शिवसेना विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद महाराष्ट्र में 11 महीने पुरानी बगावत की यादें फिर से ताजा हो गई है. सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे गुट के सचेतक भरत गोगावले की नियुक्ति रद्द कर दी है. कोर्ट ने 16 विधायकों की अयोग्यता के फैसले को बड़ी बेंच में ट्रांसफर कर दिया है. 


सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि राज्यपाल को राजनीतिक दलों के आंतरिक विवाद में पड़ने का अधिकार नहीं है. किसी दल के विवाद में फ्लोर टेस्ट बुलाना सही नहीं है.


महाराष्ट्र में 20 जून को विधानपरिषद चुनाव के बीच एकनाथ शिंदे ने 11 विधायकों के साथ मिलकर उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत कर दिया था. शिंदे अपने साथ शिवसेना के 40 और 10 निर्दलीय विधायकों को लेकर पहले सूरत और फिर गुवाहाटी चले गए.


शिंदे के इस कदम से भूचाल आ गया और महाविकास अघाड़ी की सरकार गिर गई. सरकार गिरने से पहले यह केस सुप्रीम कोर्ट में चल गया.


उद्धव गुट का आरोप था कि शिंदे ने गद्दारी की है और उसे कांग्रेस से शिवसेना में आए नेताओं का साथ मिला. सतारा में एक कार्यक्रम के दौरान शिंदे ने शिवसेना से बगावत की कहानी भी सुनाई थी. शिंदे की बगावत की वजह से उद्धव के हाथ से शिवसेना की कमान भी चली गई.


शिवसेना में बगावत की पटकथा कैसे लिखी गई और एकनाथ शिंदे क्यों बागी हुए, इसे विस्तार से जानते हैं...


शिवसेना से शिंदे की बगावत क्यों, 3 प्वॉइंट्स


1. समृद्धि एक्सप्रेस में भ्रष्टाचार का मुद्दा- 2014 से 2019 तक बीजेपी और शिवसेना की सरकार थी. उस सरकार में एकनाथ शिंदे के पास पीडब्ल्यूडी मंत्रालय था. तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपने गृहक्षेत्र नागपुर से मुंबई के लिए समृद्धि एक्सप्रेस बनाने की घोषणा की. इस प्रोजेक्ट को फडणवीस का ड्रीम प्रोजेक्ट माना जाता रहा है. 


2019 में उद्धव ठाकरे और महाविकास अघाड़ी की सरकार बनने के बाद फडणवीस को घेरने का प्लान बना. मुद्दा था- समृद्धि एक्सप्रेस में भ्रष्टाचार का. महाविकास अघाड़ी के नेताओं का कहना था कि औने-पौने दाम में जमीन खरीदा गया है, जिससे सत्ता में बैठे लोगों को फायदा मिला.


2020 में एकनाथ शिंदे ने भी इसे स्वीकार किया और सीएमओ में शिकायत आने की बात कही. हालांकि, बाद में इसकी आंच शिंदे तक पहुंचने लगी. शिंदे इस मामले को ठंडे बस्ते में डालना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस लगातार हमलावर थी. शिंदे इस वजह से उद्धव ठाकरे से नाराज हो गए. बगावत के वक्त शिंदे गुट के निशाने पर सबसे अधिक कांग्रेस ही थी.


2. उद्धव ठाकरे का बीमार होना- सरकार गिरने और शिवसेना में बगावत में सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर उद्धव ठाकरे का बीमार होना था. बगावत से कुछ महीने पहले ही शरद पवार ने उद्धव से आगाह भी किया था. एक मंच पर पवार ने कहा था कि आप नेताओं से मिलते नहीं है, विधायकों को भी समय नहीं देते हैं. यह नाराजगी को बढ़ाती है.


दरअसल, उस वक्त उद्धव ठाकरे के सर्वाइकल स्पाइन की सर्जरी हुई था. इस वजह से नेताओं से नहीं मिलते थे. उस वक्त कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि पवार और शिंदे को भी उद्धव ने मिलने का समय नहीं दिया था. 


सरकार के अधिकांश बड़े मंत्रालय एनसीपी के पास था और शिवसेना विधायकों का आरोप था कि हमे फंड नहीं दिया जा रहा है. उद्धव के बीमार होने की वजह से वहां भी सुनवाई नहीं हो पा रही है. शिंदे ने इसका फायदा उठाया और सभी नाराज विधायकों को एकजुट किया. 


3. देसाई और राउत का बढ़ता कद- शिवसेना में उद्धव ठाकरे के बाद एकनाथ शिंदे का स्थान था. 2015 में जब बीजेपी और शिवसेना ने मिलकर सरकार बनाई तो शिंदे ही विधायक दल के नेता थे. 2019 में भी उद्धव ठाकरे शिंदे को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन बीजेपी से बात नहीं बन पाई.


