रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 78 महीने बाद ही 2000 रुपए के नोट को चलन से बाहर करने का ऐलान किया है. आरबीआई के इस फैसले के बाद विपक्ष और सोशल मीडिया यूजर्स नोटबंदी पर सवाल उठा रहे हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने पर लिया है.


भारत के पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने नोटबंदी को मूर्खतापूर्ण निर्णय बताते हुए केंद्र सरकार पर सवाल उठाया है. चिदंबरम ने कहा कि सरकार अब फिर से 1000 रुपए का नोट वापस ला सकती है. अटल बिहारी सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने 2000 रुपए के नोट वापस लेने को मूर्खतापूर्ण निर्णय बताया है


कांग्रेस ने नोटबंदी को एक गलत लिया गया फैसला बताया है. पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने 2000 रुपए के नोट को सर्कुलेशन से बाहर करने को पर्दादारी बताते हुए जांच की मांग की है. वहीं आरबीआई के इस आदेश को सत्ताधारी बीजेपी ने कालेधन पर दूसरा बड़ा सर्जिकल स्ट्राइक कहा है.


बीजेपी सांसद और बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि यह काले धन पर दूसरा सर्जिकल स्ट्राइक है, जिससे बचा खुचा काला धन भी बाहर निकल जाएगा. सुशील मोदी दिसंबर 2022 में ही 2000 के नोट पर बैन करने की मांग कर चुके हैं.


'मिनी नोटबंदी' पर आरोप-प्रत्यारोप के बीच आंकड़ों के जरिए आइए जानते हैं, नोटबंदी के बाद भी 2000 का नोट क्यों सर्कुलेशन से बाहर करना पड़ा?


मोदी सरकार ने नोटबंदी क्यों किया था?
8  नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया था. उस वक्त 500-1000 के नोट को चलन से बाहर कर दिया गया था. सरकार ने फैसले के पीछे भ्रष्टाचार खत्म करने को वजह बताया. बाद में मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में भी हलफनामा दाखिल कर नोटबंदी का कारण बताया.


नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने बताया कि नोटबंदी को गलत निर्णय नहीं कहा जा सकता है. केंद्र ने कहा कि प्रधानमंत्री ने आरबीआई के सुझाव पर ही इसकी घोषणा की थी. नोटबंदी की तैयारी 6 महीने पहले से आरबीआई कर रही थी.


सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को दिए हलफनामे में कहा- नोटबंदी करना फेक करेंसी, टेरर फंडिंग, काले धन और टैक्स चोरी की समस्याओं से निपटने की एक बड़ी रणनीति का हिस्सा और एक प्रभावी उपाय था. मोदी सरकार ने नोटबंदी को नीतिगत निर्णय बताया था. 


2000 रुपए के नोट पर शुरू से उठ रहे सवाल
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 2016 में 500-1000 के नोट बंद करने के बाद 500-2000 के नोट को सर्कुलेशन में लाया. गुलाबी कलर में आने वाले 2000 के नोट पर शुरू से ही सवाल उठ रहे थे. एक्सपर्ट ने इससे कालाधन को और बढ़ावा मिलने का अंदेशा जताया था. 


2000 के नोट को लेकर 9 नवंबर 2016 में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक ट्वीट किया था, जो अब वायरल हो रहा है. राहुल गांधी ने इस ट्वीट में मोदी सरकार से पूछा था कि 1000 को बैन कर 2000 चला देने से काले धन की जमाखोरी कैसे बंद हो जाएगा?


दिल्ली सरकार के मंत्री गोपाल राय ने भी 2000 के नोट लाने पर सवाल उठाया था. राय ने कहा था कि 2000 के नोट से भ्रष्टाचार को और बढ़ावा मिलेगा. 


2000 का नोट वापस, क्यो नोटबंदी फ्लॉप हो गया?
सात साल बाद सरकार ने आरबीआई ने नोट वापस लेने का फैसला किया है. विपक्ष धमाके के बजाय इसे धोखा बता रही है. ऐसे में जानना जरूरी है कि आखिर इस फैसले के पीछे मायने क्या हैं?


1. फेक करेंसी का सर्कुलेशन और अधिक बढ़ गया- केंद्र सरकार ने नोटबंदी के पीछे सबसे बड़ी वजह फेक करेंसी को बताया था. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि 40 करोड़ वर्कफोर्स नकदी पर निर्भर हैं, जिस वजह से फेक करेंसी का खूब बोलबाला बढ़ गया था. 


