5 अगस्त, 2019 को, केंद्र की मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था. उस वक्त इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया, जिसके बाद सरकार ने दावा किया था कि जम्मू-कश्मीर में विकास की नई इबारत लिखी जाएगी. इसके साथ ही प्रदेश से हिंसा को समाप्त कर दिया जाएगा. भारतीय जनता पार्टी ने इसे नया कश्मीर कहा था, जहां सबकुछ देश के बाकी हिस्सों के बराबर होगा. 


अब सवाल ये है कि पिछले तीन साल से केंद्र शासित राज्य के रूप में जम्मू-कश्मीर पू्र्ण राज्य कब बनेगा? यहां विधानसभा के चुनाव कब होंगे? या चुनाव की संभावना कब तक बन रही है. आइए जानते हैं जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक हालातों के बारे में. 


गृह मंत्री अमित शाह सक्रियता बढ़ी
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 3 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर के तीन दिन के दौरे पर पहुंचे हैं, जहां वो कई सरकारी योजनाओं को लॉन्च करने के साथ-साथ वहां के स्थानीय नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं. अमित शाह की एक बार फिर से जम्मू-कश्मीर में सक्रियता के बाद वहां जल्दी चुनाव होने के आसार दिखने लगे हैं. उनके इस दौरे को जम्मू-कश्मीर में बीजेपी के प्रचार अभियान की शुरुआत के तौर पर भी देखा जा रहा है. वहीं, शाह के दौरे के बाद विपक्षी दलों में भी सक्रियता बढ़ गई है. 


बीजेपी का अपने दम पर सरकार बनाने का प्लान
जम्मू-कश्मीर के दौरे पर गए अमित शाह ने राजौरी में एक रैली को संबोधित किया, जिसमें उन्होंने गुर्जर, बकरवाल और पहाड़ी समुदायों को आरक्षण देने की बात कही. अमित शाह ने कहा इसकी तैयारी हो गई है, जिसको लेकर कमीशन ने अपनी शिफारिशें भेज दी हैं.  




अमित शाह के बयान और तीनों समुदायों को आरक्षण देने की बात से ये अंदाजा लगाया जाने लगा है कि बीजेपी जम्मू-कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई है. दरअसल, जम्मू-कश्मीर के राजौरी, हंदवाड़ा, बारामूला और पुंछ जिलों में गुर्जर, बकरवाल और पहाड़ी समुदायों की बड़ी आबादी रहती है, जो जम्मू-कश्मीर के इन पांच जिलों की 10 विधानसभा सीटों पर प्रभाव रखते हैं. बीजेपी की उनको आरक्षण देकर इन्हीं 10 सीटों पर नजर है.  


पहाड़ी मुसलमानों को लुभाने की कोशिश
गृह मंत्री शाह ने कश्मीर दौरे के दौरान डोगरा समेत पांच समुदाय के लोगों से मुलाकात की. शाह से मिलने वाले इस प्रतिनिधिमंडल में गुर्जर, बकरवाल, पहाड़ी, सिख और राजपूत समुदाय के लोग शामिल थे. जम्मू-कश्मीर में गुर्जर और बकरवाल की लगभग 99.3 फीसदी आबादी इस्लाम को मानती है. 2011 की जनगणना के अनुसार, जम्मू-कश्मीर की आबादी में 28.44 फीसदी हिंदू और 68.31 फीसदी मुस्लिम हैं. इसको देखते हुए माना जा रहा है कि बीजेपी गुर्जर और पहाड़ी मुसलमानों को लुभाने की कोशिश कर रही है. 




जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कब होंगे, ये अभी किसी को नहीं मालूम, लेकिन अंदाजा लगाया जा रहा है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश के साथ इसी साल 2022 के अंत तक जम्मू कश्मीर में भी चुनाव का ऐलान किया जा सकता है. घाटी में राजनीतिक सरगर्मियों के बीच सभी दल एक्टिव हो गए हैं. एक तरफ महबूबा मुफ्ती की पीडीपी है तो दूसरी तरफ फारुख अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस, वहीं हाल ही में कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाने वाले गुलाम नबी आजाद ने भी चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. इसी के साथ में भारतीय जनता पार्टी भी अपनी पहली सरकार बनाने के लिए पूरी तैयारी से चुनावों में कूदने के लिए कमर कस रही है. 


जम्मू-कश्मीर का नया परिसीमन 
धारा 370 खत्म होने के तीन साल बाद भी, जम्मू-कश्मीर में कोई निर्वाचित सरकार नहीं है क्योंकि भारत सरकार अभी भी जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र और राज्य की बहाली के लिए 'सही समय' को लेकर अनिश्चितता से भरी है. जबकि परिसीमन आयोग ने जम्मू को छह और कश्मीर को केवल एक सीट देने की अपनी कवायद पूरी कर ली है- 90 विधानसभा क्षेत्रों में से 43 अब जम्मू और 47 कश्मीर क्षेत्र का हिस्सा होंगे.


