चुनावों में फ्री स्कीम्स यानी रेवड़ी कल्चर का मामला सुप्रीम कोर्ट में है. संवैधानिक बेंच को फ्री स्कीम्स की परिभाषा तय करनी है, लेकिन इसके बावजूद राजनीतिक दलों की ओर से मुफ्त वादों की घोषणाएं लगातार की जा रही है. चुनाव में इसका फायदा भी मिल रहा है.
हाल ही में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कर्नाटक की एक रैली में सरकार बनने पर महिलाओं को 2000 रुपए प्रतिमाह देने की घोषणा की है. इससे पहले कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने कर्नाटक में 200 यूनिट फ्री बिजली देने का ऐलान किया था.
रेवड़ी कल्चर यानी फ्रीबीज क्या है?
सुप्रीम कोर्ट में दिए एक हलफनामे में चुनाव आयोग ने कहा कि भारत में रेवड़ी कल्चर यानी फ्रीबीज की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है. आयोग ने अपनी दलील में कहा कि प्राकृतिक आपदा या महामारी के दौरान जीवन रक्षक दवाएं, खाना या पैसा मुहैया कराने से लोगों की जान बच सकती है, लेकिन आम दिनों में अगर ये दिए जाएं तो इन्हें फ्रीबीज कहा जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट में चल रही रेवड़ी कल्चर पर सुनवाई में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) को भी एक पक्ष बनाया गया है. RBI के मुताबिक, 'वे योजनाएं जिनसे क्रेडिट कल्चर कमजोर होता है, सब्सिडी की वजह से कीमतें बिगड़ती हैं, प्राइवेट इंवेस्टमेंट में गिरावट आती है और लेबर फोर्स भागीदारी में गिरावट आती है, वे फ्रीबीज होती है.'
फ्री और वेलफेयर स्कीम्स में अंतर क्या, 3 प्वॉइंट्स...
1. फ्री स्कीम्स की घोषणा अमूमन चुनाव से पहले किया जाता है, जबकि वेलफेयर स्कीम्स सरकार बनने के बाद लागू की जाती है.
2. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि आजीविका चलाने के लिए या आजीविका मिशन के तहत ट्रेनिंग देने के लिए लागू की गई स्कीम्स को फ्रीबीज नहीं कहा जा सकता है.
3. वेलफेयर स्कीम्स लोगों के जीवन को बेहतर बनाती है. इससे रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा में मदद मिलती है.
रेवड़ी कल्चर पर सुप्रीम कोर्ट की 2 सख्त टिप्पणी
4 अगस्त 2022- चुनाव आयोग इस मामले में समय रहते कदम उठाया होता है तो शायद कोई भी राजनीतिक दल ये हिम्मत नहीं करता. लेकिन अब मुफ्त रेवड़ियां बांट कर वोट बटोरना भारत के राजनीतिक दलों का मुख्य हथियार बन गया है. इस मुद्दे को हल करने के लिए विशेषज्ञ कमेटी बनाने की जरूरत है, क्योंकि कोई भी दल इस पर बहस नहीं करना चाहेगा.
11 अगस्त 2022- यह मुद्दा समाज और अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है. क्योंकि फ्रीबीज की वजह से इकोनॉमी पैसे गंवा रही है. हम इस बात से सहमत हैं कि फ्रीबीज और वेलफेयर के बीच अंतर है.
अब जानिए 5 वादों के बारे में, जो चुनाव में जीत का फैक्टर बना...
1. किसान सम्मान निधि- 2018 में केंद्र सरकार ने किसानों के लिए सम्मान निधि की घोषणा की. इसके तहत छोटे और सीमांत किसानों को प्रतिमाह 500 रुपए देने का ऐलान किया.
देश में 11.82 करोड़ किसानों को इस स्कीम्स के तहत पैसा दिया जाता है. बीजेपी को 2019 के चुनाव में इसका फायदा भी मिला और 282 से बढ़कर सीटों की संख्या 303 पर पहुंच गई.
2. मुफ्त अनाज योजना- कोरोना काल में गरीब कल्याण के लिए शुरू की गई मुफ्त अनाज योजना अब फ्री स्कीम्स का उदाहरण बन चुका है. इस योजना में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में 5 किलो अनाज दिया जाता है. पिछले 2 साल में इस योजना की मियाद 7 बार बढ़ाई जा चुकी है.
द इकॉनोमिक टाइम्स ने वित्त मंत्रालय के हवाले से बताया कि इस स्कीम्स की वजह से 1.50 लाख करोड़ रुपए का बोझ सरकार पर बढ़ रहा है. मुफ्त अनाज योजना का लाभ बीजेपी को बंगाल, बिहार और यूपी के चुनाव में मिला.
आने वाले समय में जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, वहां करीब 5 करोड़ से ज्यादा बीपीएल कार्डधारी हैं.
3. महिलाओं को मासिक भत्ता- इसमें राजनीतिक पार्टियां प्रत्येक घर के महिलाओं को मासिक भत्ता देने का ऐलान करती है. राजनीतिक दल मासिक भत्ता देने के पीछे महंगाई को कारण मानती है.
पंजाब में आम आदमी पार्टी और हिमाचल में कांग्रेस ने मासिक भत्ता देने का ऐलान किया था. दोनों पार्टियों को इसका फायदा भी मिला.
4. फ्री बिजली योजना- फ्री बिजली देने की घोषणा सबसे पहले दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी ने किया था. पार्टी को इस स्कीम का भरपूर फायदा मिला और 2015 में 70 में से 67 सीटों पर जीत मिली.
फ्री बिजली देने की घोषणा पंजाब, हिमाचल और उत्तराखंड जैसे राज्यों में भी हो चुका है. कर्नाटक में भी कांग्रेस ने सरकार आने पर 200 यूनिट फ्री बिजली देने का वादा किया है.
5. गैस सिलेंडर मुफ्त- फ्री में गैस सिलेंडर देने की घोषणा करना भी रेवड़ी कल्चर का हिस्सा बन चुका है. यूपी चुनाव में बीजेपी ने मुफ्त में हर साल 2 गैस सिलेंडर देने का वादा किया था.
वहीं राजस्थान सरकार ने आधी कीमत में गैस सिलेंडर देने की घोषणा की है. राजस्थान में इस साल के अंत में चुनाव प्रस्तावित है.
आसान नहीं फ्री स्कीम्स की घोषणा को बंद करना
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अभिजीत भट्टाचार्य एक इंटरव्यू में कहते हैं, 'चुनाव से पहले मुफ्त वादों की घोषणा पर लगाम लगाना जरूरी है, लेकिन यह आसान नहीं है. वोटबैंक की वजह से पॉलिटिकिल पार्टियां रिस्क नहीं लेना चाहती है.'
वहीं इंडियन एक्सप्रेस में लिखे एक ओपिनियन में पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी फ्री स्कीम्स को जरूरी मानते हैं. कुरैशी के मुताबिक इससे मूलभूत सुविधाएं सभी नागरिकों को मिल सकती है.