Holi 2021: क्या आपको हर्बल होली की तलाश है? उत्तर प्रदेश के पलाश गुलाल की लंदन में बढ़ी मांग
रंगों की किस्में प्राकृतिक से लेकर रसायनिक तक होली के दौरान अलग-अलग मिलती हैं. होली के रंगों में कुछ केमिकल से कासीनजन हो सकता है और कैंसर की वजह बन सकता है आर्टिफिशियल रंग के मुकाबले प्राकृतिक रंग स्किन, बाल और संपूर्ण इंसानी शरीर के लिए स्वस्थ होते हैं.
Happy Holi 2021: उत्तर प्रदेश की महिला स्वयं सहायता समूहों की शोहरत सात समुंदर पार पहुंच गई है. 'पलाश' के फूल से बनाया हर्बल रंग की मांग न सिर्फ देश में बहुत ज्यादा है बल्कि विदेशी जमीन पर भी है. उत्तर प्रदेश ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत संचालित स्वयं सहायता समूहों की महिलाएं फूलों से 'गुलाल' लाल, हरा, गुलाबी रंग में बना रही हैं.
सात समुंदर पार पहुंची 'पलाश' के फूल से बने हर्बल रंग की मांग
ये महिलाएं अलग-अलग जिलों जैसे मिर्जापुर, चंदौली, वाराणसी और चित्रकूट की हैं. देश में अन्य जगहों के अलावा गुलाल की मांग लंदन तक पहुंच चुकी है. सोनभद्र भीमा प्रेरणा ग्रुप से जुड़कर काम कर रही एक महिला कंचन कहती हैं, "पलाश के फूलों को तोड़ा जाता है और एक दिन के लिए सुखाया जाता है. उसके बाद पानी में दो घंटे तक फूल को उबाला जाता है जिससे रंग छूट जाता है. उसके बाद, हम अरारोट के रंगीन पानी को उसमें मिलाते हैं, फिर उसे फैला दिया जाता है और सूखा दिया जाता है.
स्वयं सहायता समूह से जुड़कर महिलाएं कर रहीं जरूरत को पूरी
हर्बल गुलाल तैयार करने में कम रकम खर्च करना पड़ता है. ये औसतन 60-70 रुपए की लागत पर तैयार किया जाता है. बाजार में ये आसानी से 150-200 के बीच बेचा जा सकता है. ये अच्छा फायदा देता है." उन्होंने बताया कि अभी तक उनके स्वंय सहायता ग्रुप ने करीब तीन क्विंटल हर्बल गुलाल तैयार कर लिया है जो सोनभद्र जिले में बेचा जा रहा है. उत्तर प्रदेश ग्रामीण आजीविका मिशन के डायरेक्टर सुजीत कुमार ने न्यूज एजेंसी आईएनएस को बताया, "होली के दौरान केमिकल मुक्त रंगों का जरूर इस्तेमाल किया जाना चाहिए. इस मकसद को पूरा करने के लिए गुलाल को पलाश के फूलों से तैयार किया जा रहा है.
स्वंय सहायता समूह की महिलाएं इस काम में शामिल हैं, खासकर सोनभद्र और मिर्जापुर जैसे जिलों में." अब तक, हर्बल रंग और गुलाल का पांच हजार किलो 4,058 महिला स्वयं सहायता समूह ने तैयार किए हैं, जिसे करीब 7 लाख रुपए में बेचा गया है. उन्होंने बताया कि हर्बल रंगों की तैयारी के अलावा 'पापड़' और 'गुजिया' भी स्वंय सहायता समूहों की महिलाएं बना रही हैं. इसके लिए मिशन के तहत प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. इन प्रोडक्ट्स को बेचने के लिए एक करोड़ का लक्ष्य रखा गया है. सोनभद्र स्वंय सहायता समूह के तैयार किए गए हर्बल रंगों की मांग लंदन से आई है.
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