नई दिल्ली: इस साल आम सर्दी के मुकाबले ज्यादा ठंड पड़ने के आसार हैं. मौसम विभाग के प्रमुख ने अपनी भविष्यवाणी के पीछे प्रशांत महासागर पर कमजोर 'ला नीना' की स्थिति के उभार को जोड़ा है. ला नीना को स्पेनिश भाषा में छोटी बच्ची कहा जाता है.
मृत्युंजय महापात्रा ने कहा कि अनुमान मौसम के पैटर्न पर आधारित है जो दूर दराज प्रशांत महासागर पर बनता है. उन्होंने बताया कि अगर 'एल नीनो' और 'ला नीना' के पैरामीटर को बड़े पैमाने पर समझा जाए तो इस साल भारत अधिक ला नीना की स्थिति का सामना करेगा. जिसके चलते देश के उत्तरी भाग पर मौजूद तापमान कम हो जाएगा और इसके नतीजे में सर्दी का मौसम पहले की तुलना में ज्यादा लंबा होगा. हालांकि, इसका प्रभाव दुनिया भर में बड़े पैमाने पर पड़ेगा.
आम सर्दी के मौसम से ज्यादा ठंड पड़ने के आसार
मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक, इसके पीछे बड़ी वजह हवा की दिशा में बदलाव होना है. दरअसल एल निनो और ला नीना, एल नीनो-दक्षिणी ऑसीलेशन (ENSO) चक्र के हिस्से हैं और दोनों जलवायु घटना के विपरीत काम करते हैं. ENSO चक्र एक वैज्ञानिक शब्दावली है जो पूर्व-मध्य इक्वेटोरियल पैसिफिक में महासागर और वायुमंडल के बीच तापमान के उतार-चढ़ाव को बताता है. पूर्व-मध्य इक्वेटोरियल पैसिफिक भूमध्य रेखा के पास दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच का क्षेत्र कहलाता है.
'अल नीनो' में समुद्र की सतह का बढ़ता है तापमान
एल निनो को ENSO का गर्म चरण के तौर पर जाना जाता है जबकि ला नीना को ठंडे चरण के तौर पर बयान किया जाता है. अल नीनो में समुद्र की सतह का तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है जबकि ला नीना में समुद्र की सतह का तापमान कम होने लगता है. ये अंतर महासागरीय घटनाओं समेत दुनिया के मौसम और जलवायु को बड़े पैमाने पर प्रभावित करने का कारण बन सकते हैं.
एल नीनो और ला नीना का उतार-चढ़ाव आम तौर पर नौ महीनों से एक साल तक चलता है, लेकिन आगे कुछ साल लंबा भी हो सकता है. इसका मतलब हुआ कि भारत के उत्तरी हिस्सा में रहने वाले लोग सामान्य सर्दी से ज्यादा ठंड का सामना कर सकते हैं. इसलिए, बेहतर होगा मोटे और गर्म सर्दी के कपड़ों को अपने पास तैयार रखें क्योंकि मौसम रुक-रुक कर बहने वाली सर्द हवाओं के कारण ज्यादा कठोर हो सकता है.
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