नई दिल्ली: गाजियाबाद की रहने वाली बीना चंद्रा को मारने के आरोप में पति के साथ ससुराल वालों को गाजियाबाद की स्पेशल कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुना दी है. पति पर आरोप लगा है कि परिवार वालों के साथ मिलकर बीना पर मिट्टी का तेल डाला था. जबकि बीना के सास-ससुर भी इस केस में आरोपी थे लेकिन उनकी मृत्यु हो चुकी है.


करीब एक साल पहले 2 जनवरी, 2017 की सुबह, वकील विद्या भूषण शर्मा ने कुछ पुरानी फाइलों को फिर से खोलने की सोची. ऐसा उन्होंने तब किया जब वे साल 1982 का दहज उत्पीड़न का केस देख रहीं थी. जब वह इस केस को देख रही थी उसमें ये था कि सभी आरोपी को फरार घोषित कर दिया गया था. फिर उन्होंने सोचा कि इस केस को फिर से स्टडी किया जाए जिससे की आरोपी को सजा दिलाई जा सकती है. करीब एक साल तक इस केस की सुनवाई चली और फिर कोर्ट का फैसला सामना आया.

मोदीनगर की रहने वाली बीना ने साल 1981 में पिलखुवा में रहने वाले एक बिजनेसमैन विनय से शादी की थी. शादी के कुछ दिनों बाद ही ससुराल वालों ने उसे दहेज के लिए परेशान करना शुरु कर दिया था. शर्मा ने कहा, ऐसा कुछ समय तक चलता रहा. फिर 19 जून,1982 को उसके पति ने परिवार वालों के साथ मिलकर बीना पर मिट्टी का तेल डाला जिससे उनकी मृत्यु नहीं हुई. इसको देख पति और ससुराल वालों को लगा कि अभी तक बीना नहीं मरी है. फिर दरिंदगी की हदें पार करते हुए पति और ससुराल वालों ने एक बार फिर से बीना के ऊपर मिट्टी का तेल डाला और उसपर मिर्च छिड़क दी. इतना ही नहीं ससुराल वालों ने उसे सबके सामने तीसरे मंजिल से दूसरी मंजिल पर फेंक दिया.

उस वक्त बीना के रोने से पड़ोसी इक्ट्ठा हो गए थे और आरोपियों को पकड़ लिया था. पड़ोसियों ने उन्हें पकड़कर पुलिस को सौंप दिया था जिसमें बीना का पति और देवर अजय भागने में कामयाब रहे थे. उसी शाम को बीना के पिता ने पुलिस में पति विनय और ससुराल वालों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी. पिलखुवा पुलिस ने आईपीसी की धारा 147 और 302 (हत्या) के तहत उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी. केस में यह भी पाया गया कि कई बार बीना के साथ दहेज उत्पीड़न भी किया गया था.

वकील विद्या शर्मा आगे कहती है कि बीना के पिता चंद्रा ने शिकायत में बताया था कि उन्होंने ससुराल वालों को कुछ दिन पहले ही 12,000 रुपए दिए थे और उनसे कहा था कि बीना को कोई नुकसान ना पहुंचाए. इस केस की कुछ दिनों तक सुनवाई भी चली थी. सुनवाई के दौरान शिकायतकर्ता और चार गवाह के बयान भी दर्ज किए गए थे और पुलिस ने आरोप पत्र भी दायर किया था. यह मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबित पड़ा था और इस मामले में करीब 36 साल लग गए. साथ ही तीन जजों की कोर्ट में मामला घूमता रहा.

साल 1995 से प्रैक्टिस कर रही शर्मा के साथ ऐसा पहली बार नहीं है कि जब वह किसी केस के निष्कर्ष पर पहुंची हो. इससे पहले भी वे कई केस के आरोपी को सजा दिलाने में कामयाब रही हैं.