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लीबिया में कहर: इस साल कितने देशों ने झेली बाढ़, दुनिया में क्यों बढ़ रहा इसका खतरा?

लीबिया में इन दिनों बाढ़ का कहर जारी है. अन्य देशों की भी बात करें तो लगातार विश्व में बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है. भारत में भी इस साल बाढ़ से काफी नुकसान हुआ है.

लीबिया में एक तूफानी बाढ़ ने सब कुछ तबाह कर दिया. हजारों जिंदगियां छीन लीं. मौत का मंजर भी ऐसा कि हर जगह लाशें दिख रही हैं जिसका सबसे ज्यादा असर डर्ना शहर में दिखा. यहां लोगों के घर पूरी तरह तबाह हो गए, कई लोगों की मौत हो गई, तो वहीं दस हजार लोगों का अब भी कोई पता नहीं है.

लीबिया के आपदा मामलों के मंत्री हिचेम चिकीओत खुद इस विनाशकारी मंजर को देखने पहुंचे तो वो भी परेशान हो गए. उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा कि चारो तरफ शव बिखरे पड़े हैं. समुद्र में, घाटियों में, इमारतों के नीचे हर जगह लाशे हैं. शहर का लगभग 25 फीसदी हिस्सा गायब हो गया है. कई इमारतें ढह गई हैं. अस्पतालों में शव रखने की जगह कम पड़ रही है. मरने वालों की संख्या बढ़ सकती है, क्योंकि लापता लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है.

लीबिया के प्रधानमंत्री ओसामा हमाद ने इस तबाही को देखते हुए और देश में बाढ़ से हुई मौतों के चलते तीन दिन का शोक रखा था. साथ ही देश भर में झंडे को आधा झुकाने की घोषणा भी की. अधिकारियों के अनुसार 10 सितंबर को रात में भूमध्य सागर से उठे तूफान ‘डेनियल’ के कारण भारी बारिश हुई. जिसके चलते अचानक आई बाढ़ ने पूर्वी लीबिया के कई शहरों में भारी तबाही मचाई. शव इतने थे कि उन्हें दफनाने के लिए जगह कम पड़ गई. ऐसे में शवों को सामूहिक कब्रों में दफनाया जा रहा है.

लेकिन ऐसा पहली बार नहीं है जब किसी देश में बाढ़ से इतनी तबाही हुई हो. इसी साल के आंकड़ें बताते हैं कि कई देशों में बाढ़ की प्रकोप ने कई जिंदगियां तो छिनी हीं, साथ ही बहुत नुकसान भी पहुंचाया. दुनिया में लगातार बाढ़ का खतरा बढ़ता जा रहा है. इसका क्या कारण है और दुनिया इस लगातार बड़ रहे बाढ़ के खतरे से बच सकती है या नहीं इसपर एक नजर डालते हैं.

इस साल बाढ़ की तबाही झेलने वाले देशों में सबसे आगे कौन से देश
स्टेटिस्टा की रिपोर्ट के अनुसार, इस साल सबसे ज्यादा बाढ़ झेलने वाले देशों में सबसे पहले नंबर पर बांग्लादेश है. यहां बाढ़ ने भारी तबाही मचाई. बांग्लादेश में बाढ़ आना कोई नई बात नहीं है. लेकिन इस बार लोगों ने जो बाढ़ देखी वैसी स्थिती पहले कभी नहीं आई थी. इस बाढ़ ने हजारों लोगों के घर तो छीन ही लिए साथ ही कई लोगों की जान भी ले ली.

वहीं दुनिया में सबसे ज्यादा बाढ़ से प्रभावित देशों की लिस्ट में दूसरे नंबर पर आता है वियतनाम. यहां हर साल बाढ़ का खतरा बढ़ता जा रहा है. इस साल भी वियतनाम में आई बाढ़ ने कई जाने ले ली थीं.

म्यांमार बाढ़ से प्रभावित देशों में तीसरे नंबर पर है. यहां मानसूनी बाढ़ ने 40 हजार लोगों को विस्थापित होने पर मजबूर कर दिया था.आमतौर पर म्यामांर के लोगों को बाढ़ से निपटना आता है. इस देश में बाढ़ का कहर हर साल देखने को मिलता है, लेकिन इस साल जो बाढ़ यहां के लोगों ने देखी वैसा मंजर लोगों ने पहले कभी नहीं देखा था. ऐसे में कई लोगों के पास पलायन के अलावा कोई उपाय नहीं बचा था.

म्यांमार के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा बाढ़ प्रभावित देशों में कंबोडिया का नाम आता है. यहां इस साल बाढ़ ने बहुत लोगों को प्रभावित किया.

पांचवें नंबर पर बाढ़ प्रभावित देशों में इराक का नाम आता है. जिसने कई लोगों को प्रभावित किया. इसके बाद लाओस, सर्बिया और फिर पाकिस्तान सबसे ज्यादा बाढ़ प्रभावित देशों में आते हैं.

भारत में इस साल आई बाढ़ से कितना हुआ नुकसान
भारत एक ऐसा देश है जो हर साल सूखे और बाढ़ दोनों का सामना करता है, लेकिन साल दर साल भारत में बाढ़ का खतरा बढ़ता ही जा रहा है. इस साल भी यमुना में आई बाढ़ ने कई शहरों को नुकसान पहुंचाया. जिससे आम से लेकर खास तक, हर शख्स का जीवन प्रभावित हुआ. एसबीआई की इकोरैप रिपोर्ट के अनुसार इस साल भारत में आई बाढ़ से 10 से लेकर 15 हजार करोड़ रुपए तक का आर्थिक नुकसान हुआ है.

