कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस के एक ऐलान से बजरंग दल पूरे देश में चर्चा का केंद्र बन गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बजरंग दल कार्यकर्ताओं की तुलना अंजनि पुत्र हनुमान से की है. स्थापना के 29 बसंत देख चुका बजरंग दल पहले भी कई बार अलग-अलग वजहों से विवादों में रहा है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरह ही हिंदुत्व के मुद्दे पर मुखर बजरंग दल का अपना इतिहास है. बजरंग दल के काम करने का स्टाइल और संगठन की संरचना भी संघ से काफी हद तक अलग है. बजरंग दल की तुलना सिमी और पीएफआई जैसे आतंकी संगठनों से भी हो चुकी है.
कर्नाटक में कांग्रेस ने इसी को आधार बनाकर बजरंग दल पर बैन करने की घोषणा की है. कांग्रेस का कहना है कि बजरंग दल के कार्यकर्ता नफरत और हिंसा बढ़ाने का काम करते हैं. इस वजह से समाज में वैमनस्यता फैलती है और लोगों में दूरियां बढ़ती हैं.
बजरंग दल पर बैन करने के वादे के बीच संगठन के कामकाज, विवादों के किस्से और इसके इतिहास को विस्तार से जानते हैं.
बजरंग दल बनाने की जरुरत क्यों पड़ी थी?
भारत में बजरंग दल की स्थापना साल 1984 में हुई थी. उस वक्त राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठन स्थापित हो चुके थे. ऐसे में सवाल उठता है कि बजरंग दल बनाने की जरुरत क्यों पड़ी? इसे 2 तरीके से समझिए...
1. कांग्रेस काफी मजबूत स्थिति में थी और 1984 तक संघ पर 2 बार बैन लग चुका था. संघ किसी भी ऐसे में काम में शामिल होने से बच रहा था, जिससे बैन का खतरा बढ़ जाए, लेकिन हिंदुत्व के मुद्दे को आगे बढ़ाना था. ऐसे में विश्व हिंदू परिषद ने अपने युवा इकाई बजरंग दल का गठन किया.
गठन के बाद बजरंग दल ने हिंदुत्व के मुद्दे को खूब धार दिया. राम मंदिर के मुद्दे को देश भर में छेड़ दिया, जिसे बाद में बीजेपी ने भी लपका. यानी 1984 से पहले जो काम संघ और विहिप नहीं कर पा रही थी, उसे बजरंग दल ने जोर-शोर से किया.
2. बजरंग दल के संस्थापक अध्यक्ष विनय कटियार ने एक इंटरव्यू में कहा था कि इसकी स्थापना का मुख्य उद्धेश्य मठ-मंदिरों पर से कब्जा हटवाना था. कटियार के मुताबिक बजरंग दल ने शुरुआत में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद मामले पर फोकस किया. बाद में हमने काशी और मथुरा का नारा भी दिया.
स्थापना के समय बजरंग दल के कार्यकर्ताओं को राम-जानकी रथ की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई थी. यह रथ राम मंदिर निर्माण के लिए निकाली गई थी. प्रशासन ने रथ को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था.
बाबरी विध्वंस के लिए कारसेवा और मुलायम का बैरिकेड
1990 आते-आते बजरंग दल की लोकप्रियता चरम पर पहुंच चुकी थी. बिहार, राजस्थान, यूपी और मध्य प्रदेश में लगातार इस संगठन का जनाधार बढ़ रहा था. विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर के लिए कारसेवा की घोषणा कर दी.
बजरंग दल ने इसे अंजाम तक पहुंचाने के लिए अलग-अलग गुट बनाया. विहिप और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने अयोध्या का नक्शा लेकर सीधे बाबरी मस्जिद पर हमला बोल दिया. उस वक्त उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार थी.
मुलायम सिंह ने जिला प्रशासन को गोली चलाने का आदेश दे दिया. कारसेवकों पर सीधे फायरिंग की गई. इस फायरिंग में 11 लोगों की मौत हो गई. कारसेवा शांत पड़ गया.
सरकारी उथल-पुथल के बाद 1992 में बजरंग दल और विहिप अपने मिशन में कामयाब रहा. बाबरी मस्जिद को कारसेवकों ने गिरा दिया. इस घटना के बाद केंद्र की नरसिम्हा राव की सरकार ने बजरंग दल को बैन कर दिया.
हालांकि, यह बैन 1 साल तक ही रह पाया. 1993 में बजरंग दल पर से बैन हटाया गया, जिसके बाद संगठन ने पूरे देश में अपनी विस्तार की योजना बनाई. उसी समय संगठन की संरचना और कामकाज का निर्धारण हुआ.
संघ से कितना अलग है बजरंग दल, 4 प्वॉइंट्स...
1. 1950 के बाद जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर से बैन हटा तो संघ ने एक संविधान बनाकर सरकार को दिया. इसमें संघ के कामकाज और पदाधिकारियों के चयन के बारे में विस्तार से बताया गया है. संघ में कार्यवाहक तौर पर सर कार्यवाह शक्तिशाली होते हैं, जिसका हरेक 3 साल पर चुनाव कराया जाता है.
विहिप का आंतरिक संगठन होने की वजह से बजरंग दल के पास कामकाज और संगठन संरचना का अपना कोई लिखित संविधान नहीं है. बजरंग दल में मौखिक तौर पर नियुक्तियां होती है.
2. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ बड़े-बड़े मुद्दे पर हिंदुत्व के प्रतिनिधित्व के तौर पर अपना विचार रखती है. संघ के कार्यकर्ता इस विचार को समाज के बीच अलग-अलग माध्यमों के जरिए ले जाते हैं. उदाहरण के तौर पर हाल में उत्पन्न सेम सेक्स मैरिज के विरोध में संघ ने कार्यकारिणी की बैठक कर अपना बयान जारी किया था.
