Independence Day: भारतीय आजादी में स्वतंत्रता सेनानियों की अमर गाथाओं की एक लंबी फेहरिस्त है. 200 साल तक गुलामी की जंजीरों में जकड़े भारत वर्ष को आजादी दिलाने में सैकड़ों युवा ऐसे भी रहे जिन्होंने अपनी भरी जवानी में देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए.


ऐसे ही तीन युवाओं के नाम है बिनॉय कृष्ण बासु, बादल गुप्ता और दिनेश गुप्ता. इन्होंने जिस दुस्साहिक कार्य को अंजाम दिया था. उसने अंग्रेजों की चूले हिला दीं थीं.


कौन थे बिनॉय, बादल और दिनेश


यह तीनों युवा मात्र 19 से लेकर 22 साल तक की उम्र के थे. बिनॉय कृष्ण का जन्म 11 सितंबर 1908 में ढाका के मुंशी गंज में हुआ था. इन्हें बचपन से ही क्रांतिकारी बनने का जुनून सवार था. वहीं दिनेश गुप्ता का जन्म 6 दिसंबर 1911 में ढाका के ही मुंशी गंज में हुआ था.


उस समय बांग्लादेश भारत में था. बादल गुप्ता यहीं कोलकाता में अपने चाचा को लोगों को देखकर क्रांतिकारी बने थे. इनके चाचा धरानी नाथ गुप्ता और नागेंद्र नाथ गुप्ता भी आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे. उन्हीं से प्रभावित होकर बादल बहुत छोटी उम्र में स्वतंत्रता के आंदोलन में कूद पड़े थे.  


कौन था आईजी नार्मल सिंपसन


प्रीतम सरकार की पुस्तक ‘इंडिया क्राइड दैट नाइट’ में इसका पूरा किस्सा दर्ज है. नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने 1928 में कांग्रेस सत्र के दौरान बंगाल वालेंटियर्स नाम की संस्था बनाई थी. जिसमें देश के प्रति मर मिटने की तमन्ना रखने वाले युवाओँ को भर्ती किया जाता था. उसी दौरान अंग्रेंजों की जेल में कोलकाता में एक बहुत ही निर्मम और शैतान जेलर हुआ करता था. उसका नाम था लेफ्टिनेंट कर्नल नार्मल सिंपसन.


क्रूर आततायी था आईजी जेलर


सिपंसन इतना क्रूर था कि उसकी जेल में आने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को पहले वह लाठियों से बुरी तरह पीटता था. इतना ही नहीं वह जेल में बंद पक्के शातिर कैदियों से भी उन आजादी के दीवानों को यातनाएं दिलवाता था. एक बार उसने इन्हीं शातिर बंदियों से नेता जी सुभाष चंद्र बोस पर हमला करवा दिया था. उसकी यह चाल आखिरकार उसके लिए काल बन गईं.


बिनॉय, बादल और दिनेश को सौंपा गया ये दायित्व


1930 में पुलिस की क्रूरता के खिलाफ पूरे देश में ऑपरेशन फ्रीडम चलाया गया. बिनॉय कृष्ण बासु और दिनेश गुप्ता को बुलाया गया. बादल गुप्ता पहले ही कोलकाता में मौजूद थे. बिनॉय कृष्ण पहले भी ढाका मेडिकल कॉलेज में कुख्यात आईजी लॉसन को गोली से उड़ा चुके थे. इसके बावजूद वह चोरी-छिपे सुरक्षित कोलकाता पहुंच गए.


इन तीनों से कहा गया कि अब बस सिंपसन को जीने का कोई हक नहीं. प्लॉन बनाया गया कि सिंपसन को ऐसी जगह मारा जाए जहां से ब्रिटिश हूकूमत में एक भय का संदेश जाए. इसलिए कोलकाता की सबसे सुरक्षित बिल्डिंग पुलिस मुख्यालय रायटर्स बिल्डिंग में उसके ऑफिस में गोली से उड़ाने का प्लॉन बनाया गया. तीनों के लिए विदेशी पिस्टल और गोलियों का इंतजाम करने के साथ उनके लिए अंग्रेजों की तरह के सूट सिलाए गए.   


