Amritsar Row: पंजाब के अमृतसर में चल रहा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है. लवप्रीत तूफान को पुलिस हिरासत में लिए जाने के बाद अब 'वारिस पंजाब दे' संगठन भी खुलकर सामने आ गया है. इस बीच खालिस्तान का मुद्दा भी जोर पकड़ रहा है और अमृतपाल सिंह खुलकर खालिस्तान की मांग कर रहा है. अमृतपाल का कहना है कि हम शांतिपूर्वक इसकी मांग कर रहे हैं, जब हिंदू राष्ट्र बन सकता है तो खालिस्तान भी बन सकता है. इस दौरान उसने इंदिरा गांधी का भी जिक्र कर दिया. इंदिरा गांधी का जिक्र क्यों किया, आइये हम आपको बताते हैं.


पंजाब के अमृतसर में बवाल
चमकौर साहिब के वरिंदर सिंह का अपहरण कर मारपीट की गई. इस मामले का आरोप अमृतपाल सिंह और उसके साथियों पर लगाया गया. पुलिस में इन सबके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई. इस बीच पूछताछ के लिए पुलिस ने लवप्रीत तूफान को हिरासत में ले लिया. लवप्रीत के हिरासत में होने की जानकारी मिलते ही अमृतसर के अजनाला पुलिस स्टेशन के बाहर अमृतपाल के हजारों समर्थक बैरिकेडिंग तोड़ते हुए तलवारें लहराते दिखाई दिए. इसके साथ ही, लवप्रीत की रिहाई की मांग की गई. संख्या में ज्यादा अमृतपाल के समर्थकों के आगे पुलिस बेबस हो गई और तूफान की रिहाई के लिए मान गई.


खालिस्तान को लेकर खुलकर बोल रहा अमृतपाल सिंह
19 फरवरी को पंजाब के मोगा जिले के बुद्धसिंह वाला गांव में अमृतपाल सिंह ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को लेकर धमकी दी थी. एएनआई के अनुसार, अमृतपाल ने बयान दिया था कि अमित शाह ने खालिस्तान आंदोलन को न बढ़ने देने की बात कही थी तो मैंने बोला था कि इसी तरह इंदिरा गांधी ने भी किया था. अगर आप ऐसा करते भी हैं तो आपको इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. अगर 'हिंदू राष्ट्र' की मांग करने वालों से अमित शाह यही कहते हैं तो मैं देखूंगा कि क्या वह गृह मंत्री बने रहते हैं. अमृतपाल ने कहा कि जब हिंदू राष्ट्र की मांग हो सकती है तो हम खालिस्तान की मांग भी कर सकते हैं. खालिस्तान का विरोध करने की कीमत इंदिरा गांधी ने चुकाई थी. अब चाहे पीएम मोदी, अमित शाह या भगवंत मान कोई भी हो, हमें कोई नहीं रोक सकता है. 


क्या है खालिस्तान?
आज से करीब 93 साल पहले खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत हुई थी. साल 1929 में लाहौर सत्र के दौरान कांग्रेस के मोतीलाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज का प्रपोजल रखा था. उस समय मुस्लिम लीग, दलित और शिरोमणि अकाली दल ने मोतीलाल नेहरू के इस प्रपोजल की खिलाफत की थी. मुस्लिम लीग की अगुआई मोहम्मद अली जिन्ना कर रहे थे. दलितों के लिए अधिकारों की मांग के लिए डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अगुआई की थी. शिरोमणि अकाली दल की अगुआई मास्टर तारा सिंह ने की थी. यही वक्त था जब तारा सिंह ने सिखों के लिए पहली बार अलग राज्य करने की मांग रखी थी. साल 1947 में इस मांग ने आंदोलन का रूप ले लिया और इसे पंजाबी सूबा आंदोलन नाम दिया गया.