राज्य में पांच संसदीय क्षेत्र
जम्मू-कश्मीर में कुल पांच संसदीय क्षेत्र होगें. परिसीमन आयोग ने जम्मू और कश्मीर क्षेत्र को एक एकल केंद्र शासित प्रदेश के रूप में माना है. इसलिए, घाटी में अनंतनाग क्षेत्र और जम्मू क्षेत्र के राजौरी और पुंछ को मिलाकर एक संसदीय क्षेत्र बनाया गया है. इस पुनर्गठन के बाद, प्रत्येक संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में समान संख्या में विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र होंगे. प्रत्येक संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में 18 विधान सभा क्षेत्र होंगे. स्थानीय प्रतिनिधियों की मांग को ध्यान में रखते हुए कुछ विधान सभा क्षेत्रों के नाम भी बदल दिए गए हैं.


नए परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर में कुल 90 विधानसभा सीटों में से हिंदू बाहुल्य जम्मू संभाग में 43 और मुस्लिम बाहुल्य कश्मीर संभाग में 47 सीटें निर्धारित की गई हैं. वहीं जम्मू-कश्मीर में गुर्जर और बकरवाल की लगभग 99.3 फीसदी आबादी इस्लाम को मानती है. अमित शाह ने इसी समुदाय को आरक्षण देने का ऐलान किया है. इसको लेकर यह माना जा रहा है कि बीजेपी गुर्जर और पहाड़ी मुसलमानों को लुभाने की कोशिश कर रही है.   


वहीं, इस प्रारूप में जो नया है वह यह है कि 9 सीटें अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए आरक्षित की गई हैं, जिनमें से छह जम्मू क्षेत्र में और तीन कश्मीर घाटी में हैं. जबकि कश्मीरी पंडितों के लिए दो और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) शरणार्थियों के लिए चार सीटें भी अलग रखी गई हैं जो पहले नहीं थीं. परिसीमन आयोग ने अब अपनी रिपोर्ट सौंप दी है, राजनीतिक दलों का आरोप है कि चुनाव और राज्य की बहाली की कोई बात नहीं है और सरकार का ध्यान एक पार्टी के राजनीतिक एजेंडे का पालन करने पर है. 


जम्मू में मजबूत कश्मीर में कमजोर बीजेपी
जम्मू-कश्मीर में अपने दम पर सरकार बनाने के लिए बीजेपी को कश्मीर में पकड़ मजबूत करनी होगी. जम्मू में पार्टी की पकड़ पहले से ही मजबूत है. नवंबर 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने सबसे ज्यादा सीटें जम्मू से जीती थीं, कश्मीर से बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली थी. बीजेपी को इस बार कश्मीर के साथ-साथ जम्मू में पहले से ज्यादा सीटें जीतनी होंगी. वहीं 2014 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 25 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. जबकि, पीडीपी ने 28 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जिसके बाद बीजेपी ने पीडीपी के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाई थी.


इसको देखते हुए बीजेपी को इस बार होने वाले चुनाव में कश्मीर में भी खाता खोलना होगा. इसके लिए बीजेपी कश्मीर में दूसरी पार्टी के मुस्लिम नेताओं को तोड़ने की कोशिश के साथ में गठबंधन की संभावनाएं तलाश रही है जो मुस्लिम बहुल सीटों पर जीत दिला सके. बीजेपी यह अच्छी तरह से जानती है कि बिना मुस्लिमों के वोट के उनका मुख्यमंत्री बनना मुश्किल है. 




पिछले चुनाव में मिली मजबूती
गौरतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 87 में से सभी 25 सीटें जम्मू से तीजी थीं. वहीं पीडीपी के बाद राज्य में दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी थी. इसमें खास बात ये थी कि राज्य में बीजेपी को सबसे ज्यादा वोट मिले थे. बीजेपी को 11,07,194 वोट मिले थे, जो 23 फीसदी प्रतिशत वोट थे. जबकि पहले नंबर की पार्टी पीडीपी को 10,00,693 वोट मिले थे, जो 22.7 फीसदी वोट प्रतिशत थे. इन आंकड़ो को देखते हुए बीजेपी जम्मू में सभी सीटें जीतने के इरादे से चुनाव लड़ने की रणनीति बना रही है. इसके अलावा इस बार बीजेपी को कश्मीर में भी खाता खोलना होगा.  


घाटी में पैर जमाने की रणनीति
दरअसल, अमित शाह ने जिन गुर्जर, बकरवाल और पहाड़ी समुदायों को आरक्षण देने की बात कही है वही कश्मीर में बीजेपी का खाता खुलवा सकते हैं. क्योंकि इन समुदायों का घाटी में 10 सीटों पर प्रभाव है. बीजेपी की रणनीति में यह सबसे अहम माना जा रहा है. वहीं इन समुदायों में पैठ बनाने के लिए बीजेपी दूसरो दलों के नेताओं को जोड़ सकती है. बीजेपी 35040 सीटें जम्मू तो वहीं 5-10 सीटें कश्मीर घाटी में जीतने की रणनीति पर काम कर रही है. इसी को देखते हुए जम्मू-कश्मीर में बीजेपी का अपने दम पर सरकार बनाने का प्लान बताया जा रहा है. 


गौरतलब है कि पिछले साल बीजेपी ने जम्मू कश्मीर राज्य इकाई की बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया था वह बिना किसी दूसरे दल के समर्थन के केंद्र शासित प्रदेश में अपने दम पर सरकार बनाएगी.