इस तरह दिया घटना को अंजाम


8 दिसंबर 1930 को तीनों युवा सूट-बूट पहनकर तैयार थे. सबने अपनी कोट की जेब में रखी पिस्टल को चेक किया. बादल ने अपने पैंट की जेब में पोटेशियम साइनाइड का एक कैप्सूल भी रखा था. तीनों यह भली भांति जानते थे. सिंपसन का अंजाम जो भी हो लेकिन उन तीनों का वहां से जिंदा बचकर निकल पाना नामुमकिन है. इसीलिए सब पूरी तैयारी से गए. ठीक दोपहर के 12 बजे इन्होंने मौत का सफर शुरू किया.


टैक्सी से रायटर बिल्डिंग पहुंचे थे


तीनों टैक्सी से रायटर बिल्डिंग के सामने उतरे. किराया देकर वह सीधे गलियारे से होते हुए नार्मन सिंपसन के कमरे के दरवाजे पहुंच गए. उनके अर्दली ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो तीनों उसे धक्का देकर किनारे कर दिया. जब वह कमरे में पहुंचे तो देखा सिंपसन अपनी टेबल पर कुछ लिख रहा था. जब उसने सिर उठाया तो देखा तीनों नौजवान पिस्तोल ताने खड़े हैं. इसके पहले वह कुछ हरकत करता तीनों ने तड़ातड़ गोलियां चलाकर आईजी जेलर को वहीं कुर्सी पर ढेर कर दिया.


बादल ने खाया मौत का कैप्सूल, बिनॉय-दिनेश ने खुद को मारी गोली


गोली की आवाज सुनकर रायटर्स बिल्डिंग में अफर-तफरी मच गई. पुलिस के अन्य अधिकारियों ने भी गोली चलानी शुरु कर दी. तीनों युवा पासपोर्ट आफिस में घुस गए. जब उनकी गोलियां खत्म हो गईं, तो बादल ने पोटेशियम साइनाइड वाला कैप्सूल खा लिया.


वहीं उनके कमरे के बाहर खड़े पुलिस वालों को अंत में दो और गोलियों की आवाज सुनाईं दीं. दिनेश और बिनॉय ने भी खुद को गोली मार ली थी. पुलिस ने बादल की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. जबकि दिनेश और बिनॉय को बचाने की बहुत कोशिश की ताकि इस हत्याकांड के पीछे किसकी साजिश है पता लगाया जा सके. बहरहाल तमाम कोशिशों के बावजूद बिनॉय ने 13 दिसंबर 1930 को दम तोड़ दिया.


दिनेश को दी गई फांसी


दिनेश के पिता ने उनसे मिलने की अंतिम इच्छा जतायी थी. मगर वह आश्चर्यजनक रूप से बच गए. उऩके ऊपर जज राल्फ रेनॉड्स की अदालत में मुकदमा चलाया गया. जज ने अपने आदेश में लिखा कि आईजी जेल की हत्या में दिनेश बराबर का अपराधी है. इसलिए भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत उन्हें फांसी दी जाती है.


इसके बाद चारो ओर विरोध-प्रदर्शन शुरु हो गए थे. जिसके कारण अंग्रेजों ने फांसी का दिन और तारीख दोनों बदल दिए थे, ताकि किसी को पता नहीं चले. दिनेश को फांसी देने वाले जज को उनकी मौत के 20 दिन बाद कनाई लाल भट्टाचार्या ने गोली से उड़ा दिया.


बीबीडी पार्क की कहानी


देश के इन युवाओं की शहादत की कहानी को अमर करने के लिए डलहौजी के पास बने पार्क का नाम बीबीडी पार्क रखा गया. बी से बिनॉय, बी से बादल और डी से दिनेश. वैसे बादल का पूरा नाम सुधीर बादल गुप्ता था.


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