20 लोगों को लाइन में खड़ा किया और गोली मार दी, बेहमई में उस दिन क्या हुआ था?
14 फरवरी साल 1981, इसी दिन बेहमई में फूलन देवी ने करीब 20 ठाकुरों को गोली से छलनी कर दिया था. बेहमई कांड ने ही फूलन को बैंडिट क्वीन बनाया.
तारीख 14 फरवरी साल 1981, उत्तर प्रदेश कानपुर के पास बेहमई गांव में डाकुओं की रानी कही जाने वाले फूलन देवी ने एक ही गांव के 20 ठाकुरों की लाइन से गोली मारकर हत्या कर दी.
यह एक ऐसी घटना थी, जिसके बारे में सुनकर आज भी लोगों की रूह कांप उठती है. यहां के लोग 14 फरवरी को भयावह हत्याकांड के लिए भी याद करते हैं. ये वही काला दिन है जब डकैतों की रानी कही जाने वाली फूलन देवी ने बेहमई गांव में एक साथ करीब 20 लोगों को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया था. आइए आज इस नरसंहार की पूरी कहानी जानते हैं..
मारे गए लोगों को आज भी किया जाता है याद
14 फरवरी साल 1981, इसी दिन बेहमई में फूलन देवी ने करीब 20 ठाकुरों को गोली से छलनी कर दिया था. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार इस गांव में आज भी हत्याकांड में मारे गए लोगों की याद में स्मारक बना है. इस स्मारक के दीवार पर बीस लोगों के नाम दर्ज हैं. बेहमई कांड ने ही फूलन को बैंडिट क्वीन बनाया.
क्यों फूलन ने मारी गोली
कहा जाता है कि फूलन देवी जब 16 साल की थी तब बेहमई के ठाकुरों ने उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया था. उस वक्त वह किसी तरह ठाकुरों के चंगुल से अपनी जान बचाकर भाग निकलने में कामयाब रही थी. लेकिन फूलन ने अपने साथ हुए इस अन्याय को याद रखा. फूलन देवी साल 1981 में एक बार फिर बेहमई गांव में पहुंची. इस बार वो कोई आम लड़की नहीं बल्कि डाकुओं की रानी थी.
14 फरवरी को फूलन देवी ने बेहमई गांव के 30 मर्दों को घेर लिया और उन पर गोलियां चलाई. इस हत्याकांड में 22 लोगों की मौत हो गई थी. तब फूलन केवल 18 साल की थी.
पूरी घटना को समझने के लिए जानते हैं कौन हैं फूलन देवी
फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 को यूपी में जालौन के घूरा का पुरवा में हुआ था. वह गरीब और 'छोटी जाति' की जरूर थी लेकिन बचपन से ही अपने हक के लिए आवाज उठाती रही थीं. उन्हें जब पता चला की उसके पैतृक जमीन को उसके चाचा ने हड़प लिया है तब 10 साल की उम्र में ही वह अपने चाचा से भिड़ गई.
जिसके सजा के तौर पर घरवालों ने उसकी शादी 10 साल की ही उम्र में अपने से 30-40 साल बड़े आदमी से करवा दी. उस आदमी ने फूलन देवी के साथ बलात्कार किया. धीरे-धीरे फूलन देवी का स्वास्थ्य खराब होने लगा और उन्हें वापस अपने मायके आना पड़ गया. कुछ दिन बाद जब वह वापस गई तो पता चला की उनके पति ने दूसरी शादी कर ली है.
(फोटो क्रेडिट- बैंडिट क्वीन)
डाकुओं से हुई दोस्ती
धीरे धीरे फूलन का उठना-बैठना डाकुओं के होने लगा. हालांकि उन्होंने कभी ये नहीं बताया कि उनकी डाकुओं के दोस्ती अपनी मर्जी से हुई या उन लोगों ने उन्हें उठा लिया था. अपनी आत्मकथा में फूलन ने इस बारे में बस इतना लिखा है कि 'शायद किस्मत को यही मंजूर था'.
डाकुओं के गिरोह में फूलन के आने के बाद मतभेद शुरु होने लगा. सरदार बाबू गुर्जर फूलन पसंद नहीं थी. इस बात को लेकर विक्रम मल्लाह ने उसकी हत्या कर दी और खुद सरदार बन गया. अब फूलन देवी विक्रम के साथ रहने लगी. कुछ दिनों बाद इसी गिरोह की भिड़ंत ठाकुरों के एक गैंग से हुई. ठाकुर का गैंग बाबू गुज्जर की हत्या से नाराज था और उसका मानना था कि गुज्जर की मौत की जिम्मेदार फूलन है.
ठाकुर गैंग की विक्रम मल्लाह गिरोह से लड़ाई हुई जिसमें विक्रम मल्लाह मारा गया. फूल देवी पर बनी फिल्म 'बैंडिट क्वीन' में दिखाया उन ठाकुरों के गिरोह ने फूलन को किडनैप कर बेहमई में 3 हफ्ते तक बलात्कार किया. हालांकि माला सेन की एक किताब जिसमें फूलन देवी के बारे में लिखा गया है उसमें इस बात को कभी खुल के नहीं कहा है.
बेहमई से छूटने के बाद फूलन डाकुओं के गैंग में शामिल हो गई. साल 1981 में वह बेहमई गांव लौटी. वहां उसने कुछ ठाकुरों को पहचान लिया. जिसके बाद फूलन ने गांव से 22 ठाकुरों को निकालकर गोली मार दी.