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यूपी: यहां 'कव्वाली' मना है, सूफी-कथक डांसर ने लगाया सनसनीखेज आरोप

यूपी में अब 'कव्वाली' की बारी है. इससे पहले अल्लामा इकबाल और फैज अहमद फैज की नज्म पर विवाद हो चुका है. लेकिन इस बार लखनऊ में कव्वाली समझ कर कार्यक्रम को बीच में ही रोक दिया गया.

यूपी में साहित्य-कला पर हमला जारी है. पहले पीलीभीत फिर कानपुर और अब लखनऊ. ताजा मामला 'कव्वाली' को लेकर है. आरोप है कि लखनऊ में कार्यक्रम को बीच में ही रोक दिया गया.

दिलचस्प बात ये है कि कार्यक्रम का आयोजन यूपी सरकार की तरफ से किया गया था. जिसमें कथक डांसर मंजरी चतुर्वेदी को बुलाया गया था. मंजरी ने आरोप लगाया कि कार्यक्रम के बीच में म्यूजिक रोककर बाधा पैदा करने की कोशिश की गई. मंजरी कहती हैं, “मैंने सोचा कि तकनीकी समस्या है लेकिन जब अगले कार्यक्रम का एलान किया गया तब जाकर पता चला. उन्होंने आरोप लगाया कि पूछने पर उनसे कहा गया यहां ‘कव्वाली’ नहीं चलेगी.

'दुआ', 'नज्म' के बाद अब 'कव्वाली' पर हमले की बारी

मंजरी का दावा है कि उनके साथ ऐसा पहली बार हुआ है जब कव्वाली की खातिर उनके कार्यक्रम में रुकावट पैदा की गई. हालांकि राज्य सरकार ने इस तरह के आरोपों को खारिज किया है. उसका तर्क है कि आयोजक और कलाकार के बीच कुछ विवाद थे. चूंकि कार्यक्रम पहले ही देर से शुरू हुआ था. और सीएम योगी के आने से पहले कार्यक्रम को खत्म हो जाना चाहिए था. मगर देरी के चलते कार्यक्रम को छोटा कर अगला परफॉर्मेंस बृज की प्रस्तुति के लिए जगह बनानी पड़ी.

आयोजकों ने भी कलाकार के दावे को नकार दिया है. उनका कहना है कि कार्यक्रम को बीच में संस्था की मजबूरियों के चलते रोका गया. उन्होंने धार्मिक या भाषाई संकीर्णता की वजह से कार्यक्रम में बाधा के आरोपों को खारिज किया. मंजरी कला के क्षेत्र में दो दशक से सक्रिय हैं. उन्होंने दुनिया के 22 मुल्कों में 300 परफॉर्मेंस पेश किया है. ऐसी घटना से मानसिक रूप से सूफी-कथक डांसर को आहत पहुंची है.

इकबाल, फैज की रचना पर हो चुका है विवाद

पिछले साल यूपी के पीलीभीत में अल्लामा इकबाल की कविता ‘लब पे आती है दुआ’ स्कूल में गाये जाने पर प्रिंसिपल को निलंबित कर दिया गया था. हाल ही में नागरिकता कानून के खिलाफ जारी विरोध के बीच कानपुर आईआईटी प्रशासन ने फैज अहमद फैज की कविता पर जांच बिठा दी थी. आरोप लगाया गया कि फैज की कविता हिंदू विरोधी है. अब इसी कड़ी में ‘कव्वाली’ भी आ गई है. हालांकि इसके पीछे धार्मिक एंगल के पहलू को नकारा गया है.

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