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तुर्की के बाद अब मोरक्को, क्यों बढ़ा भूकंप का खतरा? जानें कैसे लॉकडाउन में हुई भविष्यवाणी बचा सकती थी दुनिया

मोरक्को में आए भूकंप से भारी तबाही हुई है. हालांकि कुछ समय पहले मोरक्को में ही भूंकप को लेकर प्रीडिक्शन के लिए खोज की गई थी.

शुक्रवार को मोरक्को में आए भूकंप ने पूरे देश को हिला कर रख दिया. 6.8 तीव्रता के इस भूकंप से देश को भारी नुकसान हुआ. मोरक्को के आंतरिक मंत्रालय ने शनिवार तड़के जानकारी दी कि, भूकंप के पास के प्रांतों में कम से कम 296 लोगों की मौत हो गई. साथ ही 153 घायल लोगों को इलाज के लिए अस्पताल भेजा गया. मंत्रालय ने लिखा कि सबसे ज्यादा नुकसान शहरों और कस्बों के बाहर हुआ.

इस मुश्किल घड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मोरक्को में सहायता देने की बात कही है.

मोरक्को में हर दिन एक भूकंप आता है, लेकिन दिलचस्प बात ये है कि मोरक्को में लॉकडाउन के दौरान ही भूकंप की भविष्यवाणी का अध्ययन कर लिया था.

लॉकडाउन के दौरान हुई रिसर्च
23 जुलाई को दुनिया भर के 70 से अधिक वैज्ञानिकों ने अकादमिक जर्नल साइंस में एक आर्टिकल प्रकाशित किया.

अखबार में कहा गया कि, वैश्विक लॉकडाउन के दौरान दुनिया थोड़ी शांत हो गई. भूकंप विज्ञानियों और पृथ्वी की गतिविधियों का अध्ययन करने वाले अन्य वैज्ञानिकों के लिए ये बहुत खास समय था.

दरअसल लॉकडाउन के दौरान बाहर होने वाली सभी गतिविधियां बंद कर दी गई थीं. ऐसे में वैज्ञानिक छोटे-छोटे झटकों और कंपकंपी को सुन सकते थे. जो अब तक वो नहीं कर पा रहे थे. जिसके बाद पूरा डाटा तैयार किया गया. जो भविष्य में आने वाले भूकंपों का पता लगाने में काम आए. साथ ही ये नया तरीका हजारों लोगों की जान भी बचा सकता है. 

90 भूकंपों का हुआ अध्ययन
डीडब्ल्यू की खबर के अनुसार, भूकंप की भविष्यवाणी मुमकिन हो सकती है. वैज्ञानिकों ने 7 से ज्यादा तीव्रता वाले 90 भूकंपों पर रिसर्च की है. जिसमें 3 हजार 26 सैटेलाइटों के माध्यम से वैज्ञानिकों ने उन संकेतों का पता लगाया था जो भूकंप से पहले उभरते हैं. ये भूकंप के पूर्वानुमान में अहम साबित हो सकते हैं. इनके माध्यम से फिलहाल पूरे विश्व में भूकंप के पूर्वानुमान पर रिसर्च जारी है.

कैसे आता है भूकंप?
धरती के अंदर कुल सात प्लेट्स हैं. जो हमेशा कार्य करती रहती हैं. जहां ये प्लेट्स टकराती हैं उन्हें फाल्ट जोन कहा जाता है. जब ये प्लेट्स टकराती हैं तो ऊर्जा बाहर निकलने की कोशिश करती है.

इससे जो हलचल होती है वही भूकंप बन जाती है. भूकंप का केंद्र सतह से जितना नजदीक होता है, तबाही उतनी ही बड़ी होती है. 

मौसम परिवर्तन का भूकंप पर असर होता है?
शोध में सामने आया है कि जलवायु परिवर्तन केवल पृथ्वी की ऊपरी सतह को प्रभावित नहीं करता. बल्कि ये हिमनदों को भी प्रभावित करता है. जिससे भूमि के नीचे के भाग में हलचल पैदा होती है और भूकंप का खतरा बढ़ता है.

2021 में जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की छठी आकलन रिपोर्ट से पता चलता है कि, 1950 के बाद से विश्व के कई क्षेत्रों में औसत वर्षा वास्तव में बढ़ी है.

