टपकती छत से राष्ट्रपति भवन तक का सफर. पढ़िए नए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की जीवनी


खानपुर जूनियर हाईस्कूल का नतीजा निकलते ही जहाँ कई साथियों ने मान लिया कि वे काबिल हो गए और उनकी पढ़ाई पूरी, वहीं गर्मियों की छुट्टियां पूरी होने तक रामनाथ को आगे की पढ़ाई की चिंता सताने लगी. उसने सबसे पहले अपनी भाभी विद्यावती को कानपुर जाकर और आगे पढ़ने की इच्छा बताई. भाभी ने अपने लाड़ले ‘लल्ला’ को राय दी कि पहले कानपुर जाकर देख लो, कहाँ दाखिला लेना है. उन्होंने उसे कानपुर भिजवाने का कोई-ना-कोई जुगाड़ करने का वायदा भी किया. उन्हें भी मालूम था कि छोटे बेटे को अपनी नजरों से दूर करने के लिए बाबूजी का दिल आसानी से राजी नहीं होगा. इसलिए सही मौके का इंतजार भी जरूरी था. यह मौका उम्मीद से ज्यादा जल्दी मिल गया.


जुलाई महीने के अंतिम सप्ताह में झींझक से उसी दौरान बड़े भैया मोहन लाल भी ‘लल्ला’ को शाबाशी देने सपत्नीक परौंख आ गए.


उसी दिन शाम को झोपड़ी के बाहरी हिस्से में पड़े तख्त और उसके आस-पास की खुली जगह पर भाभी के निर्देशन में नन्हे देवर ने पानी का छिड़काव करके तपती कच्ची जमीन को ठंडा किया. खाने के बाद वहीं बैठ कर चर्चा शुरू हुई. विद्यावती को मालूम था कि अब क्या और कैसे करना है.


घूंघट की आड़ से उन्होंने दिखावटी तौर पर अपने पति शिव बालकराम से पूछा, “बढ़िया नम्बरों से आठवीं पास कर लिया लल्ला ने. अब अच्छी-सी लड़की देखकर ब्याह करा दो इसका.” शिव बालक राम बहुत ही दूरदर्शी इंसान थे, उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि उनकी पत्नी क्या चाहती हैं. उन्होंने कूटनीतिक दांव चला. अपने बड़े भाई मोहनलाल से पूछा कि उनकी राय क्या है? इससे पहले कि मोहनलाल कुछ बोलते, पूरे घर को अपने अनुशासन के दायरे में बांधे रखनेवाले मैकू बाबा ने वही कहा, जो उनसे उम्मीद थी.



आसमान की तरफ देखते हुए उन्होंने कहा, “तुम सबकी ही शादी हो गयी. इसकी भी हो जायेगी. जल्दी क्या है. 13 साल का ही तो है अभी. बहुत अच्छा पढ़ रहा है.” फिर अचानक ही दोनों भाभियों के बीच पालथी मार कर बैठे रामनाथ को घूर कर बोले, “क्यों लल्ला, शादी करने की पड़ी है तुझे अभी से? तुझे अगले हफ्ते कानपुर लेकर चलूँगा और गोमती-सेवाराम से राय लूंगा कि तुझे कहाँ पढ़ाया जाए. खर्चे की फिक्र ना करो. पथरी माता की किरपा से उसका भी इंतजाम हो जाएगा.”


2 अगस्त, 1960 को मैकू लाल अपने नन्हे राजकुमार को लेकर बहुत सुबह ही कानपुर के लिए पैदल ही निकल पड़े. पहले बैलगाड़ी और तांगे से कानपुर जाने वाली ग्रांड ट्रंक रोड तक पहुंचे और फिर दिन छिपने के समय कानपुर में राबर्ट्सगंज इलाके में बनी लाल इमली मिल के स्टाफ की कॉलोनी में अपनी बड़ी बेटी गोमती के घर दो बसें बदल कर पहुंचे.


अचानक ही अपने पिता और सबसे छोटे भाई को अपने दरवाजे पर देखकर गोमती गदगद हो गयीं. शाम का समय हो चुका था. तब तक मिल में अपनी ड्यूटी पूरी करके सेवाराम भी आ चुके थे. पिता के आने की खबर पाकर कॉलोनी में ही कुछ दूर पर रह रहीं उनकी दूसरी बेटी पार्वती अपने पति धर्मदास के साथ आ पहुँचीं. दोनों-बहनों और बहनोइयों ने भी किशोर हो चले रामनाथ का खूब मनोबल बढ़ाया. रात काफी हो चुकी थी, इसलिए ‘लल्ला’ के दाखिले की रणनीति बनने के लिए 3 अगस्त का दिन तय हुआ.


अगले दिन औपचारिक बातचीत के बाद यह तय हुआ कि लल्ला को घर के एकदम पास मुश्किल से एक किलोमीटर दूर माल रोड पर स्थित बिशम्भर नाथ सनातन धर्म इंटर कॉलेज (बीएसएनडी) में दाखिला दिलाने की कोशिश की जाए. उस समय तक 1939 में स्थापित बीएसएनडी कॉलेज ने कामयाबी के झंडे गाड़ रखे थे. हाई स्कूल और इंटर की परीक्षाओं में इस कॉलेज के सर्वाधिक छात्र प्रथम श्रेणियां पाते थे. इस कॉलेज में दाखिले के लिए कानपुर ही नहीं दूर-दूर से छात्र आया करते थे. इसी कारण इस कॉलेज में दाखिला आसान नहीं होता था.


