लखनऊ: हाल में ही यूपी के 26 सीनियर आईपीएस अफसरों का ट्रांसफर हुआ लेकिन दावा शेरपा को लेकर विवाद शुरू हो गया है. उन्हें गोरखपुर जोन का एडीजी बनाया गया है, जहां से सीएम योगी आदित्यनाथ पांच बार सांसद रहे. दार्जिलिंग के रहनेवाले दावा शेरपा 1992 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं. एक दौर था जब दावा शेरपा नौकरी से गायब हो गए थे. यूपी के गृह विभाग की मानें तो साल 2008 से लेकर 2012 तक उनका कोई रिकॉर्ड नहीं है. इसी दौरान दावा शेरपा बीजेपी में शामिल हुए और पश्चिम बंगाल में पार्टी के सचिव बन गए.


दार्जिलिंग के रहनेवाले शेरपा 2009 में यहां से लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन आख़िरी वक्त में जसवंत सिंह को टिकट मिल गया. शेरपा हाथ मलते रह गए. बाद में बीजेपी छोड़ कर वे अखिल भारतीय गोरखा लीग में शामिल हो गए. छह क्षेत्रीय पार्टियों के मोर्चा डेमोक्रेटिक फ्रंट का उन्हें संयोजक भी बनाया गया. राजनीति में जब वे कोई तीर नहीं मार पाए तो फिर दावा शेरपा वापस यूपी लौट आये. यहां उनका प्रमोशन पहले डीआईजी और फिर आईजी में हुआ.  फिर वे एडीजी बन गए. गृह मंत्री राजनाथ सिंह के करीबी माने जाने वाले दावा शेरपा अब सोमवार को गोरखपुर  का चार्ज ले लेंगे.


अब विपक्ष सवाल पूछ रहा है कि जो अभी छह साल पहले बीजेपी का नेता था, उन्हें एडीजी कैसे बना दिया गया?  समाजवादी पार्टी के नेता सुनील सिंह साजन कहते है, "विपक्ष को परेशान करने के लिए ही भगवाधारी अफसरों को पोस्ट किया जा रहा है. ऐसे लोगों को तो नौकरी से बाहर देना चाहिए था."  वहीं कांग्रेस के प्रवक्ता ज़ीशान हैदर पूछते हैं, "जो अधिकारी कल तक बीजेपी में था उससे आप निष्पक्षता की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?"


अक्टूबर 2008 में दावा शेरपा सीतापुर में पीएसी के कमांडेंट थे. वहीं से वे लंबी छुट्टी पर चले गए. बाद में शेरपा ने वीआरएस के लिए आवेदन कर दिया लेकिन सरकार ने इसे मंजूर नहीं किया. नियम के मुताबिक़ 20 साल की नौकरी के बाद ही कोई वीआरएस ले सकता है.