नई दिल्ली/रांची : कोयलांचल की 'काली हवा' ने कई जाने ली हैं. हर तरफ फैले काले कारोबार की जड़ें लगातार मजबूत हुई हैं. ऐसे में धनबाद के खूनी संग्राम ने नया रूप ले लिया है. अब तक के हुए सबसे बड़े हत्याकांड में एक साथ चार लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया. इस बार भी खूनी संग्राम की लकीर 'सिंह मेंशन' तक पहुंच गई है.


डिप्टी मेयर नीरज सिंह ही मुख्यतौर पर निशाने पर थे

मारे गए पूर्व डिप्टी मेयर नीरज सिंह ही मुख्यतौर पर निशाने पर थे. बताया जा रहा है कि उनके शरीर पर 67 गोलियों के निशान पाए गए हैं. हत्याकांड को अंजाम देने वाले जो शूटर आए थे वे काफी खूंखार थे. गोलियों की इतनी बारिश वह भी सरेशाम...इसे देखकर लोग दहशत में हैं. इस घटना ने एकबार फिर कानून व्यवस्था पर सवाल उठा दिए हैं.

सिंह मेंशन' तक मामले की जांच फिर पहुंचेगी

हत्यारों के बारे में अभी कोई जानकारी नहीं है, लेकिन चर्चा होने लगी है कि 'सिंह मेंशन' तक मामले की जांच फिर पहुंचेगी. नीरज सिंह, झरिया से विधायक संजीव सिंह के चचेरे भाई थे. दोनों के बीच राजनीतिक वर्चस्व को लेकर लंबे समय से तनातनी भी चलती रही है. लेकिन, इस खानदान के दुश्मनों की फेहरिश्त भी काफी लंबी है.

गैंग्स ऑफ धनबाद में अबतक 32 जानें जा चुकी थीं

गैंग्स ऑफ धनबाद में अबतक 32 जानें जा चुकी थीं. लेकिन, इन चार हत्याओं के बाद अब यह आंकड़ा 36 पहुंच चुका है. इनमें से ज्यादातर मामलों में पुलिस ने की ओर से ढीली कार्रवाई की गई है. कुछ मामलों में तो आरोपियों ने आत्मसमर्पण किया है लेकिन, कई मामले अभी तक ट्रेस नहीं हो पाए हैं.

'सूरजदेव सिंह' का नाम फिर चर्चा में है

इस हत्याकांड के साथ ही सूर्यदेव सिंह (जिन्हें स्थानीय लोग 'सूरजदेव सिंह' कहते हैं) का नाम फिर चर्चा में है. सूरजदेव सिंह की कहानी 'गॉडफादर' से कम नहीं है. धनबाद में जहां सूरजदेव के नाम का 'सिक्का' चलता है वहीं लोग इनके नाम पर आज भी मरने-मारने को तैयार रहते हैं. कई लोग तो इस परिवार को धनबाद का 'पहला परिवार' तक कहते रहते हैं.

सब मौतों के पीछे कोयले की कहानी ही मानी जाती है

इन सब मौतों के पीछे कोयले की कहानी ही मानी जाती है. हर कोई इस कारोबार को अपने कब्जे में लेना चाहता है. लेकिन, इसकी शुरूआत कहां से हुई. जो 'सिंह मेंशन' आज विवादों का केंद्र बना हुआ है उसकी कहानी क्या है और आखिर कौन हैं सूरजदेव सिंह...इन सबका जवाब जानना काफी जरूरी है.

सूरजदेव सिंह की कहानी...जी हां ! जानिए पूरी कहानी

असल में नौकरी न मिलने से परेशान सूरजदेव सिंह उत्तर प्रदेश के बलिया से धनबाद आए थे. यहां उन्होंने मजदूर के तौर पर अपने करियर की शुरूआत की थी. इसके बाद इन्होंने कोयला मजदूरों की ट्रेड यूनियन की अगुवाई की और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. आलम यह हो गया कि धनबाद में इस शख्स की इजाजत के बिना पत्ता भी नहीं हिलता था.

