Delhi Sunehri Bagh Mosque: क्या है सुनहरी बाग मस्जिद को हटाने को लेकर दी गई याचिका और पूरा विवाद? जानें
Delhi Sunehri Bagh Mosque का विवाद दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. मामला अब हाई कोर्ट पहुंच चुका है. एनडीएमसी ने ट्रैफिक व्यवस्था को सुरक्षित-व्यवस्थित करने के लिए इसे हटाने का हलफनामा कोर्ट में दिया है.
Sunehri Bagh Mosque Controversy: देश की राजधानी दिल्ली में सुनहरी बाग इलाके में एक मस्जिद है. ट्रैफिक पुलिस की रिपोर्ट के आधार पर दिल्ली नगर पालिका परिषद (NDMC) ने हाई कोर्ट में उसे हटाने के लिए हलफनामा दिया है. एऩडीएमसी को हलफनामा इसलिए देना पड़ा क्योंकि दिल्ली वक्फ बोर्ड के वकील वजीह शफीक ने अदालत में याचिका दाखिल की थी कि उन्हें आशंका है कि इस मस्जिद को ध्वस्त कर दिया जाएगा. अब हाई कोर्ट ने पूर्व स्टे को आगे बढ़ाते हुए इस मामले में अगली सुनवाई की तारीख 6 अक्टूबर मुकर्रर की है. आइये जानते हैं क्या है इसकी कहानी.
एनडीएमसी ने अपने हलफनामे में क्या कहा?
दिल्ली नगर पालिका परिषद ने कोर्ट में हलफनामा दिया है कि ट्रैफिक व्यवस्था को सुरक्षित और सुचारु रूप से चलाने के लिए इस डेढ़ सौ साल पुरानी मस्जिद को हटाए जाने की जरूरत है. एनडीएमसी ने अपने हलफनामे में अदालत को यह भी बताया कि यह मामला दिल्ली सरकार के सचिव (गृह) की अध्यक्षता वाली धार्मिक समिति के पास भी विचार-विमर्श के लिए लंबित है.
सर्वसम्मति से लिया गया निर्णय
इस पर न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने वक्फ बोर्ड की मस्जिद विध्वंस की आशंका वाली याचिका के जवाब में दाखिल इस हलफनामे को रिकॉर्ड में रखने का निर्देश दिया है. एनडीएमसी ने कोर्ट को यह भी बताया कि बढ़ते ट्रैफिक को देखकर एक संयुक्त टीम ने मौके का दो बार मुआयना किया था. ट्रैफिक पुलिस की रिपोर्ट के आधार पर सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया है कि यातायात व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए इस धार्मिक संरचना को वहां से हटाने/स्थानांतरित करने की जरूरत है.
क्या कहना था वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता का?
दिल्ली वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता वजीह शफीक ने कोर्ट को बताया था कि यह मस्जिद 150 साल पुरानी है. ट्रैफिक पुलिस के एक पत्र के आधार पर नष्ट करने की योजना बनाई गई है. यहां पर पांचों वक्त की नमाज के अलावा ईद और बकरीद पर भी सैकड़ों लोग नमाज पढ़ते हैं. सुनहरी बाग चौराहे को ट्रैफिक के अनुसार रिडिजाइन करने की व्यवहारिता के आधार पर जांच करने के लिए कहा गया था. अब दुर्भावनापूर्ण और मनमाने तरीके से मस्जिद को ध्वस्त करने की योजना बनाई जा रही है.
धार्मिक भावनाओं को आहत करने की कोशिश
हाई कोर्ट में सुनवाई के बाद मुस्लिम समाज में इसको लेकर नाराजगी है. दिल्ली वक्फ बोर्ड के एक अधिकारी का कहना है कि जाम की स्थिति से बचने के लिए और तरीके हैं. जैसे ट्रैफिक डायवर्जन किया जा सकता है. अन्य किसी विकल्प पर विचार ही नहीं किया जा रहा है. महफूज मोहम्मद का कहना था कि 150 साल पुरानी इस धार्मिक इमारत से हमारी भावनाएं जुड़ी हुई हैं. इसको तोड़ने का क्या लॉजिक बनता है. वहीं, एक नमाजी का कहना था कि सब जानते हैं कि क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है. बस यूं समझ लीजिए कि वक्त सही नहीं चल रहा है, इसलिए चुप रहना ही ज्यादा बेहतर है.
क्या है मस्जिद का इतिहास?
वक्फ बोर्ड के महफूज मोहम्मद की मानें तो 150 साल पहले इस मस्जिद को माल्चा गांव के निवासियों ने बनवाया था. तब से लेकर अभी तक यहां पांचों वक्त नमाज होती है. यह दिल्ली वक्फ बोर्ड की कुल 42 संपत्तियों में से एक है. इसे ब्रिटिश हूकूमत ने सुन्नी मजलिस-ए-औकाफ को वापस लौटाया था. इस विभाग को अंग्रेजों ने दिल्ली मुस्लिम वक्फ एक्ट 1942 के तहत बनाया था.
अंग्रेजों ने भी इससे छेड़छाड़ नहीं की थी
ब्रिटिश हूकूमत से लेकर लुटियन जोन बनने तक इस धार्मिक इमारत से किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं हुई. महफूज मोहम्मद ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि इस मस्जिद के बाद भी आसपास कई और इमारतें और ऑफिस बनकर खड़े हो गए, मगर उन्हें कोई नहीं देख रहा है, न ही उन्हें गिराने की कोशिश की जा रही है.
क्या बोले मस्जिद के इमाम?
करीब 20 साल से इस मस्जिद में इमाम अब्दुल अजीज का कहना है कि इस मस्जिद में प्रतिदिन 200 लोग नमाज पढ़ने के लिए आते हैं. यहां पांचों वक्त की नमाज होती है. इतना ही नहीं नमाज के वक्त जो भी आसपास के ऑफिस वाले, दुकान वाले होते हैं. वे भी आ जाते हैं. ईद और बकरीद में यह संख्या सैकड़ों में पहुंच जाती है.
अमानतुल्लाह खान ने दायर की थी याचिका
दिल्ली वक्फ बोर्ड के चेयरमैन अमानतुल्लाह खान ने अदालत में इस मस्जिद के लिए याचिका दाखिल की थी. उन्होंने अपनी याचिका में बताया था कि कोई भी पूजा स्थल सेक्शन 2 (सी) के अंतर्गत आता है. धार्मिक स्थल एक्ट 1991 में पूजा स्थल के लिए विशेष प्रावधान किया गया है. याचिका में यह भी बताया गया कि यह मस्जिद 15 अगस्त 1947 से अस्तित्व में है. इसलिए एक्ट का सेक्शन 4 यह अनुमति नहीं देता कि 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस स्थिति में था, उसमें आगे कोई परिवर्तन या छेड़छाड़ की जाए. भविष्य में भी वह वैसा ही रहेगा जैसा 1947 में था.
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