इलाहाबाद और दिल्ली उच्च न्यायालयों द्वारा पहले की गई टिप्पणियों को देखते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा है कि यह अच्छी तरह से समझा जाना चाहिए कि किसी भी प्रमुख व्यक्ति का अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार भारत के संविधान में एक मौलिक अधिकार है. अदालत ने आगे कहा कि दो व्यक्तियों के व्यक्तिगत संबंधों से संबंधित स्वतंत्रता किसी भी जाति या धर्म के बावजूद दबाव भरा नहीं हो सकता. बता दें कि कर्नाटक एचसी डिवीजन बेंच के जस्टिस एस सुजाता और सचिन शंकर मगदुम 27 नवंबर को दो सॉफ्टवेयर पेशेवरों से जुड़े एक मामले पर सुनवाई कर रहे थे.


वाजिद खान एच बी द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एस सुजाता और न्यायमूर्ति सचिन शंकर मगदुम की एक खंडपीठ ने यह टिप्पणी की. इससे पहले याचिका दायर की गई थी कि अदालत के समक्ष अपने साथी राम्या जी को पेश करने के लिए निर्देश दिया जाए और उन्हें स्वतंत्रता प्रदान की जाए.


पुलिस ने राम्या को अदालत में किया था पेश


न्यायिक पुलिस ने राम्या को उसके माता-पिता के साथ अदालत में पेश किया था. राम्या ने अदालत को बताया कि वह 07 नवंबर, 2020 से विद्यारण्यपुरा में दक्षिणा समिति में रह रही थी, जबसे उसने शिकायत दर्ज कराई थी कि उसके माता-पिता द्वारा उसकी स्वतंत्रता का उल्लंघन किया जा रहा है.


क्या था मामला?


बता दें कि ये मामला तब शुरू हुआ जब एक सॉफ्टवेयर कंपनी के सहकर्मियों राम्या और वाजिद ने शादी करने का फैसला किया. जबकि वाजिद की मां श्रीलक्ष्मी को शादी से कोई आपत्ति नहीं थी, लेकिन राम्या के माता-पिता सहमति देने के लिए तैयार नहीं थे.


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