केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) के 9वीं से 12वीं कक्षा तक के सिलेबस में कटौती के तरीके और हटाए गए टॉपिक को लेकर दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने सवाल खड़े किये हैं.


एक आधिकारिक बयान जारी कर मनीष सिसोदिया ने कहा है कि सीबीएसई ने एक सर्कुलर जारी करके कक्षा 9 से 12 तक के सिलेबस में कटौती की जानकारी दी है. सर्कुलर में पाठ्यक्रम का परिचय, विभिन्न टॉपिक के संशोधित पाठ्यक्रम, सहायक शैक्षणिक विषयों और पाठ्यक्रम में कटौती के साथ ही सेकेंडरी और सीनियर सेकेंडरी स्तर पर संसाधनों का विवरण शामिल है. हालांकि इस सर्कुलर में सिलेबस कटौती की मात्रा नहीं बताई गई है, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पहले की तुलना में सिलेबस में 30 फीसदी तक कटौती हुई है. सीबीएसई के सर्कुलर के अनुसार करिकुलम कमिटी की मंजूरी के आधार पर संबंधित कोर्स कमेटियों ने पाठ्यक्रम में बदलाव को अंतिम रूप दिया है. मीडिया रिपोर्ट्स में ये भी बताया गया है कि सीबीएसई को लगभग 1500 सुझाव भी मिले हैं.


मनीष सिसोदिया की ओर से कहा गया है, "दिल्ली सरकार हमेशा से सिलेबस में कटौती की पक्षधर रही है. मैंने कई मौकों पर ऐसा कहा है क्योंकि ज्यादा सिलेबस का मतलब ज्यादा सीखना नहीं है. 5 जून, 2020 को मैंने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री को लिखे पत्र में अनुरोध किया था कि सभी कक्षाओं और टॉपिक के पाठ्यक्रम में 30 फीसदी तक कटौती की जाए. टॉपिक को ज्यादा फैलाने के बजाय सीखने और समझने में अधिक गहराई होनी चाहिए. इसके मद्देनजर शैक्षणिक सत्र 2020-21 के सिलेबस को कटौती के सीबीएसई के फैसले का मैं समर्थन करता हूं. लेकिन पाठ्यक्रम में कटौती के तरीके और हटाए गए टॉपिक को लेकर मैं अपनी आपत्तियां और चिंता व्यक्त करना चाहता हूं."


उपमुख्यमंत्री की ओर से जारी बयान में जिन बिंदुओं पर आपत्ति जताई गई है, वो इस प्रकार हैं-


1. सेकेंडरी स्कूल पाठ्यक्रम कक्षा 9-10 साल 2020-21 और सीनियर सेकेंडरी स्कूल पाठ्यक्रम कक्षा 11-12 साल 2020-21 में ये नहीं बताया गया है कि सीबीएसई की कोर्स कमिटी, करिकुलम कमिटी तथा शासी निकाय किसी भी टॉपिक अथवा अध्याय को हटाने या शामिल करने के निर्णय पर किस प्रक्रिया के तहत पहुंची है.


2. करिकुलम में कटौती से जुड़े विवरण में ये नहीं बताया गया है कि किसी टॉपिक या अध्याय को किस वजह से छोड़ा गया है.


3. सामाजिक विज्ञान में विवाद की अधिक गुंजाइश है. मनीष सिसोदिया ने कहा, "मैं इस बात से सहमत हूं कि किसी भी टॉपिक को चुनने या छोडने़ को लेकर प्रश्न उठना स्वाभाविक है. इसलिए सीबीएसई को किन्हीं खास टॉपिक को छोड़ने के संबंध में तार्किक आधार देने के लिये सचेत रहना चाहिए. लिहाजा, आम नागरिकों के साथ ही दिल्ली के शिक्षा मंत्री के रूप में, जिनके कक्षा 9 से 12 तक के सरकारी और निजी स्कूलों के लगभग 15 लाख बच्चे इस संशोधित पाठ्यक्रम के अनुसार अध्ययन करेंगे, मैं जानना चाहूंगा कि-


'लोकतांत्रिक अधिकार' और ’भारत में खाद्य सुरक्षा’ को कक्षा 9 के पाठ्यक्रम से पूरी तरह से क्यों हटाया गया?


-लोकतांत्रिक राजनीति के चार अध्याय- ’लोकतंत्र और विविधता’, ’लिंग, धर्म और जाति’, ’लोकप्रिय संघर्ष और आंदोलन’ और ’लोकतंत्र के लिए चुनौतियां’ को कक्षा 10 के पाठ्यक्रम से पूरी तरह से क्यों हटाया गया?


- संघवाद, नागरिकता, राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता को कक्षा 11 के राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम से पूरी तरह क्यों हटा दिया गया?


- अन्य कई विषयों के अलावा, ’भारत में सामाजिक और नव-सामाजिक आंदोलन’ तथा ’क्षेत्रीय आकांक्षाओं’ को भी राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम के बारहवीं कक्षा से क्यों हटा दिया गया?


- कक्षा 11 समाजशास्त्र पाठ्यक्रम से ’अनुसंधान विधि’ को क्यों हटाया है? यह तो समाजशास्त्र, मास मीडिया और संचार के अध्ययन की रीढ़ है.


- ’अंडरस्टेंडिंग पार्टीशन’ भारत विभाजन की समझ को कक्षा 12 पाठ्यक्रम से क्यों हटाया गया?


इसी तरह अन्य विषयों में भी कटौती संबंधी टॉपिक का चुनाव चैंकाने वाला है, जैसे-


- कक्षा 10वीं के विज्ञान में, मानव आंख और रंगीन दुनिया तथा ऊर्जा के स्रोतों को हटा दिया गया है.


- कक्षा 9 में, अंग्रेजी भाषा और साहित्य में किसी परिस्थिति पर पत्र और किसी स्थान या घटना पर वर्णनात्मक पैराग्राफ लिखने संबंधी कार्य हटा दिया गया है. इसी तरह कक्षा 11 और 12 में लेख और रिपोर्ट लेखन, लेखन की विभिन्न शैली, संपादक के नाम पत्र, नौकरी के लिए आवेदन, नोट्स बनाने और सारांश इत्यादि को अंग्रेजी कोर विषय से हटा दिया गया है. जबकि ऐसे विषय अभिव्यक्ति के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं.


- कक्षा 11 और 12 के गणित में मैथेमेटिकल इंडक्शन सिद्धांत और मैथेमेटिकल रिजनिंग को पूरी तरह से हटा दिया गया है.


इसके साथ ही मनीष सिसोदिया ने कहा, "इसके अलावा, शिक्षकों को कुछ विषय पढ़ाने का निर्देश देते हुए कहा गया है कि ये विषय आंतरिक या बोर्ड परीक्षा का हिस्सा नहीं होंगे. ऐसा करना भी ठीक नहीं है. ये सर्वविदित है कि क्लास में वही पढ़ाया जाता है जो विषय परीक्षा में पूछे जाते हैं. सामाजिक विज्ञान के जिन विषयों को छोड़ दिया गया है, वे वर्तमान संदर्भ में काफी प्रासंगिक हैं क्योंकि यह जरूरी है कि बच्चे इन चीजों को व्हाट्सएप विश्वविद्यालय के माध्यम से नहीं बल्कि प्रामाणिक स्रोत के जरिए सीखें."