इस दौरान स्कूलों की ऑटोनॉमी, इंस्पेक्टर राज की वापसी, आरटीई रिईम्बर्समेंट, नो डिटेंशन, टीचर्स एलीजिबिलिटी के मुद्दों पर भी गहन चर्चा हुई. इस बाबत जानकारी देते हुए कुलभूषण शर्मा ने बताया कि स्कूली शिक्षा से संबंधित नीतियों के दौरान बड़े निजी स्कूलों व सरकारी स्कूलों का प्रतिनिधित्व तो होता है लेकिन अनऐडेड बजट स्कूल छूट जाते है. इस कारण 90 फीसदी से अधिक स्कूलों की समस्याएं अनसुनी रह जाती है और अधिकांश मौकों पर बनने वाले नियम इनके खिलाफ भी चले जाते हैं.
कुलभूषण शर्मा ने बताया कि आरटीई के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को दाखिला देने के ऐवज में स्कूलों को होने वाले रीईम्बर्समेंट का पैसा केंद्र सरकार राज्यों को देती है लेकिन अधिकांश राज्य यह पैसा स्कूलों को नहीं देते हैं. इस प्रकार स्कूलों के साथ नाइंसाफी तो होती ही है अभिभावकों और जनता को भी लगता है कि गड़बड़ी स्कूल के स्तर पर हो रही है. यदि सरकार स्कूलों को फंड देने की बजाए सीधे छात्रों को वाऊचर से फंड दे तो छात्र और अभिभावक ज्यादा सशक्त होंगे और सरकार और जनता के बीच के कई लेयर समाप्त होने से लीकेज के मामले में भी कमी आएगी.
निसा, दिल्ली चैप्टर के राजेश मल्होत्रा ने बताया कि आरटीई के तहत प्रत्येक तीन वर्ष के बाद स्कूलों को फिर से मान्यता लेने का प्रावधान है. इसके कारण इस सेक्टर में इंस्पेक्टर राज की वापसी हो गई है. हर काम के लिए हमें अधिकारियों के चक्कर लगाने को मजबूर होना पड़ता है और इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है. निसा, कर्नाटक चैप्टर के डी. शशिकुमार ने स्कूलों के लिए टीचर्स एलीजिबिलिटी का मुद्दा उठाते हुए कहा कि इस प्रावधान में निजी और सरकारी स्कूलों के बीच भेदभाव किया गया है.
सरकारी स्कूलों के अध्यापकों को नए नियम में छूट दी गई है जबकि निजी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों पर इसका कड़ाई से अनुपालन कराया जा रहा है. शशि ने कहा कि सरकारी नीतियां स्कूलों की स्वयातता में हस्तक्षेप कर रही हैं जिससे स्कूल प्रबंधन में समस्या उत्पन्न हो रही है और शिक्षा की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है. निसा सेक्रेटेरिएट से थॉमस एंटोनी ने बताया कि सचिव अनिल स्वरूप ने हमारी समस्यों को ध्यानपूर्वक सुना और इसके समाधान के लिए आवश्यक कदम उठाने की बात कही.