बजरंग दल छोटे-छोटे मुद्दे जैसे कि ईसाईयों के बढ़ते असर, धार्मिक स्थलों का नवीनीकरण आदि मुद्दों पर काम करती है. बजरंग दल गौरक्षा के लिए जमीन पर काम करने का दावा करती है.
3. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ आम तौर पर विजयादशमी या हिंदू नव वर्ष पर पथ संचलन करती है. इसमें आरएसएस के कार्यकर्ता अपने इलाके में कतारबद्ध तरीके से सड़कों पर घूमते है. इसे संघ का शक्ति प्रदर्शन भी कहा जाता है.
इसके उलट बजरंग दल साल में 6 बार अखण्ड भारत दिवस ( 14 अगस्त), हनुमान जयन्ती (चैत पूर्णिमा), राम नवमी (चैत नवमी), हुतात्मा दिवस ( 30 अक्टूबर से 02 नवम्बर), शौर्य दिवस ( 6 दिसम्बर) और साहसिक दिवस (सावल शुक्ल पक्ष) पर जुलूस निकालती है.
राजनीतिक और समाजिक संगठनों का कहना है कि जुलूस निकालने के तरीके की वजह से ही देश में सांप्रदायिक माहौल खराब होता है और कई जगहों पर हिंसा होती है.
4. आरएसएस कार्यकर्ताओं का अपना ड्रेस कोड है. वर्तमान में संघ के कार्यकर्ता भूरे रंग की पतलून के साथ व्हाइट कलर का शर्ट पहनते हैं. संघ ने 2011 में बेल्ट में भी बड़ा बदलाव किया था. उस समय चमड़े की बेल्ट की जगह कृत्रिम बेल्ट को स्वीकार किया गया था.
बजरंग दल कार्यकर्ताओं का कोई ड्रेस कोड नहीं है. हालांकि, उसके कार्यकर्ता बजरंग दल लिखे पट्टी का उपयोग कंधे और सिर पर अमूमन करते हैं.
बजरंग दल के विवादित किस्से
दिग्विजय ने अटल सरकार से बैन की सिफारिश की: मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह की सरकार स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) के साथ बजरंग दल को भी बैन करना चाहते थे. 1999 में दिग्गविजय सिंह ने इसके लिए केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी को पत्र भी लिखा.
सिमी पर बैन तो लग गया, लेकिन बजरंग दल पर बैन नहीं लग पाया. दिग्गी के पत्र से बौखला कर बजरंग दल ने साल 2000 में भोपाल में कार्यकारिणी की बैठक बुला ली. दिग्विजय सिंह की सरकार ने इसे कार्यक्रम की अनुमति नहीं दी.
सरकार के रूख को देखते हुए बजरंग दल ने अपने कदम पीछे लेने से इनकार कर दिया. तय समय पर बजरंग दल के कार्यकर्ता भोपाल के छोला दशहरा मैदान पहुचंने लगे, लेकिन वहां तैनात पुलिकर्मियों ने सबको जेल भेजना शुरू कर दिया.
धीरे-धीरे भोपाल का छोला मैदान रणक्षेत्र बन गया. पुलिस और प्रशासन ने लाठीचार्ज शुरू कर दी और बजरंग दल के बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया. पुलिसिया कार्रवाई में दल के 50 कार्यकर्ता घायल हो गए.
गुजरात में हुए 9 दंगे में आया बजरंग दल का नाम
2002 के गुजरात दंगे में बजरंग दल का नाम भी सामने आया. बजरंग दल के बाबू बजरंगी को नारोदा पाटिया और नारोदा गाम मामले में मुख्य आरोपी बनाया गया. बजरंग दल के कई कार्यकर्ताओं पर हिंसा भड़काने का केस दर्ज किया गया.हालांकि, शुरू में संगठन इसको खारिज करता रहा. उस वक्त भी संगठन पर बैन की मांग उठी थी.
फादर की हत्या में नाम आया, एनएसए ने बैन से इनकार किया
1999 में ओडिशा के क्योंझर में ऑस्ट्रेलिया से मिशनरी काम के लिए आए फादर स्टेन और उनके दो नाबालिग बच्चों को जला कर मार दिया गया. इस हत्याकांड में भी बजरंग दल का नाम आया. हत्या का नेतृत्व कर रहे दारा सिंह का संबंध कथित तौर पर बजरंग दल से जोड़ा गया.
इस घटना के बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिज को ओडिशा भेजा. 2008 में इसको लेकर बजरंग दल पर बैन की मांग तेज हो गई, जिसके बाद भारत के तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने बैन लगाने से इनकार कर दिया.
एनएसए का कहना था कि बैन के लिए सबूत इकट्ठा नहीं हो सकेगा. सरकार में मंत्री लालू यादव ने एनएसए की तीखी आलोचना की थी.
ये दिग्गज नेता कर चुके हैं बजरंग दल पर बैन लगाने की मांग
29 साल से अब तक देश के कई दिग्गज नेता बजरंग दल पर बैन लगाने की मांग कर चुके हैं. इनमें वीपी सिंह, लालू यादव, राम विलास पासवान, मायावती और दिग्विजय सिंह जैसे कद्दावर नेता का नाम आता है.
हाल ही में बंगाल के हावड़ा में हिंसा भड़कने के बाद ममता बनर्जी ने बजरंग दल की तीखी आलोचना की थी. ममता का कहना था कि बजरंग दल की वजह से बंगाल में हिंसा भड़कती है.
कर्नाटक में बैन की मांग के बीच छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि वे भी इस पर विचार करेंगे.