नई दिल्ली: इन दिनों पीने के पानी की गुणवत्ता को लेकर शोर मचा है. कई बड़े शहरों में पीने का पानी प्रदूषित हो चुका है. पूरे देश में पीने के पानी को लेकर बहस छिड़ी हुई है. लेकिन देश में एक गांव ऐसा भी है जो आज भी पानी को शुद्ध करने के लिए अपनी पुरातन पद्धति को अपनाए हुए है.
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा के पास पातालकोट नाम का एक गांव है. इस गांव का नाम पातालकोट इसलिए पड़ा क्योंकि यह धरातल से करीब तीन हजार फीट एक गहरी खाई पर बसा हुआ है. यह इलाका वनवासियों का घर है. यहां कई जनजातियां रहती हैं.
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यहां के लोग पीने के पानी के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर ही निर्भर हैं. गर्मी के मौसम में पानी के सभी स्रोत सूख जाते हैं, ऐसे में पोखर तालाब और झरने से प्राप्त पानी को ही यह लोग इस्तेमाल में लाते हैं.
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यह पानी पीने योग्य नहीं होता है लेकिन यह वनवासी अपने अनुभवों से विकसित किए विज्ञान से इस पानी को पीने योग्य बना लेते हैं. जंगलों में रहने के कारण इन लोगों को पेड़, पत्तियों और छाल की मदद से पानी को शुद्ध करने की तकनीक पता है. इतना ही नहीं ये सूरज की किरणों से भी पानी को शुद्ध करने का ज्ञान रखते हैं.
झील का पानी दूषित होता है लेकिन ये लोग सहजन, खसखस, निर्गुंडी और कमल आदि से खराब पानी को पीने योग्य बना लेते हैं. यहां की महिलाएं पीने के पानी को पीतल और तांबे के बर्तन में रखती हैं. इन बर्तनों को ये लोग छतों पर धूप में रख देते हैं शाम होते होते ये पानी ठंड़ा हो जाता है बाद में ये लोग इसी पानी को पीते हैं.
वैज्ञानिक भी मानते हैं कि सूरज की किरणों में पानी को शुद्ध करने की क्षमता होती है. इस क्रिया से बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं.