नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की तलाश में कांग्रेस राजस्थान में बुरी तरह से फंस गई है. गांधी परिवार के बेहद करीबी अशोक गहलोत के समर्थक विधायकों में से 80 ने विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को इस्तीफा दे दिया है. 


विधायकों ने सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाए जाने का विरोध किया है. मतलब साफ है कि सीएम अशोक गहलोत किसी भी कीमत पर नहीं चाहते हैं कि राजस्थान की कमान सचिन पायलट के हाथों जाए. 


ये हैरान करने वाला है कि साल 2019 में कांग्रेस सचिन पायलट के समर्थक 28 विधायकों की बगावत का सामना कर रही थी और इस बार मुख्यमंत्री गहलोत के खेमे ने  विद्रोह कर दिया है. 2019 का मामला तो अदालतों तक पहुंच गया था.


लेकिन राजस्थान में कांग्रेस को दोनों नेताओं में से किसी को भी नाराज करना उसके हित में नहीं है. गुर्जर समुदाय से आने वाले सचिन पायलट कांग्रेस के युवा चेहरा हैं. उनके राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने का बाद राज्य की कुल आबादी में 5 फीसदी हिस्सेदारी वाले गुर्जर समुदाय का एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस की ओर से शिफ्ट हुआ था.


गुर्जर राज्य में बीजेपी का वोट बैंक रहे हैं. लेकिन सचिन पायलट की सक्रियता के बाद साल 2018 में कांग्रेस की ओर बड़ी संख्या में शिफ्ट में हुए हैं. गुर्जर बहुल आबादी वाले जिले करौली, सवाई माधोपुर, जयपुर, टोंक, भरतपुर, दौसा, कोटा, धौलपुर, भीलवाड़ा, बूंदी, झुंझनू, अजमेर की सीटों आती हैं. 


साल 2018 के चुनाव में बीजेपी को हराने में गुर्जरों का बड़ा हाथ रहा है. बीजेपी ने 9 गुर्जर प्रत्याशियों को टिकट दिया था जिनमें से किसी को भी जीत नसीब नहीं हुई थी. वहीं कांग्रेस 12 गुर्जर प्रत्याशी उतारे थे जिनमें 7 विधानसभा पहुंचे.


कांग्रेस के खाते में गुर्जरों के जाने की बड़ी वजह सचिन पायलट बने थे. इस चुनाव में वो सीएम पद के दावेदार थे. दूसरी एक बड़ी वजह बीजेपी की गलती भी थी. एक तो गुर्जर काफी समय से आरक्षण की मांग कर रहे थे. दूसरी ओर राजस्थान में मीणा और गुर्जर समुदाय के बीच दूरी भी है. 


बीजेपी ने गुर्जर-मीणा बहुल सीटों पर चुनाव की कमान किरोणी लाल मीणा को सौंप दी थी. इसकी वजह से भी बीजेपी से गुर्जर नाराज हो गए थे. बता दें कि राजस्थान में गुर्जर बीजेपी को एकतरफा वोट देते रहे हैं. इसकी बड़ी वजह इस समुदाय के ज्यादातर युवा सेना में हैं और उनकी बीजेपी नेताओं के राष्ट्रवादी भाषण खूब लुभाते रहे हैं. 30 से 40 सीटों पर गुर्जर वोटरों का प्रभाव गुर्जर समुदाय के वोटरों का प्रभाव है तो  50 सीटों पर मीणा वोटर निर्णायक भूमिका में हैं.


बात करें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की जो खुद माली जाति से आते हैं. राज्य में मुख्यमंत्री गहलोत ओबीसी चेहरे के तौर पर देखे जाते हैं. ये अशोक गहलोत ही हैं जिन्होंने राजस्थान में राजपूतों-ब्राह्मणों और जाटों की वर्चस्व वाली राजनीति में खुद को स्थापित किया और तीन बार मुख्यमंत्री बने. अशोक गहलोत को कांग्रेस का संकटमोचक भी कहा जाता है. बीते गुजराज विधानसभा चुनाव में अशोक गहलोत ने अपनी संगठन क्षमता के दम पर बीजेपी को नाकों चने चबवा दिए थे.


लेकिन राजस्थान में ओबीसी आरक्षण की राजनीति एक बार फिर गरमा रही है. गुर्जर समुदाय को 2008 में हुए प्रदर्शन के बाद एमबीसी के तहत 5 फीसदी आरक्षण दिया जा चुका है. अब राज्य में ओबीसी की 5 जातियां सैनी, कुशवाहा, माली, मौर्य और शाक्य 12 फीसदी आरक्षण की मांग कर रही हैं. इसकेअलावा मिरासी, मांगणियार, ढाढी, लंगा, दमामी, मीर, नगारची, राणा, बायती और बारोट जातियों के लोग भी आरक्षण की मांग कर रहे हैं. 


राजस्थान में क्या है आरक्षण की स्थिति
राजस्थान में इस समय 64 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है. इसमें ओबीसी वर्ग 21 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है. जबकि केंद्र में ओबीसी को 27 फीसदी है. एससी वर्ग को 16 और एसटी को 12 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है. आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है जबकि गुर्जर समेत 5 जातियों को एमबीसी यानी यानी अति पिछड़ा वर्ग के तहत आरक्षण दिया जा रहा है.


ओबीसी जातियों का गुस्सा पड़ सकता है भारी
200 सीटों वाली राजस्थान की विधानसभा में बहुमत के लिए 100 सीटें चाहिए. कम से कम 50 विधायक ओबीसी समुदाय से चुनकर आते हैं. इसमें सिर्फ जोधपुर मंडल से ही कांग्रेस के 15 ओबीसी विधायक बीती विधानसभा में जीतकर आए थे. राजस्थान में ओबीसी नेता अशोक गहलोत के चेहरे पर बड़ी संख्या में वोटर कांग्रेस की ओर शिफ्ट हुए थे. बीजेपी हिंदी पट्टी वाले राज्यों में ओबीसी जातियों पर पूरा फोकस कर रही है. और राजस्थान में भी पार्टी इसी रणनीति के तहत काम हो रहा है. अगर कांग्रेस ऐसा कोई फैसला जो अशोक गहलोत के खिलाफ जाता है तो बीजेपी इसे भुनाने में देर नहीं लगाएगी.


राजस्थान में कांग्रेस के लिए जरूरी है कि वो अशोक गहलोत हों या सचिन पायलट दोनों ही नेताओं को हर हाल में मना कर रखे. जातियों के समीकरण में दोनों नेताओं मिलकर बीजेपी का सामना कर सकते हैं. लेकिन दोनों में किसी एक की नाराजगी कांग्रेस के लिए एक और झटके की पटकथा लिख सकती है.