इसके बाद संजय राउत और शरद पवार ने मिलकर महाविकास अघाड़ी का गठन किया. एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने. शिंदे को कैबिनेट में शामिल किया गया, लेकिन शिवसेना में उनका रसूख कम होता गया.


महाविकास अघाड़ी की सरकार में ठाकरे परिवार के बाद संजय राउत और अनिल देसाई का कद बढ़ता गया. सियासी गलियारों में शिंदे के मंत्रालय में उद्धव के बेटे आदित्य के दखल की भी चर्चा होने लगी. शिंदे इस सबसे नाराज रहने लगे और उद्धव के खिलाफ बागी बन गए.


बगावत की पटकथा कैसे लिखाई?


स्पीकर का चुनाव फंसा- महाविकास अघाड़ी की सरकार बनने के बाद कांग्रेस के नाना पटोले विधानसभा के स्पीकर बने, लेकिन संगठन में आने के लिए पटोले ने स्पीकर पद से इस्तीफा दे दिया. स्पीकर के इस्तीफा देने के बाद सरकार ने राज्यपाल से चुनाव कराने की अनुमति मांगी तो राजभवन ने हरी झंडी नहीं दी.


उस वक्त महाविकास अघाड़ी ने इसे हल्के में ले लिया. संजय राउत ने एक इंटरव्यू में कहा कि अगर स्पीकर का चुनाव हुआ होता तो सरकार नहीं गिरती. सरकार गिराने की पूरी पटकथा नाना पटोले के इस्तीफा देने के बाद ही लिखा गई. राउत ने सरकार गिरने के लिए नाना पटोले को भी जिम्मेदार ठहरा दिया.


एमलएसी चुनाव के बीच गायब- महाराष्ट्र में विधानपरिषद की 10 सीटों के लिए चुनाव की घोषणा हुई. बीजेपी ने तय से एक ज्यादा कैंडिडेट उतार दिए. इसके बाद सभी पार्टियां क्रॉस वोटिंग के डर से अपने विधायकों को बचाने में जुट गई. 


चुनाव में शिंदे के साथ शिवसेना के अधिकांश विधायक चले गए. वोटिंग के बाद विधायकों को अपने-अपने घर जाना था, लेकिन ठाणे होते हुए सभी विधायक सूरत चले आए. अजित पवार ने इसके लिए उद्धव ठाकरे को जिम्मेदार ठहराया था.


पवार ने कहा कि उद्धव ने ठाकरे के कहने पर सीमावर्ती इलाकों में अफसरों को तैनात किया था. जब सभी विधायक भाग रहे थे तो अफसरों ने सहयोग नहीं किया. 


सूरत सुरक्षित नहीं, इसलिए गुवाहाटी गए- विधायकों का पहला जत्था बगावत कर सूरत पहुंचने में कामयाब हो गया, जिसके बाद ठाकरे और सरकार एक्टिव हो गई. सूरत में शिवसेना का काडर मजबूत था, जिस वजह से वहां के होटल के बाहर कार्यकर्ताओं ने विरोध दर्ज कराना शुरू कर दिया. 


शिवसेना ने रिजॉर्ट और पुलिस को लेकर बीजेपी पर सवाल उठाए. एकनाथ शिंदे को यहां विधायकों के वापसी का डर सताने लगा, जिसके बाद सभी विधायकों को गुवाहाटी शिफ्ट करने की योजना बनाई गई. सूरत में 24 घंटे रूकने के बाद बागी विधायक गुवाहाटी चले गए. 


एकनाथ शिंदे ने सतारा के एक कार्यक्रम में कहा था कि मुझे डर था कि अगर कुछ गड़बड़ हुई तो सभी विधायक शहीद हो जाएंगे. इसलिए मिशन को अंजाम देने के लिए काफी सतर्कता बरती गई. 


बगावत में राज्यपाल ने भी की थी मदद?
शिवसेना विवाद मामले में महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल की भूमिका भी शुरू से ही संदेह के घेरे में रही. सुप्रीम कोर्ट ने भी राज्यपाल पर सवाल उठाया था. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि विश्वास मत हासिल का आदेश देकर राज्यपाल ने गलत किया था. 


बगावत के बाद एकनाथ शिंदे ने जब राज्यपाल कोश्यारी से मुलाकात की थी, तो उस वक्त एक तस्वीर खूब वायरल हुई थी. इस तस्वीर में कोश्यारी शिंदे को लड्डू खिलाते हुए नजर आ रहे थे. इस पर काफी सवाल उठे थे. 


सियासी गलियारों में इस पर चर्चा शुरू हो गई थी कि क्या कोश्यारी ने बगावत में एकनाथ शिंदे की मदद की थी?