नई दिल्ली: दिल्ली पुलिस बुराड़ी में 11 लोगों की मौत के केस में साइकोलॉजिकल एटाप्सी यानी मनोवैज्ञानिक पोस्टमॉर्टम करवाने की तैयारी कर रही है. भारत में इस तरह की वैज्ञानिक जांच बहुत कम मामलों में की गई है. साइकोलॉजिकल एटाप्सी आत्महत्या के मामलों में किया जाता है. इस तरह की फारेंसिक जांच के पीछे जांचकर्ताओं का मकसद आत्महत्या करने वाले व्यक्ति के दिमाग के अन्दर के तथ्यों का पता लगाना होता है.


इस तरह के पोस्टमॉर्टम में आत्महत्या करने वाले व्यक्ति के शरीर की ज़रुरत नहीं होती, उसकी क्लीनिकल पोस्टमार्टम रिपोर्ट के तथ्यों को इसमें शामिल किया जाता है. मरने वाले के सामाजिक जीवन से जुड़े लोगों से जांचकर्ता पूछताछ करते हैं, और मरने वाले के आखिरी घंटों में उसके दिमाग में चलने वाले तूफान की स्थिति का अंदाज़ा लगाते हैं.


इसके अलावा जांचकर्ता आत्महत्या करने वाले शख्स की हिस्ट्री खंगालते हैं, ताकि उसके बारे में मेडिकल हिस्ट्री हासिल की जा सके. क्लीनिकल पोस्टमॉर्टम में उसके पेट में खाना था या नहीं? इसकी जांच होती है, उस खाने के प्रकार और मात्रा से भी जांचकर्ता उसकी आखिरी मनोदशा के बारे में अंदाजा लगाते हैं.


90 फीसदी आत्महत्या के मामलों में देखा गया है कि पीड़ित व्यक्ति किसी ना किसी दिमागी विकार का शिकार होता है, जिसके चलते वो इस तरह का अप्रत्याशित कदम उठाता है. जांचकर्ताओं के लिए साइकोलॉजिकल एटाप्सी में उस विकार को पहचानने की भी चुनौती होती है. इसके अलावा इस तरह की जांच में उस बाहरी तथ्य व्यक्ति या धटना के बारे में पता लगाया जाता है, जिसकी वजह से पीड़ित का दिमाग सामान्य व्यक्तित्व से हट कर एक “खास” व्यक्तित्व का करैक्टर हासिल कर लेता है.


मसलन अगर बुराड़ी मामले में वो कौन बाहरी व्यक्ति था? जो ललित के ब्रेन को शिफ्ट करने में मदद कर रहा था, या फिर वो कौन सी धटनाएं थी? जो ललित के ब्रेन को इस हद तक शिफ्ट कर रही थी,फारेंसिक साइंस के मुताबिक कोई एक घटना, किसी व्यक्ति के ब्रेन को इतना शिफ्ट नहीं कर सकती, घटनाओं का रिपीटीशन इसके के लिए ज़रुरी है. जांच कर्ताओं के लिए ये जानना भी बेहद अहम है कि वो रिपीटीशन क्या था और कैसा था.


माना जा रहा है कि ललित और उसका परिवार एक खास तरह की साइको डिसीज का शिकार था जिसे “शेयर साइकोसिस” कहते हैं. इस बीमारी या विकार में एक व्यक्ति अपनी दिमागी बिमारी या विकार का प्रभाव अपना अनुसरण करने वालों पर डालता है, और तब तक डालता है जब तक वो पूरी तरह उसकी गिरफ्त में ना आ जाएं. इस तरह के परिवार का मुखिया डिल्यूशन यानी वास्तविक तथ्यों से परे एक वर्चुअल प्रभाव महसूस करने लगता है, और हेल्यूसिनेट ब्रेन यानी शारीरिक तौर पर अनुपस्थित व्यक्ति या व्यक्तियों से बात करने लगता है.


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जांचकर्ता साइको एटाप्सी में ये पता करने की कोशिश करते हैं कि इसका ओरीजन यानी शुरुआत किसके प्रभाव या किसकी वजह से हुई ? पीड़ित व्यक्ति की विचारधारा और उससे होने वाली प्रतिक्रिया की प्रेडिक्टिव एनालिसिस की जाती है. और नतीज़ों को उस व्यक्ति के बारे में हासिल जानकारी के साथ मिला कर देखा जाता है. और पता किया जाता है कि वो मानसिक विकार कि किस अवस्था में था ? उसके व्यक्तित्व और पिछले कुछ महीनों की धटनाओं में उसके सामाजिक दायरे का कितना और किस तरह का प्रभाव था?


फारेंसिक साइको एटाप्सी का मकसद मरने वाले व्यक्ति या व्यक्तियों के दिमागी तूफान और उसका ओरीजन पता करना होता है, जिससे उसके ओरीजिनेटर और जिम्मेदार लोगों तक पहुंचने में मदद मिल सके. अब देखना ये होगा कि बुराड़ी केस के जांचकर्ता विज्ञान के इस टूल का इस्तेमाल कर के किस नतीज़े तक पहुंचते हैं? क्या इस जांच से ये साबित होगा कि इन लोगों के मरने के पीछे कोई ज़िंदा व्यक्ति शामिल था? या फिर ये साबित होगा कि इस सबकी मौत के लिए ये खुद ज़िम्मेदार हैं.


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