नोटबंदी के बाद केंद्र सरकार ने लोकसभा में बताया था कि साल 2015 में 43.83 करोड़ रुपए नकली मुद्रा जब्त किया गया था. सरकार के एक अन्य आंकड़े के मुताबिक 2012-2014 तक तीन साल में 136 करोड़ रुपए का फेक करेंसी जब्त किया गया. जो औसतन सालाना औसतन 45 करोड़ था. 


नोटबंदी के बाद फेक करेंसी पर कंट्रोल की उम्मीद थी, लेकिन रिपोर्ट हैरानी करने वाला है. एनसीआरबी ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि नोटबंदी के अगले साल यानी 2017 में 55.71 करोड़ रुपये के नकली नोट जब्त किए गए. 


रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में 26.35 करोड़ रुपए, 2019 में 34.79 करोड़ रुपए, 2020 में 92.17 करोड़ रुपए फेक करेंसी के रूप में जब्त किए गए. कुल फेक करेंसी जोड़ के देखा जाए तो नोटबंदी के बाद औसतन हर साल 52 करोड़ से अधिक रुपए जब्त किए गए हैं. 


2. फंडिंग रोकने के लिए नोटबंदी पर टेरर नहीं रुका- केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि नोटबंदी करने का एक कारण टेरर फंडिंग पर रोक लगाना भी था. हवाला के जरिए आतंकी कालेधन का उपयोग कर भारत में घटनाओं को अंजाम दे रहे थे. 


सरकार का कहना था कि टेरर फंडिंग रुकने के बाद आतंकी वारदातों की संख्या में कमी आएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल ने आतंकी घटनाओं के आंकड़ों को आधार बनाकर जम्मू-कश्मीर पर एक स्टडी रिपोर्ट तैयार की है.


रिपोर्ट के मुताबिक कश्मीर में 2014 में आतंकी वारदात की 222 घटनाएं सामने आई, जिसमें 28 आम नागरिक मारे गए. 2015 में 208 घटनाएं हुई और 17 आम नागरिक मारे गए. साल 2016 में नोटबंदी हुआ था, उस साल 322 घटनाएं हुई और 15 आम नागरिक मारे गए.


नोटबंदी के एक साल बाद आतंकी वारदात में कमी आने की बजाय बढ़ोतरी हुई. 2017 में 342 आतंकी वारदात सामने आए, जिसमें 40 आम नागरिकों की मौत हो गई. 2018 में यह आंकड़ा और अधिक बढ़ गया. 


2018 में 614 घटनाओं में 39 लोगों की मौत हो गई. नक्सली वारदातों में भी काफी ज्यादा कमी नहीं आई है. नोटबंदी से पहले साल 2015 में 3 बड़े वारदात को अंजाम दिया था, जबकि 2016 में यह संख्या 6 पर पहुंच गई.


नोटबंदी के अगले साल यानी 2017 में नक्सलियों ने पूरे देश में 9 बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया. 2018 में यह आंकड़ा 21 पर पहुंच गया. 


3. मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में जब्ती भी बढ़ी- केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार रोकने के मकसद से नोट बदल दिए थे, लेकिन यह ज्यादा कारगर साबित नहीं हुआ. प्रवर्तन निदेशालय की ओर से जारी डेटा के मुताबिक साल 2017-18 में मनी लॉन्ड्रिंग केस में 992 करोड़ रुपए जब्त किए गए थे.


यह आंकड़ा 2018-19 में बढ़कर 1567 करोड़ हो गया. 2019-20 में 1290 करोड़, 2020-21 में 880 करोड़ और 2020-21 में 1159 करोड़ रुपए जब्त किए गए. ईडी की कार्रवाई में जब्त पैसे की तस्वीर कई बार सोशल मीडिया में सुर्खियां बटोर चुका है. 


4. बीजेपी सांसद ने उठाए थे सवाल- 12 दिसंबर 2022 को संसद का शीतकालीन सत्र के जीरो ऑवर दौरान बीजेपी सांसद सुशील मोदी ने 2000 रुपए के नोट को वापस लेने की मांग की. मोदी ने राज्यसभा में कहा- देश में लोगों ने बड़े पैमाने पर 2000 के नोटों को जमा कर रखा है. इसका इस्तेमाल सिर्फ अवैध व्यापार के लिए किया जा रहा है. 


सुशील मोदी ने आगे दावा करते हुए कहा- ड्रग, मनी लॉन्ड्रिंग, क्राइम और टेरर फंडिंग जैसे बड़े अपराधों में 2000 रुपए के नोट का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है. इसलिए सरकार इसे वापस लेने पर विचार करे.