नई दिल्ली: फर्जी एनकाउंटर में केरल पुलिस द्वारा मारे गए कथित नक्सल लीडर के परिजनों को 51 साल बाद मुआवजा मिला है. केरल सरकार ने उनके परिजनों को 50 की मुआवजा राशि देने का ऐलान किया है.
गौरतलब है कि 18 फरवरी, 1970 को यह फर्जी पुलिस एनकाउंटर हुआ था. आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ हथियारबंद आवाज उठाने वाले नक्सली नेता को पुलिस ने मौत के घाट उतारा था. यह भा दावा किया जाता है कि यह पुलिस का भारत में पहला फर्जी एनकाउंटर था.
वर्गिस के दो भाईयों और बहनों ने इस बारे में केरल हाईकोर्ट में अपील की थी. उनका दावा था कि पुलिस द्वारा हत्या के मामले में मिलने वाले मुआवजे के वे कानूनी हकदार हैं. जो, इतने सालों में सूद के साथ 50 लाख की रकम हो चुकी है.
इसके बाद अदालत ने वर्गिस के रिश्तेदारों को सरकार के पास जाने की इजाजत दे दी. कैबिने ने भी 50 लाख के मुआवजे को लेकर फैसला ले लिया. अब उनके परिजनों को यह पैसा मिल जाएगा. जिस समय वर्गिस मारे गए थे उनकी उम्र 31 साल की थी.
कई सालों तक तो इसे सामान्य मुठभेड़ ही माना जाता रहा. लेकिन, 1998 में कांस्टेबल रामचंद्रन ने स्वीकार किया कि यह फर्जी एनकाउंटर था. बताया गया कि वर्गिस के हाथ पीछे की तरफ बांधे हुए थे. फिर उनको वायनाड के जंगलों में ले जाया गया था और वहां गोली मार दी गई थी.
हालांकि, इस मामले का खुलासा देर से हुआ. 2006 में बयान देने वाले कांस्टेबल की भी मौत हो गई. इसके बाद मामले की जांच कर रही सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल की. 2010 में रिटायर्ड पुलिस ऑफिसर के. लक्ष्मणा को स्पेशल अदालत ने जेल की सजा सुनाई. लक्ष्मणा उस समय डिप्टी एसपी के तौर पर तैनात थे.
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