कुत्ते के मालिकाना हक को साबित करने के लिए चार महीने चली जंग, 'कोको' के DNA टेस्ट पर 30 हजार खर्च होने के बाद मिला असली मालिक
चार महीने बाद कुत्ते के मालिकाना हक का विवाद सुलझ गया है. डीएनए जांच में पत्रकार को 30 हजार रुपए खर्च करने पड़े. सैंपल को पुष्टि के लिए हैदराबाद भेजा गया था. दरअसल, मामले ने उस वक्त दिलचस्प मोड़ ले लिया जब एक जानवर के दो दावेदार पैदा हो गए.
होशंगाबाद: मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में तीन वर्षीय कुत्ता के मालिकाना विवाद का मुद्दा डीएनए जांच के बाद हल हो गया है. जांच से साबित हुआ कि पत्रकार लैब्राडोर नस्ल के काले कुत्ते का का असली मालिक है. जांच रिपोर्ट मिलने के एक दिन बाद पुलिस ने 'कोको' को शादाब खान के हवाले कर दिया.
चार महीने बाद कुत्ते के मालिकाना हक का विवाद सुलझा
पिछले साल 18 नवंबर को खान ने देहात पुलिस स्टेशन में कुत्ते के लापता होने की शिकायत दर्ज कराई थी. अपनी शिकायत में पत्रकार ने कथित रूप से स्थानीय एबीवीपी नेता ऋतिक शिवहरे पर कुत्ते को बंधक बनाने का आरोप लगाया. पत्रकार का कहना था कि 22 दिन के कोको को उसके ससुर ने पंचमढ़ी से खरीदकर दिया था और तभी से उसके परिवार का हिस्सा रहा है.
उसके बाद एक कांस्टेबल को शिवहरे के घर भेजा गया. उसने खरीद रसीद और टीकाकरण पर्ची का सत्यापन कर कुत्ता को खान के हवाले कर दिया. लेकिन अगले दिन मामले ने उस वक्त नया मोड़ ले लिया जब शिवहरे ने पुलिस स्टेशन में दावा किया कि 'टाइगर' उसका कुत्ता है. उसने बताया कि अगस्त में इटारसी से खरीदा था, जिसे पुलिस ने गलत तरीके से ले लिया. एक कुत्ते पर दो लोगों के दावे से पुलिस असमंजस की स्थिति में फंस गई. आखिरकार खान के सुझाव पर पुलिस डीएनए टेस्ट कराने को तैयार हो गई.
डीएनए जांच में पुष्टि होने के बाद मूल मालिक को मिला
खान ने जांच के लिए 30 हजार खर्च करने पर भी सहमति जताई. डीएनए का सैंपल हैदराबाद भेजा गया. पत्रकार ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार से कहा था, "कुत्ते पर इतनी बड़ी रकम खर्च करनेवाला कोई मूर्ख नहीं है. कोको मेरे परिवार का एक सदस्य है. सैंपल की रिपोर्ट आने के बाद मैं मामले को अदालत की दहलीज तक ले जाऊंगा. उसने पुलिस पर एबीवीपी नेता के दबाव में काम करने का भी आरोप लगाया था." शुक्रवार को देहात पुलिस स्टेशन इंचार्ज इंस्पेक्टर अनूप सिंह ने कहा, "हमें शादाब के दावे की रिपोर्ट मिल गई और उसके बाद कुत्ते को उसके हवाले कर दिया गया."
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