चंद्रशेखर के करीबी होने के कारण राजनीतिक कद बढ़ा

इस बीच पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के करीबी होने के कारण इनका राजनीतिक कद भी बढ़ता गया. अपने स्थानीय रसूख और संबंधों के बल पर वे मजबूत स्थिति में पहुंचते ही गए. उनके कद का अंजादा इसी से लगाया जा सकता है कि उनकी मौत के बाद से लेकर आजतक धनबाद की झरिया सीट पर उन्हीं के परिवार का कब्जा है.

उनके छोटे बेटे संजीव सिंह बीजेपी से झरिया के विधायक

अभी भी उनके छोटे बेटे संजीव सिंह बीजेपी से झरिया के विधायक हैं. पूरे इलाके के हर महत्वपूर्ण पोस्ट पर परिवार का ही कब्जा है. लेकिन, जिस 'सिंह मेंशन' को सूरजदेव सिंह ने संजोया था वह अब बिखर चुका है. सिंह मेंशन में रहने वाले पांच भाइयों में से चार की गृहस्थी अब अलग बन चुकी है.

सूरज देव सिंह के पांच भाई थे

सूरज देव सिंह के पांच भाई थे. एक भाई विक्रम सिंह अपने बलिया स्थित पैतृक स्थान पर ही रहते हैं. जबकि, राजन सिंह, बच्चा सिंह और रामधीर सिंह अपने भाई सूरजदेव सिंह के साथ सिंह मेंशन में रहते थे. लेकिन, अब बच्चा सिंह ने अपना अलग ठिकाना बना लिया है जिसका नाम 'सूर्योदय' है.

राजनीतिक और व्यवसायिक प्रतिद्वंदिता हो गई

राजन सिंह ने भी अपना अलग घर बसा लिया है और आलिशान घर का नाम 'रघुकुल' रखा. सिंह मेंशन में रामधीर सिंह और सूरजदेव सिंह का परिवार ही रहता है. इस बीच राजन सिंह और बच्चा सिंह के परिवार से सूरजदेव सिंह के परिवार की दूरी बढ़ गई. उनके बीच राजनीतिक और व्यवसायिक प्रतिद्वंदिता हो गई. इसके साथ ही परिवार की पकड़ पूरे कोयलांचल में पहले से कमजोर हो गई.

वर्तमान में सिंह मेंशन के मुखिया संजीव सिंह

वर्तमान में सिंह मेंशन के मुखिया झरिया विधायक संजीव सिंह है. संजीव, सूरजदेव सिंह के दूसरे बेटे हैं. इससे पहले संजीव की मां कुंती देवी झरिया से विधायक रही थी (2004 से 2014). इधर संजीव सिंह और चचेरे भाई नीरज सिंह के बीच राजनीतिक संघर्ष भी था. अंजादा इसी से लगाया जा सकता है कि नीरज सिंह जहाँ झरिया से कांग्रेस के उम्मीदवार थे तो वहीँ संजीव सिंह बीजेपी से.

पहले संजीव सिंह के करीबी रंजन सिंह की हत्या हुई थी

नीरज सिंह की हत्या से पहले संजीव सिंह के करीबी रंजन सिंह की हत्या हुई थी. इसके साथ ही बताया जा रहा है कि झरिया में नीरज और संजीव के समर्थकों को बीच गोलीबारी कुछ ही दिनों पहले हुई थी. अब पुलिस दोनों ही मामलों की कड़ियों को जोड़कर अपराध का खुलासा करने का कोशिश में लगी है. लेकिन, सच्चाई यह है कि आजतक पुलिस इन मामलों में कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई है.

1990 के बाद से यहां हत्याओं का दौर चल रहा है

1990 के बाद से यहां हत्याओं का दौर चल रहा है. सूरजदेव सिंह की मौत के बाद से यहां की सत्ता पर काबिज होने की कोशिश कई लोगों ने की. लेकिन, खून की नदियां भी खूब बहीं. अब बाहरियों की हत्या के बाद कुनबे के अंदर ही घमासान मचा हुआ है. पुलिस ने खानदान के सभी घरों के बाहर भारी पहरा लगा दिया है. बताया जा रहा है कि नीरज की हत्या के बाद बड़ा गैंगवार फिर हो सकता है.