Citizenship Amendment Act: क्या था नेहरू-लियाकत समझौता जिसका जिक्र CAA को लेकर हमेशा होता है
Citizenship Amendment Act: नागरिकता संसोधन कानून के लागू होते ही नेहरू-लियाकत समझौते पर फिर से बात होने लगी है. इसी समझौते के फेल होने के कारण नागरिकता संशोधन कानून की जरूरत महसूस हुई.
Citizenship Amendment Act: नागरिकता संशोधन कानून देश में लागू हो चुका है. अब 2014 से पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश या अफगानिस्तान से भारत में आने वाले लोग ऑनलाइन आवेदन करके देश की नागरिकता हासिल कर सकते हैं. इस कानून के लागू होते ही नेहरू-लियाकत समझौते पर फिर से बात होने लगी है. गृहमंत्री अमित शाह के अनुसार इसी समझौते के फेल होने के कारण नागरिकता संशोधन कानून की जरूरत महसूस हुई.
नेहरू-लियाकत समझौता 1950 में हुआ था. भारत के विभाजन के बाद अल्पसंख्यकों पर जमकर अत्याचार हो रहे थे. उनके घर-संपत्ति लूटे जा रहे थे. ऐसे में यह समझौता हुआ था, लेकिन इसका पूरी तरह से पालन नहीं हुआ.
क्या था नेहरू-लियाकत समझौता?
साल 1947 में भारत के आजाद होने के साथ ही इसका बंटवारा हो गया था. इसके बाद पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला किया और भारत ने भी इस पर जवाबी कार्रवाई की. 1949 में दोनों देशों के बीच व्यापार भी बंद हो गया. इस बीच सांप्रदायिक दंगों में दोनों देशों में अल्पसंख्यक मारे जा रहे थे. दोनों देशों के बीच जंग के हालात बनते दिख रहे थे. पाकिस्तान के पंजाब, सिंध और पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से बड़ी संख्या में हिंदू और सिख भारत आ रहे थे. वहीं, भारत के पश्चिम बंगाल, पंजाब और दूसरे हिस्सों से मुसलमान पाकिस्तान जा रहे थे. इस बीच दोनों देशों में अल्पसंख्यकों की संपत्ति लूटी जा रही थी. इसे रोकने के लिए ही समझौता किया गया.
समझौते में क्या तय हुआ?
1950 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान दिल्ली आए थे. 6 दिन तक दोनों देशों के बीच बातचीत के बाद समझौता हुआ और दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने इस पर हस्ताक्षर किए. इस समझौते में तय हुआ कि दोनों देश अपने अल्पसंख्यकों के साथ हुए व्यवहार के लिए जिम्मेदार होंगे. शरणार्थियों के पास अपनी संपत्ति बेचने के लिए पुराने देश वापस जाने का आधिकार होगा. जबरन कराए गए धर्म-परिवर्तन मान्य नहीं होंगे. दोनों देश अल्पसंख्यक आयोग का गठन करेंगे.
क्यों पड़ी CAA की जरूरत?
गृहमंत्री अमित शाह के अनुसार पाकिस्तान इस समझौते का पालन करने में विफल रहा. 1947 के बाद से लगातार पाकिस्तान में अल्पसंख्यों की आबादी कम होती गई. वहां से जबरन धर्म परिवर्तन की खबरें सामने आती रहती हैं. इसके अलावा बांग्लादेश भी पहले पाकिस्तान का हिस्सा था, लेकिन वहां शोषण से परेशान होकर लोग भारत में पलायन करने लगे. इसे रोकने के लिए इंदिरा सरकार ने कार्रवाई की और बांग्लादेश को अलग देश बना दिया गया. हालांकि, इसके बाद भी वहां के हालातों में ज्यादा सुधार नहीं हुआ है. बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थियों के कारण ही असम में एनआरसी की मांग उठी थी.
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