आठ साल पहले अपनी गर्लफ्रेंड नीतू सोलंकी का मर्डर करने वाले राजू गहलौत का अब पता लग गया है, लेकिन जब तक पुलिस उसके पास पहुंचती उसकी मौत हो चुकी थी. बताया जाता है कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर साल 2011 में राजू गहलौत ने टैटू गर्ल के नाम से मशहूर नीतू सोलंकी की बेरहमी से हत्या कर दी थी. अब करीब 8 साल बाद जब राजू का पता लगा तब वो अपनी पहचान बदल चुका था. वह राजू गहलौत से रोहन दाहिया बन चुका था और इसी पहचान के साथ करीब 5 साल से गुरुग्राम में रह रहा था.


सितंबर 2017 में राजू ने गुरुग्राम की कोचर इंफोटेक कम्पनी में बतौर एग्जीक्यूटिव जॉइन किया. एबीपी न्यूज़ ने कंपनी के मैनेजमेंट और कर्मचारियों से बात की. कंपनी के लोगों के मुताबिक एक कंसल्टेंसी फर्म के ज़रिए राजू की नियुक्ति हुई थी. जॉइनिंग के वक्त राजू ने 10वीं और 12वीं की मार्कशीट, आधार कार्ड, पैन कार्ड और पुरानी कम्पनी के एम्प्लॉयमेंट के प्रूफ सबमिट किये थे. सभी डाक्यूमेंट्स पर उसका नाम रोहन दाहिया ही अंकित है. करीब डेढ़ साल से राजू यहां काम कर रहा था लेकिन इस दौरान किसी को भी उसके व्यवहार को लेकर शक नहीं हुआ. कंपनी के लोगों का कहना है कि उसका व्यवहार अच्छा था. अपने काम में भी वो अच्छा था यही वजह थी कि इसी साल मार्च में उसे 8 लोगों की एक टीम को लीड करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी. राजू टाइम पर आता था और काम खत्म करके वापस चला जाता था. ज़्यादा लोगों से बात नहीं करता था. कम्पनी के एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक उसमें एक अजीब बात थी कि वो स्मार्टफोन लेने से परहेज़ करता था. अभी भी उसके पास पुराने तरीके का बटन वाला फोन ही था.


कम्पनी के लोगों का कहना है कि पिछले हफ्ते मंगलवार को राजू ने अपनी टीम के एक कर्मचारी को फोन किया और बताया कि उसकी तबियत खराब है. इसके बाद ऑफिस के कुछ लोग उससे मिलने गए और उन लोगों ने ही उसे अस्पताल में भर्ती कराया. उसकी हालत बहुत खराब होती जा रही थी. हालत बिगड़ते देख उन लोगों ने ही उसे दूसरे अस्पताल मे शिफ्ट किया. लेकिन कंपनी के लोगों का कहना है कि इस दौरान सबसे अजीब बात ये लगी कि कोई उसके परिवार से नहीं आ रहा था. एक महिला आई लेकिन उसने कुछ साफ तौर पर नहीं बताया. जब हॉस्पिटल के स्टाफ को भी लगा कि कुछ गड़बड़ है तब पुलिस को भी सूचना दी गई जिस पर पुलिस ने लुक आउट नोटिस जारी करने की बात कही. इस बीच राजू ज़्यादातर समय बेहोश ही रहा, उसे वेंटिलेटर पर रखा गया था. डॉक्टर ने बताया कि उसकी हालत लगातार खराब होती जा रही है. मल्टीपल ऑर्गन फेलियर की वजह से उसका बचना तकरीबन नामुमकिन था.


करीब एक हफ्ते तक वह अस्पताल में रहा. इस दौरान कोचर इंफोटेक के कर्मचारी ही उसकी देखरेख करते रहे. उसकी टीम के लोग बारी-बारी से उसके पास अस्पताल में रुकते थे. ऑफिस की हेल्थ इंश्योरेंस के पैसे से हॉस्पिटल के करीब 5 लाख बिल को चुकाना मुश्किल था. फिर कम्पनी के लोगों ने खुद चंदा करके पैसे इकठ्ठे किये और हॉस्पिटल का बिल चुकाया. उसकी जिंदगी बचाने के लिए उसके सहकर्मियों ने रक्तदान भी किया. लेकिन जिस दिन उसकी मौत हुई और अस्पताल में उसके परिवार और पुलिस को देखकर जब सच्चाई का पता लगा तो हर कोई अवाक रह गया.


उसके साथ काम करने वालो को यकीन नहीं हो रहा था कि रोहन किसी का कातिल है. उसके व्यवहार से कभी कोई इस बात का पता नहीं लगा सकता था. हालांकि, सच सामने आने के बाद लोग न सिर्फ सकते में हैं बल्कि विश्वास टूटने से आहत भी हैं. जिसके लिए पूरी कंपनी के लोग एकजुट हुए उसकी देखभाल की उसके बारे में ये सब जानकर उनका विश्वास डगमगा गया है.


पिछले करीब 1 साल से राजू गुरुग्राम में अपने ऑफिस के पास ही सुखराली में एक पीजी में रह रहा था. एबीपी न्यूज़ की टीम सुखराली के उस पीजी में पहुची जहां वो कमरा नम्बर 120 में रहता था. पीजी में कोई भी कैमरे पर बात करने को तैयार नहीं हुआ लेकिन इतना ज़रूर बताया कि उसका व्यवहार बातचीत सब बहुत अच्छा था. काम पर जाना और काम से वापस आना बस यही उसकी दिनचर्या थी. 120 नम्बर के कमरे में उसका एक रूम मेट भी था. पीजी में भी उसने रोहन दाहिया के नाम से आइडेंटिटी प्रूफ दिया हुआ था. पीजी के मालिक का कहना है कि उन्हें कभी उसकी किसी हरकत पर संदेह नहीं हुआ और वो कभी ये सोच भी नहीं सकते थे कि वो किसी की हत्या कर सकता है.


राजू गहलौत भले ही रोहन दाहिया बन गया लेकिन उसका अतीत हर पल उसके साथ था. किसी ने सही कहा है कि इंसान को अपने कर्मो का फल इसी जन्म में चुकाना होता है. शायद इसीलिए पुलिस की पकड़ से दूर एक नई पहचान और अच्छी नौकरी के बावजूद राजू गहलौत खुद को एक नई ज़िंदगी दे पाने में नाकाम रहा.