नई दिल्ली: 2007 के अजमेर ब्लास्ट में सीबीआई मामलों के विशेष न्यायालय ने तीन को दोषी करार दिया है. भावेश, देवेंद्र गुप्ता और सुनील जोशी दोषी करार किये गये हैं. सुनील जोशी की मौत हो चुकी है. असीमानंद और चंद्र शेखर लैवे बरी किये गये.

सीबीआई मामलों के विशेष न्यायालय ने अजमेर दरगाह ब्लास्ट मामले में फैसला बुधवार को आ गया. मामले में छह फरवरी को अंतिम बहस पूरी हो गई थी. दरगाह में 11 अक्टूबर 2007 को विस्फोट हुआ था. तीन लोग मारे गए थे, 15 घायल हुए थे. इस मामले में नौ अभियुक्त दस साल से ट्रायल का सामना कर रहे थे.

ये है मामला

-करीब 9 साल पहले अजमेर की ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह पर हुए बम ब्लास्ट की घटना में 3 लोगों की जान भी गई थी और 15 लोग जख्मी हुए थे, जिसका फैसला 8 मार्च तक जिला और सेशन न्यायालय जयपुर ने टाल दिया था. सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष की तरफ से करीब 149 गवाह पेश किए गए, जिसमें से करीब 26 महत्वपूर्ण गवाह पक्षद्रोही हो गए.

-इस मामले की सबसे पहले राजस्थान एटीएस ने जांच शुरू की. एटीएस ने पूरे मामले में तीन आरोपी देवेन्द्र गुप्ता, लोकेश शर्मा और चन्द्रशेखर लेवे को साल 2010 में गिरफ्तार कर लिया.

-वहीं 20 अक्टूबर 2010 को मामले से जुड़ी पहली चार्जशीट भी कोर्ट में पेश कर दी गई, लेकिन इसके बाद अप्रैल 2011 में गृह विभाग द्वारा एक नोटिफिकेशन जारी करके मामले की जांच एनआईए को सौंप दी गई.

-एनआईए ने मामले में जांच आगे बढ़ाई और हर्षद सोलंकी, मुकेश बसानी, भरतमोहनलाल रतेश्वर, स्वामी असीमानंद, भावेश अरविन्द भाई पटले और मफत उर्फ मेहूल को गिरफ्तार किया. वहीं मामले में तीन चार्जशीट और पेश की.

-पूरे मामले में अभियोजन पक्ष की तरफ से 442 दस्तावेजी साक्ष्य पेश करते हुए 149 गवाहों के बयान दर्ज करवाए गए, जिसमें से 26 गवाह पक्षद्रोही हो गए.
- वहीं बचाव पक्ष की तरफ से 38 दस्तावेजी साक्ष्य पेश करते हुए 2 गवाह पेश किए गए.

-अभियोजन पक्ष भी मानता है कि जो गवाह पक्षद्रोही साबित हुए हैं. वे काफी महत्वपूर्ण हैं. वहीं बचाव पक्ष ने मामले में कई आरोपियों को झूठा फंसाने की बात भी कही है. मामले में कोर्ट ने लंबी सुनवाई की है. ऐसे में अब सबकी नजरें कोर्ट पर टिकी हुई हैं.

पहले इस मामले में आरएसएस से जुड़े इंद्रेश कुमार और प्रज्ञा सिंह ठाकुर का नाम भी सामने आया था लेकिन जांच कर रही एनआईए ने इन दोनों के अलावा दो अन्य लोग जयंत भाई और रमेश गोहिल को क्लीन चिट दे दी थी. एनआईए ने 6 फ़रवरी 2017 जिस दिन सुनवाई पूरी हुई थी उसी दिन एक रिपोर्ट अदालत में पेश की थी जिसमे कहा गया कि इंद्रेश, प्रज्ञा, रमेश और जयंत के खिलाफ मामला चलाने लायक साक्ष्य नहीं है. इस रिपोर्ट को कोर्ट अपने रिकॉर्ड पर ले चुकी है.