यूपी की राजनीति में बोलती थी डीपी यादव की तूती, लोग कहते थे मिनी सीएम
एक वक्त था जब डीपी यूपी की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रखते थे और उन्हें मुलायम सिंह का सबसे खास माना जाता था. चलिए आपको बताते हैं डीपी यादव की पूरी कहानी.
नई दिल्ली: नीतीश कटारा हत्याकांड के मुख्य गवाह अजय कटारा ने बाहुबली नेता डीपी यादव और उसके साथियों पर 5 करोड़ की रंगदारी मांगने और जान से मारने की धमकी देने की FIR दिल्ली के वसंत कुंज साउथ थाने में दर्ज कराई है. अजय ने अपनी शिकायत में कहा है कि 14 मार्च को उन्हें फोन कर 5 करोड़ रुपये मांगे गए और पुलिस एनकाउंटर में मरवाने की धमकी दी गई.
अजय के मुताबिक उन पर आठ बार कातिलाना हमले हो चुके हैं जो डीपी ने ही कराए हैं. अजय की गवाही पर ही विकास यादव, विशाल यादव और सुखदेव यादव को कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी. विकास यादव, डीपी का बेटा है और नीतीश कटारा हत्याकांड का मुख्य अभियुक्त है.
यह कोई पहली बार नहीं है जब डीपी यादव के खिलाफ मामला दर्ज हुआ हो. एक वक्त था जब डीपी यूपी की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रखते थे और उन्हें मुलायम सिंह का सबसे खास माना जाता था. माना जा रहा था कि 2014 में डीपी को बीजेपी में जगह मिल जाएगी. बीजेपी नेताओं से डीपी की कई बार बातचीत भी हुई थी और उन्होंने अमित शाह से मुलाकात भी की थी.
2004 में भी वह बीजेपी में शामिल हुए थे लेकिन कई लोगों ने उनका विरोध किया था जिसके बाद उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. 2009 में वह बसपा के टिकट पर बदायूं से लोकसभा चुनाव लड़े थे लेकिन सपा के धर्मेंद्र यादव ने उन्हें हरा दिया.
2012 में जब बसपा ने उनका टिकट काटा तो उन्होंने सपा से संपर्क किया लेकिन अखिलेश ने उन्हें पार्टी में लेने से इंकार कर दिया. डीपी ने 2007 में खुद की पार्टी भी बनाई थी जिसका नाम है राष्ट्रीय परिवर्तन दल.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में डीपी का खासा प्रभाव माना जाता है हालांकि उनकी छवि बाहुबली नेता की ही रही है. नोएडा के सर्फाबाद गांव में पैदा हुए डीपी यादव का पूरा नाम धर्मपाल यादव है. राजनीति का चस्का उन्हें बचपन से ही था.
1989 में वो पहली बार विधायक बने थे. मुलायम ने उन्हें पंचायती राज मंत्री बनाया था. डीपी को जानने वाले लोग बताते हैं कि उस वक्त उन्हें मिनी सीएम कहा जाता था. डीपी का जलवा इतना था कि वो अफसरों को कुछ नहीं समझते थे और उनके साथ कफी सख्ती से पेश आते थे.
1991 और 1993 में भी वह विधायक रहे, 1996 में लोकसभा के सदस्य भी रहे, 2004 में बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा भी भेजा. लेकिन 2002 में नीतीश कटारा का कत्ल हुआ जिसका आरोप डीपी के बेटे और भतीजे पर लगा. बुलंदशहर के खुर्जा इलाके में नीतीश की लाश मिली थी. इस मामले में विकास और विशाल को उम्रकैद की सजा हुई थी.
2015 में उन्हें हत्या के एक मामले में उम्रकैद की सजा भी सुनाई गई थी. इन्हीं दोनों मामलों के बाद से डीपी यादव का राजनीतिक करियर डूबने लगा. सभी राजनीतिक दल उन्हें अपने साथ जोड़ने से कतराने लगे. डीपी से जुड़े लोग भी उनसे किनारा करने लगे. उनकी पार्टी के लोग टूटने लगे और दूसरी पार्टियों का रुख करने लगे.