भुवनेश्वर: उड़ीसा की राजनीति को झंकझोर कर रख देने वाले रेप कांड का मुख्य आरोपी 22 साल बाद गिरफ्तार हुआ है. इसे गिरफ्तार करने के लिए जो विशेष ऑपरेशन 'साइलेंट वाइपर' चलाया गया था वह किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं. जब मुख्य आरोपी को पकड़ा गया तो वह नए आधार कार्ड पर अपनी नई पहचान के साथ रह रहा था. यहां तक की परिजनों ने उसके डेथ सर्टिफिकेट के लिए भी अप्लाई कर दिया था.


पुलिस ने कई स्तर पर जांच की और परिस्थितजन्य साक्ष्य जुटाने शुरू किए. शुरूआती शक इससे गहरा गया कि परिवार की वास्तविक इनकम, उनकी लाइफ स्टाइल से मेल नहीं खा रही थी. पुलिस को यकीन हो गया कि इनके पास कहीं कहीं और से पैसा आ रहा है. इसके बाद धीर-धीरे पुलिस लोनावाला तक पहुंच गई. एक छोटे से बैंक ट्रांजेक्शन के बाद पुलिस को बड़ा सुराग मिल पाया.


पुलिस ने उसके बड़े बेटे के बैंक रिकार्ड खंगालने के बाद पाया था कि उसमें किसी अनजान व्यक्ति ने 5 से 25 हजार कैश जमा कराए थे. जब पुलिस ने पैसे जमा कराने वाले व्यक्ति के बारे में जानकारी इकट्ठा करनी शुरू की तो पता चला कि वास्तव में वैसा कोई आदमी है ही नहीं. अर्थात, जाली आधार कार्ड उसने बनवा रखा था. फिर पुलिस सादे लिबास में लोनावाल पहुंच गई औऱ मुख्य आरोपी की घेराबंदी शुरू कर दी.


पकड़े जाने के बाद भी उसने पुलिस टीम को कई घंटों तक गुमराह किया लेकिन बाद में भागने के प्रयास के दौरान पकड़ा गया. पुलिस ने कहा कि उसकी पहचान के लिए कई लोगों की निशानदेही ली गई है. पुलिस ने यह भी बताया कि वह फोटो आदि लेने में हिचकिचाता था और दो बार उसने अपना पूरा हुलिया बदला था. कभी वह बाल-दाढ़ी बढ़ा लेता था और कभी उसे छोटा कर लेता था.


गौरतलब है कि 9 जनवरी, 1999 को एक आईएफएस अधिकारी की पत्नी जो घटना के समय 29 साल की थी, कटक से भुवनेश्वर जा रही थी. इसी दौरान उनकी कार को रोक कर तीन लोगों ने गैंगरेप किया था. इसके बाद पीड़ित पक्ष ने इस मामले में सीधे मुख्यमंत्री पर ही ऊंगली उठा दी थी. साथ ही एडवोकेट जनरल इंद्रजीत राय का भी नाम लिया था.


इसके बाद राज्य में राजनीतिक भूचाल आ गया था. इस घटना ने मुख्यमंत्री को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया था. हालांकि, जो आरोप पटनायक के खिलाफ पीड़ित पक्ष ने लगाया था उसे एफआईआर में शामिल नहीं किया गया था. घटना के 17 दिन बाद दो आरोपी प्रदीप साहू और दिरेंद्र मोहंती को गिरफ्तार किया गया था.


हालांकि मुख्य आरोपी विवेकानंद विस्वाल भागने में सफल हो गया था. करीब दो दशकों के बाद उड़ीसा पुलिस ने उसे मुंबई से गिरफ्तार किया है. वह लोनावाला के एंबी वैली में छिपा हुआ था. वहां वह प्लंबर का काम करता था. इसे पकड़ने के लिए पुलिस ने विशेष ऑपरेशन चला रखा था जिसका नाम 'साइलेंट वाइपर' था.


इस मामले में दो अन्य आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. सीबीआई ने इस मामले में जांच की थी. अभी तीन माह पहले भुवनेश्वर कमिश्नरेट पुलिस ने मामले की फाइल फिर से खोली थी. उसके बाद से काफी गहनता से उसकी तलाश चल रही थी. उसने जाली नाम पर आधार कार्ड भी बनवा रखा था.


यह भी पढ़ें: 


विदेश में किया देश का नाम खराब, भारतीय महिला ने मेड को टार्चर कर मार डाला


बेंगलुरु: खतरनाक हथियारों के साथ पकड़े गए 11, किसी फिल्मी सीन से कम नहीं था नजारा