न्यायिक हिरासत और CBI हिरासत में क्या होता है अंतर? जानें क्या हैं नियम और कैसे लिया जाता है फैसला
Judicial Custody: आमतौर पर देखा जाता है कि एजेंसी या पुलिस की डिमांड के मुताबिक रिमांड नहीं दी जाती है. कोर्ट तीन या पांच दिनों की रिमांड देता है, जरूरत पड़ने पर इसे बढ़ाया जाता है.
Judicial Custody: आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. कई दिनों की सीबीआई रिमांड के बाद अब उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है. दिल्ली की कोर्ट ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजने का फैसला सुनाया. हालांकि 10 मार्च को सिसोदिया की जमानत याचिका पर भी सुनवाई होनी है, लेकिन ये तय है कि सिसोदिया की होली अब जेल में ही मनेगी. यानी मनीष सिसोदिया पहले सीबीआई हिरासत में थे और अब न्यायिक हिरासत में उन्हें रखा जाएगा. आइए जानते हैं कि न्यायिक हिरासत और सीबीआई हिरासत में क्या अंतर है.
क्या होती है सीबीआई हिरासत
मनीष सिसोदिया को 26 फरवरी को लंबी पूछताछ के बाद सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया था. इसके बाद सिसोदिया को सीबीआई कोर्ट में पेश किया गया. जहां से उन्हें कोर्ट ने पांच दिनों की सीबीआई हिरासत में भेजा. जब भी पुलिस या कोई जांच एजेंसी किसी आरोपी को गिरफ्तार करती है तो उससे पूछताछ करने के लिए कोर्ट से हिरासत मांगी जाती है. इस दौरान अगर जज को लगता है कि वाकई में आरोपी से पूछताछ की जरूरत है तो आरोपी को पुलिस रिमांड या फिर पुलिस हिरासत में भेजा जाता है. ठीक इसी तरह सिसोदिया को भी सीबीआई की हिरासत में भेजा गया.
यानी मामले में पूछताछ करने के लिए एजेंसी कोर्ट से हिरासत की मांग करती हैं, गिरफ्तारी के बाद 14 दिनों तक लगातार पूछताछ की जा सकती है. हालांकि कोर्ट ये तय करता है कि कितने दिन की रिमांड दी जानी है. आमतौर पर देखा जाता है कि एजेंसी या पुलिस की डिमांड के मुताबिक रिमांड नहीं दी जाती है. कोर्ट तीन या पांच दिनों की रिमांड देता है, इसके बाद अगर पूछताछ आगे करने की जरूरत महसूस होती है तो इसे आगे बढ़ाया जाता है. कई मामलों में कोर्ट आरोपी को सीधे जेल भेजने का फैसला सुना देते हैं.
क्या होती है न्यायिक हिरासत
पुलिस जब किसी आरोपी को गिरफ्तार करती है तो अगले 24 घंटे के अंदर उसे मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाना जरूरी होता है. इसके बाद मजिस्ट्रेट तय करता है कि आरोपी को न्यायिक हिरासत में भेजना है या फिर पुलिस हिरासत में भेजा जाना है. कई आरोपी खुद कोर्ट में सरेंडर करते हैं, उन्हें कोर्ट न्यायिक हिरासत में भेजता है. कुल मिलाकर ये समझ लें कि न्यायिक हिरासत के दौरान आरोपी कोर्ट की हिरासत में होता है, वहीं पुलिस या सीबीआई हिरासत के दौरान एजेंसी की हिरासत में आरोपी को रखा जाता है. यानी तब आरोपी एजेंसी की सेल में होता है.
न्यायिक हिरासत में भेजे जाने के बाद आरोपी को जेल भेजा जाता है, जहां पुलिस उससे पूछताछ नहीं कर सकती है. न्यायिक हिरासत में पूछताछ के लिए एजेंसी या पुलिस को कोर्ट की इजाजत लेनी होती है. आमतौर पर कोर्ट आरोपी को पहले 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजता है. इसके बाद अगर उसे जमानत नहीं मिलती है तो जेल की अवधि को बढ़ाया जाता है.
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