नई दिल्ली: दिल्ली का चर्चित निर्भया कांड अभी तक दिल्ली वाले भूले नहीं होंगे और ऐसी घटना को देश कैसे भुला सकता है जिसने पूरे देश को झकझोर दिया हो. 16 दिसंबर की रात पांच दरिंदों ने 23 साल की निर्भया के साथ क्रूरतम तरीके से गैंग रेप किया था. निर्भया ने मौत से 13 दिन तक जूझते हुए इलाज के दौरान सिंगापुर में दम तोड़ दिया था. इस भयानक हादसे के बाद देश की राजधानी दिल्ली को 'रेप की राजधानी' कहा जाने लगा. अब एक बार फिर यह सवाल उठता है कि निर्भया कांड के पांच साल बाद राष्ट्रीय राजधानी महिलाओं के लिए दिल्ली कितनी सुरक्षित हुई है?



क्या महिलाओं के लिए दिल्ली अब सुरक्षित है?


ऐसे में अब सवाल उठता है कि क्या महिलाओं के लिए दिल्ली अब सुरक्षित है? आपराधिक आंकड़ों में तो इसकी पुष्टि होती नहीं दिखती. दिल्ली और इसके आसपास के क्षेत्रों में रह रही और काम कर रहीं महिलाएं केंद्र और राज्य सरकारों के महिला सुरक्षा के दावों के विपरीत खुद को यहां सुरक्षित महसूस नहीं करतीं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की 2016-17 में जारी आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में अपराध की उच्चतम दर 160.4 फीसदी रही, जबकि इस दौरान अपराध की राष्ट्रीय औसत दर 55.2 फीसदी है. इस समीक्षाधीन अवधि में दिल्ली में रेप के लगभग 40 फीसदी मामले दर्ज हुए.

क्या है महिलाओं की राय?

नोएडा में काम कर रहीं हरियाणा की सुमित्रा गिरोत्रा दिल्ली के पॉश इलाकों में भी खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करतीं. वह कहती हैं, "दिन-दहाड़े महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की खबरें अजीब लगती हैं, लेकिन दिल्ली की सड़कों पर उनका मौखिक रूप से उत्पीड़न और रेप की धमकियां अजीब नहीं, बल्कि आम बात हो गई है. मैं भी कई बार इसकी शिकार रही हूं." वह कहती हैं, "यह मानसिकता हर जगह है, लेकिन दिल्ली की स्थिति और भी बदतर है. मैं देश के अन्य हिस्सों में भी गई हूं, लेकिन मैंने कहीं भी खुद को इतना असुरक्षित नहीं महसूस किया."


ऑटो या कैब लेना भी आजकल खतरे से खाली नहीं


गुरुग्राम की 24 वर्षीया डिजाइनर उत्कर्षा दीक्षित का कहना है कि रात नौ बजे के बाद घर से बाहर रहना महिलाओं के लिए भयावह है. वह कहती हैं, "आपको नहीं पता कि आपके साथ खड़ा या आपको घूर रहा कौन सा शख्स आपके साथ क्या छेड़खानी कर दे. ऑटो या कैब लेना भी आजकल खतरे से खाली नहीं है. मैं पेपरस्प्रे के बगैर सफर नहीं कर सकती. मेरी खुद की सुरक्षा के लिए यह जरूरी है. मैं पुलिस पर भी निर्भर नहीं रह सकती, क्योंकि ज्यादातर समय उनका हेल्पलाइन नंबर काम ही नहीं करता."


केंद्र शासित प्रदेश होने के कारण दिल्ली में कानून-व्यवस्थासंभालने का जिम्मा केंद्र सरकार पर है, लेकिन राष्ट्रीय राजधानी में अपराधों में पर अंकुश लग पाना दुर्भाग्यपूर्ण है.