क्या कोरोना वायरस से ध्वनि और वायु प्रदूषण कम हुआ है? वैज्ञानिकों ने किया ये अहम खुलासा
क्या कोविड-19 की रोकथाम के लिए अपनाए गए उपाय के बीच जलवायु परिवर्तन का संबंध है?ध्वनि, वायु प्रदूषण में देखी जा रही कमी पर वैज्ञानिकों ने महामारी को जागने का मौका बताया है.
क्या वैश्विक कोविड-19 क्वारंटाइन का प्रभाव शहरों के वायु प्रदूषण को कम करने का कारण बना है? महामारी की रोकथाम के लिए अपनाए गए क्वारंटाइन ने ध्वनि प्रदूषण दूर कर चिड़ियों की चहचहाहट सुनना आसान कर दिया है? क्या क्वारंटाइन से आसमान साफ होने में मदद मिली है?
इस्ट एंगलिया और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के शोध के मुताबिक क्वारंटाइन का प्रभाव मामूली और अस्थायी है. उनकी सलाह है कि अगर प्रभावी तरीके से जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभाव को कम करना है तो हमें आर्थिक ढांचे और जीवन शैली में सुधार करना होगा. नेचर क्लाइमेट चेंज पत्रिका में प्रकाशित शोध का दावा है कि वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण में कमी अस्थायी हैं.
कोविड-19 महामारी से पैदा हुए परिवर्तन का संबंध वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया कि वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन स्तर 2019 की तुलना में अप्रैल 2020 की शुरुआत में 17 फीसद कम था. वैज्ञानिकों का ये शोध अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की रिपोर्ट के उस दावे को समर्थन करता है जिसमें बताया गया था कि जीवाश्म ईंधन से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन पिछले साल के शुरुआती तीन महीनों के मुकाबले 2020 के शुरुआती तीन महीनों में 5 फीसद कम था. अपने शोध में वैज्ञानिकों ने प्रदूषण की कम अवधि और लंबा प्रभाव दोनों को अलग बताया. लंबी अवधि में कुछ महीनों के परिवर्तन का बहुत ज्यादा महत्व नहीं है.
उनका कहना है कि वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी ग्रीन हाउस गैसों के जमाव के कारण होता है. इसलिए क्वारंटाइन ने कम अवधि में वायुमंडल में इन गैसों के उत्सर्जन को प्रभावित किया है. इसके चलते कई जगहों के वायु प्रदूषण में गिरावट दर्ज की गई है. लेकिन ये उपाय काफी नहीं हैं जिससे वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों को पूरी तरह रोक सके. इसलिए कि ग्रीन हाउस गैसों के अणु वायुमंडल में लंबे समय तक रहते हैं. जैसे मिथेन गैस 12 सालों तक और कार्बन डाइऑक्साइड 200 साल तक रह सकता है.
नए शोध में भविष्यवाणी की गई है कि अगर रोकथाम 2020 के पूरे साल लागू रहे तो सालाना उत्सर्जन में कमी 7.5 फीसद तक पहुंच जाएगी. पर्यावरण के लिए सैद्धांतिक रूप से ये बड़ी खबर होगी खासकर अगर हम कई साल यही स्तर बरकरार रख पाते हैं. अगर पेरिस समझौता के लक्ष्य को हासिल करना है तो 1.5 डिग्री सेल्सियस तक उत्सर्जन में कमी करने के लिए वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को 7.6 फीसद तक 2020-2030 के बीच कम करना होगा.
फिर भी ये नहीं कहा जा सकता कि उत्सर्जन में कमी का स्तर बहुत लंबे समय तक रहेगा. जबतक कि हमारी आर्थिक गतिविधियां और जीवन शैली में बदलाव ना हों. अब जबकि लॉकडाउन खत्म हो रहा और लोग काम की तरफ लौट रहे हैं तो उत्सर्जन में वृद्धि एक बार फिर देखने में आएगी. इसलिए कोविड-19 महामारी हमारे लिए जागने का समय है. हमें अभी भी बहुत कुछ करना है. महामारी ने हमें गहरे बदलाव की तरफ झांकने का मौका दिया है.
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