एक गर्म वातावरण अधिक जलवाष्प को बरकरार रख सकता है, जिसके चलते बहुत तेज वर्षा हो सकती है.

भू वैज्ञानिकों ने लंबे समय से वर्षा दर और भूकंप के दौरान होने वाली गतिविधि पर रिसर्च की. जिससे पता चला कि हिमालय में, भूकंप की आवृत्ति मानसून के दौरान साल भर प्रभावित होती है.

शोध से पता चलता है कि हिमालय में 48% भूकंप मार्च, अप्रैल और मई के सूखे और प्री-मानसून महीनों के दौरान आते हैं, जबकि केवल 16% मानसून के मौसम में आते हैं.

बारिश के मौसम के दौरान भूमि का 4 मीटर हिस्सा लंबवत और क्षैतिज रूप से दब जाता है. जब सर्दियों में पानी गायब हो जाता है तो प्रभावी 'रिबाउंड' क्षेत्र अस्थिर हो जाता है और भूकंप की संख्या बढ़ जाती है.

दुनिया में आए सबसे बड़े भूकंप

इतिहास का सबसे बड़ा भूकंप मई 1960 में चिली में दर्ज किया गया था. ये 9.4 और 9.6 की तीव्रता का था, जिससे लगभग 10 मिनट तक जमीन हिली थी. इस भूकंप में करीब 6000 लोगों की जान गई थी.

1964 में गुड फ्राइडे पर ग्रेट अलास्कन में आए भूकंप की तीव्रता 9.2 थी और ये लगभग 5 मिनट तक रहा था. ये उत्तरी अमेरिका में दर्ज अब तक का सबसे शक्तिशाली भूकंप माना जाता है. इस भूकंप के झटकों से 9 लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी, लेकिन दुनिया भर में इससे आई सुनामी में 100 से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी. इसके प्रभाव से सुनामी की लहरें अंटार्कटिका तक पहुंच गई और जापान, पेरू, मेक्सिको और न्यूजीलैंड के साथ-साथ अन्य तटीय क्षेत्रों में भी देखी गई.

साल 2001 में आया भुज भूकंप पिछली दो शताब्दियों में भारत में आया तीसरा सबसे बड़ा और दूसरा सबसे बड़ा भूकंप था. इस भूकंप ने 20,000 से अधिक लोगों की जान ली और लाखों लोगों को बेघर कर दिया था.

साल 2004 में दक्षिण एशिया में आया 9.1 तीव्रता का भूकंप अब तक की सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदाओं में से एक है. इस भूकंप से लगभग 100 फीट की सुनामी आई थी. जिसमें थाईलैंड, श्रीलंका, भारत और इंडोनेशिया सहित 14 देशों में लगभग 2,27,000 मौतें दर्ज की गई थी.

साल 2015 में नेपाल में आए भूकंप से भारत, चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के भी कुछ क्षेत्र प्रभावित हुए थे. नेपाल में 1934 के बाद आया ये सबसे जबरदस्त भूकंप था.

कब लगते हैं भूकंप के सबसे तेज झटके?
अगर भूकंप की तीव्रता 0 से 1.9 रिक्टर होती है तो इसका पता भी नहीं चलता. इसका पता लगाने के लिए सीज्मोग्राफ का उपयोग किया जाता है. वहीं इसकी तीव्रता 2 से 2.9 रिएक्ट होने पर हल्का कंपन महसूस होता है.

इसके अलावा इसकी तीव्रता 3 से 3.9 होने पर थोड़े झटके महसूस होते हैं. वहीं तीव्रता 4 से 4.9 रिक्टर होने पर खिड़कियां टूट सकती हैं. इसके अलावा अगर भूकंप की तीव्रता 5 से 5.9 रिक्टर होती है तो सामान और पंखे हिलने लगते हैं.

इसकी तीव्रता 6 से 6.9 होने पर मकान की नींव में दरार आ सकती है और 7 से 7.9 की तीव्रता में मकान गिर जाते हैं और काफी तबाही हो सकती है. इसके बाद 8 से 8.9 की तीव्रता पर अगर भूकंप आता है तो सुनामी का खतरा होता है.

वहीं भूकंप की तीव्रता 9 होती है तो खड़े होने पर भी पृथ्वी हिलती नजर आएगी.

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