भारत की स्वतंत्रता के वक्त पंजाब का विभाजन 2 हिस्सों में हो गया था. उस वक्त भाषा के आधार पर शिरोमणि अकाली दल भारत में ही एक अलग सिख प्रदेश की मांग कर रहा था. हालांकि, आजाद भारत में स्थापित हुए राज्य पुनर्गठन आयोग ने अकाली दल की इस मांग मानने से साफ मना कर दिया था. इसके बाद पंजाब भर में 19 साल तक अलग सिख प्रदेश बनाने को लेकर आंदोलन और प्रदर्शन होते रहे. आंदोलन और प्रदर्शन में बढ़ रहीं हिंसा की घटनाओं को देखते हुए आखिरकार साल 1966 में इंदिरा गांधी सरकार ने पंजाब को तीन हिस्सों में विभाजित करने का फैसला किया, जिसमें सिखों की ज्यादा आबादी वाला पंजाब, हिंदी भाषा वालों के लिए हरियाणा और तीसरा भाग चंडीगढ़ था.


हालांकि, उस समय कई लोग ऐसे बंटवारे से नाखुश थे. उधर, 40 साल से अधिक वक्त से कनाडा और यूरोप में रहने वाले लोग खालिस्तान की मांग कर रहे हैं. साल 1979 में भारत से लंदन जाकर जगजीत सिंह चौहान ने खालिस्तान का प्रपोजल रखा और इसके लिए एक नक्शा भी पेश किया था. जगजीत सिंह चौहान ने लंदन में नई खालिस्तानी करेंसी जारी कर दी थी, जिससे दुनिया भर में हंगामा मच गया था. साल 1980 में भारत सरकार ने सिंह को भगोड़ा घोषित करके उनका पासपोर्ट रद्द कर दिया था.


ऑपरेशन ब्लू स्टार और इंदिरा गांधी का रोल
जरनैल सिंह भिंडरांवाले आनंद साहिब रिजोल्यूशन का कट्टर समर्थक था, जो देखते ही देखते आतंकी और खालिस्तान आंदोलन का बड़ा चेहरा सामने आया. 32 हिंदुओं की हत्या करने के लिए हर सिख को भिंडरांवाले उकसाता था. साल 1982 में भिंडरांवाले ने शिरोमणि अकाली दल के साथ मिलकर असहयोग आंदोलन की शुरूआत कर दी. इसके बाद पंजाब केसरी के संस्थापक और एडिटर लाला जगत नारायण की हत्या खालिस्तान आतंकियों ने कर दी. हत्या के बाद सुरक्षाबलों से अपने बचाव के लिए भिंडरांवाले स्वर्ण मंदिर में घुसकर बैठा रहा.


इस मामले पर करीब दो साल तक कांग्रेस सरकार ने कोई एक्शन नहीं लिया. इसके बाद इंदिरा सरकार ने स्वर्ण मंदिर को भिंडरांवाले और हथियारबंद समर्थकों से खाली कराने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार अभियान शुरू किया. 1 से 3 जून, 1984 के बीच पंजाब में रेल, सड़क और हवाई सेवाओं पर रोक लगा दी गई. स्वर्ण मंदिर की पानी और बिजली सप्लाई बंद कर दी गई. अमृतसर में कर्फ्यू लगा दिया गया. स्वर्ण मंदिर को हर तरफ से सील कर दिया गया. 5 जून, 1984 की रात स्वर्ण मंदिर परिसर के अंदर जाकर आगे से हमला शुरू किया गया, इस दौरान खालिस्तानी आतंकियों और सेना के बीच जमकर गोलीबारी हुई. हालात काबू में ना होने के चलते जनरल केएस बरार ने टैंक की मांग की. अगले ही दिन टैंकों को सीढ़ियों से नीचे लाया गया. गोलीबारी के कुछ घंटों बाद भिंडरांवाले और उसके कमांडरों के शव बरामद कर लिए गए. ऑपरेशन ब्लूस्टार 10 जून, 1984 को समाप्त हो गया. पूरे ऑपरेशन में सेना के 83 जवान शहीद हुए और 249 जवान घायल हुए थे. हमले में करीब 493 आतंकवादी मारे गए थे.


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