्रेजुएशन और मास्टर की डिग्री पूरी की. 


एस जयशंकर की बात करें तो उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई एयरफोर्स स्कूल से की है. दिल्ली यूनिवर्सिटी के सैंट स्टीफन से ग्रेजुएशन करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए जेएनयू चले गए.


यहां पर जयशंकर ने राजनीतिक विज्ञान से एमए, एमफिल और इंटरनेशनल रिलेशन से पीएचडी की पढ़ाई पूरी की. जयशंकर विदेश विभाग के लिए सिलेक्ट हुए, जिसके बाद कई देशों के राजदूत रहे. जयशंकर 2015 से 2018 तक विदेश सचिव भी रहे हैं. 


3 मुद्दे, जिससे बैकफुट पर होंगे बिलावल
विदेश मंत्री एस जयशंकर से बातचीत के दौरान 3 ऐसे मुद्दे हैं, जिस पर बिलावल बैकफुट पर रहेंगे. आइए इन्हें विस्तार से जानते हैं...


1. जम्मू-कश्मीर के 370 का मुद्दा- विदेश मंत्री बनने के बाद ही बिलावल भुट्टो कश्मीर का राग अलाप रहे हैं. बिलावल ने कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में भी उठाया था, जिस पर भारत ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी.


2019 में भारत ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा लिया था. सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि कश्मीर में फिर से अनुच्छेद 370 वापस नहीं किया जाएगा. विदेश मंत्री के साथ बैठक में बिलावल को यह मुद्दा भूलना पड़ेगा. 


पाकिस्तान के विदेश मंत्री अगर कश्मीर का मुद्दा उठाते हैं तो गिलिगिट और बलूचिस्तान पर बुरी तरह घिर सकते हैं. भारत का विदेश मंत्रालय पहले भी इन मुद्दों पर पाकिस्तान को घेर चुका है. 


2. हथियार तस्करी के मुद्दे पर- भारत का आरोप है कि पाकिस्तान सीमा पर लगातार ड्रोन के जरिए हथियारों की तस्करी कर रहा है. बिलावल अगर विदेश मंत्री के साथ बैठक में आर्थिक कूटनीतिक की बात करते हैं, तो हथियार तस्करी पर बुरी तरह घिर सकते हैं.


हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ की मीटिंग में भारत ने ड्रोन से हो रहे हथियार तस्करी का मुद्दा उठाया था. भारत ने कहा था कि हथियारों की तस्करी  भू-राजनीतिक तनाव को बढ़ाती है और पाकिस्तान यही चाहता है.


3. पाक सेना के सैन्य नीति पर- पाकिस्तान में सरकार से ज्यादा मजबूत वहां की सेना है. कमर जावेद बाजवा के बाद असिम मुनीर वहां के सेनाध्यक्ष बने हैं. मुनीर ने भारत के साथ सैन्य नीति का अब तक खुलासा नहीं किया है.


हाल के दिनों में मुनीर भारत के खिलाफ विवादित बयानों की वजह से सुर्खियों में भी रहे हैं. मुनीर का स्टैंड साफ नहीं होने की वजह से भारत शायद ही बिलावल के साथ विदेश नीति पर कोई चर्चा करें. यानी पाकिस्तान सेना प्रमुख की वजह से बिलावल भुट्टो बैकफुट पर रहेंगे. 


भारत और पाकिस्तान के बीच किन-किन मुद्दों पर विवाद है?
1947 बनने के बाद से ही भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद शुरू हो गया था. यह विवाद अब तक चल रहा है. पाकिस्तान और भारत के बीच मुख्य रूप से कश्मीर, सियाचिन, सिंधु नदी जल और कच्छ का रण मुद्दे पर विवाद चल रहा है.


1972 में दोनों देशों के बीच शिमला समझौता भी हुआ था, लेकिन उसके बाद भी शांति स्थापित नहीं हो पाया. भारत और पाकिस्तान के बीच अब तक तीन बार 1965, 1971 और 1999 में युद्ध हो चुका है. 


तीनों युद्ध में भारत की ही जीत हुई. 1971 के युद्ध में पाकिस्तान को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था. उसके एक भाग को काटकर बांग्लादेश का निर्माण कराया गया था.