'रात को पापा की आवाज गूंजती है, नींद खुलती है, रोता हूं...', कन्हैयालाल के घर के अंदर का दर्द कौन समझेगा?
इसी साल जून के महीने में उदयपुर में टेलर कन्हैयालाल पर धारदार हथियार से हमला कर हत्या कर दी गई थी. इस मामले ने पूरे देश को हिला दिया था. हालांकि आरोपी जेल के अंदर हैं.
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उदयपुर शहर से 8 किलोमीटर दूर एक गली में गली में सन्नाटा था और कुछ दूर चले तो एक स्ट्रीट लाइट के नीचे एक हेड कांस्टेबल और चार जवान मिले. उन्होंने रोका क्योंकि रिश्तेदारों को भी बिना आईडी कार्ड के घर में प्रवेश नहीं दिया जा रहा है.
पुलिस ने वेरिफिकेशन किया और एबीपी की टीम उनके घर ऊपर पहुंची. घर के अंदर खामोशी और अजीब सा सन्नाटा है.
कन्हैयालाल की हत्या के 100 दिन बीत गए हैं. उनके दोनों लड़कों को सरकारी नौकरी मिल गई है. लेकिन घर में जो खालीपन है वो उनके बच्चों और पत्नी की आंखों में साफ देखा जा सकता है.
बच्चों को लगता है अभी कहीं से उनके पिता कन्हैयालाल आवाज देते हुए अंदर आएंगे...लेकिन फिर अजीब सी खामोशी छा जाती है...किसी को अभी तक विश्वास नहीं है...जिस जगह पर पूरा परिवार ठसक और अपना मानकर रहता था...वहां इतने बेबस हालात हो जाएंगे...
अब तो सांत्वनाएं या ढांढस बांधने भी कोई नहीं आता है..गली के बाहर सब कुछ सामन्य नजर आता है...लेकिन घर के अंदर भावनाओं का तूफान रह-रहकर उठता है.
कन्हैयालाल की पत्नी जशोदा खामोश हैं. उनको अपने पति का आखिरी सपना बार-बार याद आता है. वो बताती हैं, 'उनको (कन्हैयालाल) को दोनों बच्चों से बहुत प्यार था. वो थे तो ये घर था. अब सब कुछ सूना-सूना सा है.' जशोदा कहती हैं, 'वो अक्सर मजाक में कहते थे कि बेटों की शादी में महिलाओं को सूट-पैंट और सिर पर साफा पहनाकर बारात ले जाएंगे...और कितना भी हों सारे सूट मैं हीं सिलूंगा...'
जशोदा की आंखों में आंसू आ जाते हैं फिर खुद को संभालती हुए वो कहती हैं, 'दरिंदे हाथ काट देते, पैर काट देते तो उनकी जिंदगी भर सेवा करती.सरकार की ओर से रुपये आए हैं.उनका मैं क्या करूं.सब वापस ले लो बस उन दोनों को फांसी लटका दो...'
कन्हैयालाल की पत्नी बताती हैं कि वो स्वभाव के इतने सरल थे कि शादी के कपड़े वो लोगों के घरों में मंडप के नीचे तक पहुंचाते थे.
जशोदा ने बात बात करते हुए कन्हैयाला की उस सिलाई मशीन की भी चर्चा की जो परिवार के बाकी सदस्यों की तरह खामोशी की चादर ओढ़े हुए दुकान में रखी है. एनआईए ने उसे सीज कर रखा है. जशोदा बताती हैं कि ये मशीन उनके शादी से पहले की है. 25 सालों से ये कन्हैयालाल का साथ दे रही थी.
छोटा बेटा तरुण भी कुछ बोलने की हालात में नहीं है. मां की बातें सुनकर उनका गला रुंध आया था..उसने बताया, 'सुबह 6 बजते ही पिता आवाज लगाते थे, आज वहीं आवाजे रात को नींद में सुनाई देती'.
तरुण बताते हैं, ' पापा रोज सुबह 6 बजे उठ जाते थे और नीचे कमरा है जहां सिलाई मशीन रखी थी वहां कपड़ों की कटिंग करते थे. उनकी आवाज से ही रोज उठता. कहते थे बेटा उठ कपड़ों के लिए चौक ले आ, लेकिन वह अब नहीं है लेकिन रात को 3 बजे, 3.30 बजे उनकी यहीं आवाज कान में गूंजती है तो नींद खुल जाती है. फिर आंखों से आंसू आने लगते हैं'.
मां हर रोज ढांढस बताते हुए कहती हैं, ' वो कहीं नहीं गए, हमारे साथ हैं और फिर सुलाती हैं'. तरुण आगे बताते हैं कि उन्होंने अपने पिता को अंतिम समय भी नहीं देखा. घरवालों ने नहीं देखने दिया क्योंकि मेरा एक्सीडेंट हुआ था सिर में चोट लगी थी. तब से कमजोर हूं. ऐसा परिवार वाले कहते है तो उन्होंने देखने ही नहीं दिया.
वो आगे कहते हैं, ' पापा सुबह 9 बजे चले जाते थे तो रात में 10-12 बजे तक आते थे. वह कितना भी देर आएं हम चारों साथ में ही खाना खाते थे. लेकिन अब निवाला उतरना भी मुश्किल सा हो गया है'.
बड़ा बेटे यश कहते हैं, 'पापा को धारदार हथियार से मारा... वह तो ऐसे थे कि कुत्ते को चाकू लगा तो दो दिन हॉस्पिटल इलाज कराया था'.
यश याद करते हुए बताते हैं, 'पापा थे तब मैं ही घर में सबसे लेट 9-10 बजे तक उठता था और उठाने वाले भी पापा ही थे. अब तो उनके उठने के 6 बजे के समय से पहले ही नींद खुल जाती है. घर के बाहर पुलिस है. जहां जाते है अब पुलिस साथ रहती है. लेकिन इन सब से क्या होगा पापा तो चले गए'.
यश याद करते हुए बताते हैं, ' पापा तो ऐसे थे कि एक स्ट्रीट डॉग थी जिसे रोज एक शक्कर और घी की रोटी खिलाते थे. वह दुकान पर ही बैठी रहती थी. एक बार उसके गर्दन पर पापा ने घाव देखा. वह खुद दो दिन तक हॉस्पिटल लेकर गए और इलाज कराया. लेकिन पापा के ऊपर ही उन दरिंदो ने धारदार हथियार से वार किया. जानता हूं बड़ा बेटा हूं और जिम्मेदारी है लेकिन उनकी कमी को कौन दूर करेगा'.
यश कहते हैं कि नेता तो वादे करके गए कि तीन माह में फैसला आ जाएगा लेकिन हकीकत सामने है. घटना के बाद नेताओं का जमघट लग गया था. कई आए और अपने नम्बर भी दिए.अब तो एनआईए ने 3 महीने और मोहलत मांग ली है. पता नहीं इस हमें कब न्याय मिलेगा. कसाब को भी फांसी देने में वर्षों लग गए थे. और हां उनको उम्रकैद नहीं फांसी होनी चाहिए.
यश सवाल पूछते हुए कहते हैं कि अखबारों में आता रहता है कि दुष्कर्म करने वाले आरोपी को 1 माह, 20 दिन में फांसी की सजा सुनाई. क्या ऐसा इस केस में नहीं हो सकता. सबूत के तौर पर वीडियो सहित कई तथ्य सामने है. तो क्यों नहीं किया जा रहा.ऐसे दरिंदगी वाले अपराध में देरी क्यों?
(उदयपुर से विपिन सोलंकी की रिपोर्ट)
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