हर रोज SC/ST के खिलाफ होते हैं 126 अपराध, लगभग 16 प्रतिशत मामलों में ही मिलती है सजा
सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी (अत्याचार का निवारण) एक्ट, 1989 के तहत सीधे गिरफ्तारी पर रोक लगाने का फैसला दिया था. कोर्ट ने इस एक्ट के तहत आने वाली शिकायतों पर शुरुआती जांच के बाद ही मामला दर्ज करने का भी आदेश दिया है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया फैसले में एससी/एसटी (अत्याचार का निवारण) एक्ट, 1989 के तहत तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने सीधे गिरफ्तारी पर रोक लगाने हुए कहा कि इस एक्ट के तहत आने वाली शिकायतों पर शुरुआती जांच के बाद ही मामला दर्ज किया जाए. कोर्ट का कहना था कि कई सारे मामलों में यह एक्ट 'ब्लैकमेल करने और निजी दुश्मनी में बदला लेने' के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
हालांकि, दलितों से जुड़े ऐसे कई संगीन मामले देखे गए हैं, जहां पीड़ित को इंसाफ नहीं मिला और आरोपी आसानी से छूट गए. 1996 का बथानी टोला नरसंहार ऐसा ही मामला है जहां साल 2012 में पटना हाई कोर्ट ने इस केस में रणवीर सेना के 23 लोगों को बरी कर दिया था.
ऐसे वक़्त में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों को देखने की जरूत है. खास बात ये है कि दलितों के खिलाफ अपराधों की संख्या बीते सालों में बढ़ी है और सजा दिए जाने के मामले में कमी आई है.
एनसीआरबी के आंकड़ों के हिसाब से साल 2016 में अनुसूचित जाति (एससी) के खिलाफ अत्याचार के कुल 40,801 मामले सामने आए जिसमें से एससी/एसटी(अत्याचार का निवारण) एक्ट, 1989 के तहत कुल 5082 मामले दर्ज किए गए. इसका मतलब है कि अनुसूचित जाति के खिलाफ हर रोज लगभग 112 और हर घंटे लगभग पांच अपराध हो रहे हैं. अनुसूचित जाति के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध उत्तर प्रदेश में हुए हैं. साल 2016 में यूपी में एससी के खिलाफ अपराधों के 10,426 मामले दर्ज किए गए. यानि कि अनुसूचित जाति के खिलाफ एक चौथाई अपराध यूपी में हो रहे हैं जहां सूबे की आबादी का लगभग 21 प्रतिशत आबादी दलित (एससी) है.
वहीं साल 2015 में भारत में एससी के खिलाफ अत्याचार के कुल 38,670 मामले दर्ज किए गए थे. इस तरह साल 2015 के मुकाबले 2016 में एससी के खिलाफ अपराध के 2,131 अधिक मामले दर्ज किए गए. हैरानी की बात ये है कि अनुसूचित जाति के खिलाफ अत्याचार के जो भी मामले दर्ज किए जा रहे हैं उनमें से कम ही मामलों में आरोपियों को सजा मिल पा रही है.
साल 2016 एससी के खिलाफ अपराध में एससी/एसटी(अत्याचार का निवारण) एक्ट, 1989 के तहत कुल 45,286 मामले ट्रायल के लिए भेजे गए थे, जिसमें से सिर्फ 4048 मामलों में ट्रायल यानि कि कोर्ट की सुनवाई पूरी की गई थी. जिन 4048 मामलों की सुनवाई पूरी की गई थी उनमें से सिर्फ 659 मामलों में सजा दी गई थी, बाकी के 3,389 मामलों में आरोपियों को बरी कर दिया गया था. इस हिसाब से देखें तो इस एक्ट के तहत दलितों के खिलाफ अपराध के कुल मामलों में से सिर्फ 16.3 प्रतिशत मामलों में ही सजा मिल पा रही है. इसका मतलब ये हुआ कि अगर अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध के कुल 100 मामले आए हैं तो उनमें से सिर्फ 16 मामलों में सजा हुई है और बाकी के 84 मामलों में आरोपी को बरी कर दिया गया.
दूसरी तरफ दलितों के खिलाफ अपराध के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं लेकिन कोर्ट में इनकी सुनवाई पूरी नहीं हो रही है. साल 2016 में 41,191 मामले यानि कि कुल दर्ज किए गए मामलों में से 91 प्रतिशत मामले कोर्ट में लंबित पड़े हुए हैं. एनसीआरबी के ये आंकड़े बताते हैं कि एक तरफ तो दलितों के खिलाफ अपराध की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है तो वहीं दूसरी तरफ दलितों के खिलाफ मामलों में सजा का प्रतिशत भी कम है.
अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध में एससी/एसटी(अत्याचार का निवारण) एक्ट, 1989 के अलावा भारतीय दंड संहिता की अन्य धाराओं में भी मामला दर्ज किया जाता है. अगर सभी धाराओं के मामलों को जोड़ दें तो साल 2016 में कुल 1,44,979 मामलों को ट्रायल के लिए भेजा गया था जिसमें से 14,615 मामलों में सुनवाई पूरी हुई थी. इनमें से 3,753 मामलों में सजा दी गई और बाकी के 10,862 मामलों में आरोपियों को बरी कर दिया गया. इस हिसाब से देखें तो सिर्फ 25.7 प्रतिशत मामलों में ही सजा दी गई. अभी भी कोर्ट में अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध के कुल 1,29,831 मामले लंबित पड़े हैं.
अनुसूचित जनजाति का हाल
इसी तरह अनुसूचित जनजाति (एसटी) के खिलाफ भी अपराध के मामलों में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है और इन अपराधों में सजा का प्रतिशत बेहद कम है. एनसीआरबी के आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अपराध के मामले में भी ज्यादातर आरोपी बरी हो जाते हैं. साल 2016 में एसटी के खिलाफ अत्याचार के कुल 6568 मामले आए थे जिसमें से 844 मामले एससी/एसटी(अत्याचार का निवारण) एक्ट, 1989 के तहत दर्ज किए गए थे. वहीं इस मामले में साल 2015 में 6276 मामले आए थे. इस हिसाब से 2016 में एसटी के खिलाफ अपराध के 292 मामले अधिक थे.
साल 2016 में 5071 मामले सुनवाई के लिए कोर्ट में भेजे गए थे, जिसमें से 498 मामलों में सुनवाई पूरी हुई थी. इसमें से सिर्फ 42 मामलों में अपराधियों को सजा दी गई थी. इसका मतलब है कि एससी/एसटी(अत्याचार का निवारण) एक्ट के तहत अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अपराध के कुल मामलों में से सिर्फ 8.4 प्रतिशत मामलों में सजा दी गई थी. इसका मतलब हुआ कि अगर कोर्ट में 100 मामले भेजे तो उनमें से सिर्फ आठ मामलों में ही सजा दी गई बाकि के मामलों में आरोपी छूट गए.
अगर एससी और एसटी के खिलाफ अपराधों को जोड़कर देखें तो साल 2016 में इनके खिलाफ अपराध के 45,872 मामले दर्ज किए गए. इसका मतलब है कि भारत में एससी/एसटी के खिलाफ हर रोज लगभग 126 और हर घंटे लगभग पांच अपराध होते हैं.