रिपोर्ट में यह बात स्वीकार की गई है कि समय के साथ प्राकृतिक कारणों से जान-माल की हानि का बढ़ना चिंताजनक है. बाढ़ के पहले बिपरजॉय तूफान ने भी देश में काफी आर्थिक नुकसान किया था.

एसबीआई की रिपोर्ट की मानें तो अभी अमेरिका और चीन के बाद प्राकृतिक आपदाओं से सबसे ज्यादा नुकसान भारत को ही हो रहा है. 1990 के बाद भारत को कई प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ा है. रिपोर्ट के अनुसार, 1900 से 2000 के बीच के 100 सालों में भारत में प्राकृतिक आपदाओं की संख्या 402 रहीं, जबकि 2001 से 2022 के दौरान महज 21 सालों में इनकी संख्या 361 रहीं.

एसबीआई ने प्राकृतिक आपदाओं में बाढ़ के अलावा सूखे, भूस्खलन, तूफान और भूकंप को शामिल किया है. रिपोर्ट के अनुसार, सबसे ज्यादा तबाही बाढ़ से होती है. अकेले बाढ़ कुल प्राकृतिक आपदाओं में 41 फीसदी हैं. बाढ़ के बाद तूफान का स्थान है. एसबीआई का मानना है कि भारत में प्राकृतिक आपदाओं से ज्यादा नुकसान होने की एक बड़ी वजह बीमा का न होना है. इस साल आई बाढ़ ने देश में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्य और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है. अकेले उत्तराखंड में बाढ़ से 8000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है.

बाढ़ की तीन घटनाओं में ही गई लाखों लोगों की जान
1970 और 1975 के बीच, बांग्लादेश, चीन और वियतनाम में बाढ़ और तूफान की तीन घटनाओं में कुल मिलाकर लगभग 630,000 लोग मारे गए. 1887, 1931 और 1939 में, चीन में प्रमुख नदी में आई बाढ़ से ही लगभग 5 लाख लोगों की मौत हुई थी. पिछले कुछ समय में बाढ़ इसलिए भी ज्यादा देखी गई, क्योंकि इनका पता लगाने के लिए हमारे पास प्रणालियां भी कम थीं.

दुनिया में ज्यादातर देशों में एक जैसे हालात
चीन के उत्तरी, मध्य और दक्षिण पूर्वी इलाकों में बाढ़ से भारी तबाही हुई है. जिसके चलते सरकार को हजारों लोगों को विस्थापित करना पड़ा था. तुर्किए की नदियों में भी उफान देखने को मिला तो वहीं न्यूयार्क के आसपास के इलाकों में हरिकेन नदी के चलते बाढ़ का असर रहा. दुनियाभर में वैज्ञानिकों ने यही पाया है कि चाहे अमेरिका के इलाके हों या फिर तुर्की या फिर भारत, हर जगह बाढ़ की स्थिति समान ही है. साल दर साल विश्व के कई देशों में बाढ़ की स्थिति बढ़ती ही जा रही है.जिसका कारण एक ही है

दुनिया में क्यों बढ़ रहा बाढ़ का खतरा?
वैज्ञानिकों के अनुसार दुनिया विभिन्न इलाकों में इस तरह के विनाशकारी हालातों के बनने की वजह गरम हो रहा वायुमंडल है. उत्तरी गोलार्द्ध में इस समय गर्मी है और इस बार गर्मी ज्यादा होने की वजह से वायुमंडल में नमी की मात्रा भीषण बारिश लाने का काम कर रही है.जिससे बाढ़ की संभावना और बढ़ गई है.

गर्म वायुमंडल और गर्म जलवायु में तूफानों के बनने की संभावना ज्यादा होती है. ऐसे में अगर भारत जैसे देश में  मानसून का मौसम हो तो स्थिति गंभीर होने का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है. जलवायु परिवर्तन ने वक्त बेवक्त मौसम में हो रहे परिवर्तन में इजाफा किया है. यही वजह है कि जो पश्चिमी विक्षोभ की घटनाएं देश में अक्टूबर और उसके बाद देखने को मिलती हैं इस साल जुलाई में ही दिख गईं. साथ ही इसने कहीं न कहीं आग में घी डालने का काम भी किया.

बढ़ेगा गर्मी का असर
वैज्ञानिकों ने ये स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले समय में गर्मी के साथ उमस और ज्यादा बढ़ने वाली है. 40 डिग्री सेल्सियस का तापमान इस सदी के मध्य तक सालाना 20 से 50 बार तक देखने को मिल सकता है. कुछ और अध्ययनों पर नजर डालें तो हालात और भी गंभीर हो सकते हैं. ऐसे में साल दर साल गर्मी के नए रिकॉर्ड बनना स्वभाविक है.

इस साल जुलाई में विश्व मौसम विभाग ने ऐलान किया था कि अल नीनो का असर दुनिया में असर दिखना शुरु कर चुका है. प्रशांत महासागर में होने वाली यह खास घटना पूरी दुनिया में गर्मी को बढ़ाने का काम करती है. जिसकी शुरुआत में भूमध्य प्रशांत महासागर की सतह का पानी गर्म होता है. इससे भारत का मानसून भी साफतौर पर प्रभावित होता है.साथ ही इसका असर अमेरिका और यूरोप तक देखा जा सकता है. इसे देखते हुए कहा जा सकता है कि ये तो सिर्फ शुरुआत है.

 

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