4 अगस्त की सुबह मैकू लाल अपने दामाद सेवाराम और धर्मदास के साथ रामनाथ को लेकर दाखिले के मामले में भाग्य आजमाने निकले. दोनों दामाद कानपुर निवासी जरूर थे, मगर उनकी कोई जान-पहचान कॉलेज में नहीं थी. दाखिले के लिए बेतहाशा भीड़ के कारण प्रवेश का काम एक साथ चार वरिष्ठ और साफ-सुथरी छवि वाले शिक्षक देख रहे थे. पहले दो शिक्षक उम्मीदवारों के रिजल्ट और अंक देख कर यह तय करते थे कि उसे प्रवेश देने पर विचार किया जाए या नहीं. बाकी दो शिक्षक उसी समय हर छात्र से एकाध सवाल करके यह अनुमान लगा लेते थे कि वह कितने पानी में है? स्कूल प्रबंधन ने एक व्यवस्था और की हुई थी कि यदि किसी बच्चे के पिता या भाई ने इसी स्कूल से परीक्षाएं पास की थीं और उनका शैक्षिक रिकॉर्ड अच्छा था, तो इसके अलग अंक मिलते थे. रामनाथ के बड़े भाई राम स्वरूप भारती ने उसी साल बीएसएनडी कॉलेज से ही अच्छे नम्बरों से 12वीं कक्षा पास की थी.


आठवीं कक्षा में सभी विषयों में प्रथम श्रेणी, गणित तथा अंग्रेजी में 75 प्रतिशत से अधिक अंकों और बड़े भाई के इसी स्कूल में पढ़े होने के कारण रामनाथ का नाम प्रवेश पात्रता में काफी ऊपर आ गया. साक्षात्कार के समय भी रामनाथ से केवल गणित और अंग्रेजी विषयों पर सवाल पूछे गए.


ग्रामीण परिवेश से आये बच्चे में गणित की शानदार समझ और अंग्रेजी पर बहुत अच्छा नियन्त्रण देखकर चारों शिक्षक बहुत प्रभावित हुए. प्रवेश प्रक्रिया के प्रभारी मास्टर जाकिर हुसैन ने मैकू लाल को अपने पास बुलाया. वह दोनों दामादों के साथ हाथ जोड़े मास्टर साहब के सामने आकर खड़े हो गए.


मास्टर जाकिर हुसैन ने मैकू बाबा से पूछा, “यू आल्सो ए टीचर इन दैट विलेज?” (आप भी उसी गाँव में शिक्षक हैं क्या?) यह सवाल सुन कर तीनों लोग भौंचक्के रह गए. उनको समझ ही नहीं आया, मास्टर क्या पूछ रहे थे.


“नो सर. ही इज नो टीचर. ही इज विलेज डॉक्टर.” बड़ों की आड़ से बाहर निकल कर रामनाथ ने विनम्रता से जवाब दिया. कुछ ही देर बाद रामनाथ का दाखिला करने और फीस जमा करने के निर्देश कॉलेज के कार्यालय को मिल गए. उन्हें स्कूल की वर्दी और जूते के साथ ही अन्य सामान की सूची भी दे दी गयी.


उसी शाम रामनाथ के लिए नवीं कक्षा की किताबें, ज्योमेट्री बॉक्स, इंक पेन, स्याही की दवात, पेन्सिल रबर, कापियां, बस्ता और जूते-मोजे बीएसएनडी स्कूल के पास चुन्नीगंज से खरीदे गए. स्कूल की दो कमीज और नेकर का कपड़ा लेकर सिलने को दे भी दिया गया.


इस घटना के समय एक साल पहले 1959 में जन्मे गोमती-सेवाराम के पुत्र श्याम बाबू बताते हैं, “मामाजी, शुरू में इंटर तक हमारे यहाँ रहे. इसके बाद वह डीएवी कॉलेज से बीकॉम करने चले गए. बाद में उन्होंने दयानंद कॉलेज ऑफ लॉ से वकालत की पढ़ाई की. इस दौरान वह डीएवी कॉलेज के छात्रावास में रहे. उन्होंने अपना खर्चा चलाने के लिए ट्यूशन भी पढ़ाये और कचहरी में एक जज के निजी सहायक के रूप में 150 रुपया मासिक पर काम किया. इसके बाद वह प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग्य आजमाने दिल्ली चले गए. दिल्ली में रहकर आईएएस परीक्षाओं में तीसरे प्रयास में सफल तो हो गए, लेकिन आईएएस एलायड में चयन होने के कारण नौकरी ना करने का फैसला लिया.”


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(अशोक कुमार शर्मा की किताब हमारे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का यह अंश जगरनॉट बुक्स की अनुमति से प्रकाशित)