चुनावी साल में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) एक बार फिर सुर्खियों में है. कैग की हालिया रिपोर्ट ने सरकार की कई योजनाओं में चल रही गड़बड़ियों का उजागर किया है. इनमें आयुष्मान योजना, अयोध्या विकास परियोजना और द्वारका एक्सप्रेस-वे का निर्माण प्रमुख हैं. 


कैग की रिपोर्ट आने के बाद विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार की घेराबंदी कर दी है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर कहा- मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार के 75 वर्ष के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. कांग्रेस के जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री से पूरे मामले में चुप्पी तोड़ने के लिए कहा है.


यह पहली बार नहीं है, जब कैग की रिपोर्ट ने सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हो. कैग रिपोर्ट की वजह से मुख्यमंत्री और मंत्रियों की कुर्सी तक जा चुकी है. इतना ही नहीं, कैग की रिपोर्ट से बने भ्रष्टाचार के माहौल में पूरी मनमोहन सरकार ही चली गई. 


ऐसे में आइए जानते हैं, कैग कैसे काम करता है और इसकी रिपोर्ट ने कब-कब सत्ता की मुश्किलें बढ़ा दी?


CAG क्या है, कैसे काम करता है?
संविधान में सरकारी खर्च की पड़ताल के लिए एक सरकारी एजेंसी बनाने का प्रावधान है. अनुच्छेद 148 के मुताबिक इस एजेंसी के प्रमुख की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा किया जाएगा. प्रमुख को उसी तरह से हटाया जा सकता है, जिस तरह सुप्रीम कोर्ट के एक जज को.


संविधान के अनुच्छेद 149, 150 और 151 में कैग के कामकाज और शक्तियों के बारे में जिक्र है. कैग का काम सभी सरकारी संस्थाओं का ऑडिट करना है और उसकी रिपोर्ट संसद या विधानसभा के पटल पर रखना है. वर्तमान में कैग 2 तरह से ऑडिट करता है. 1. रेग्युलेरिटी ऑडिट और 2. परफॉर्मेंस ऑडिट.


रेग्युलेरिटी ऑडिट को कम्पलायंस ऑडिट भी कहते हैं. इसमें सभी सरकारी दफ्तरों के वित्तीय ब्यौरे का विश्लेषण किया जाता है. विश्लेषण में मुख्यत: यह देखा जाता है कि सभी नियम-कानून का पालन किया गया है या नहीं? 2जी स्पैक्ट्रम की नीलामी का मामला रेग्युलेरिटी ऑडिट की वजह से ही उठा था. 


इसी तरह परफॉर्मेंस ऑडिट में कैग यह पता लगाया जाता है कि क्या सरकारी योजना शुरू करने का जो मकसद था, उसे कम खर्च पर सही तरीके से किया गया है या नहीं? इस दौरान योजनाओं का बिंदुवार विश्लेषण किया जाता है. 


कैग की ताजा रिपोर्ट में क्या है?
- हरियाणा से दिल्ली तक बन रहे द्वारका एक्सप्रेस-वे में हो रही गड़बड़ियों का कैग ने उजागर किया है. कैग के मुताबिक सरकार ने 18 करोड़ रुपए में इसे बनाने की अनुमति दी थी, लेकिन NHAI इसे बनाने में 250 करोड़ रुपए का खर्च कर रहा है. 


- आयुष्मान योजना में हुई धांधली का खुलासा भी कैग की रिपोर्ट में हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक आयुष्मान योजना के तहत 3,446 ऐसे मरीजों के इलाज पर 6.97 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया, जो पहले ही मर चुके थे. 


- अयोध्या विकास को लेकर बनाए जा रहे स्वदेश दर्शन योजना पर भी कैग ने सवाल उठाया है. कैग के मुताबिक इस परियोजना में ठेकेदारों को 19.73 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ दिया गया है. 


- कैग रिपोर्ट के मुताबिक आयुष्मान योजना के तहत 7.5 लाख लाभार्थी एक ही संख्या के मोबाइल नंबर से जुड़े हुए हैं. रिपोर्ट में भारी धांधली का जिक्र किया गया है.


अब कैग रिपोर्ट के 3 किस्से...


1. सरकारी खर्च पर निजी यात्रा कर फंसे केशुभाई, कुर्सी गई
सितंबर 2001 में कैग ने गुजरात को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की. रिपोर्ट में कहा गया कि गुजरात के मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल बिना वजह 2 बार विदेश यात्रा पर गए. इस दौरान उन्होंने अपने 2 करीबी अधिकारियों को भी साथ ले गए, जो वहां मनोरंजन के नाम पर लाखों खर्च कर आए.


कैग ने मुख्यमंत्री के 2 करीबी अधिकारिों को सरकारी मद से खर्च रुपयों का भुगतान करने के लिए भी कहा. रिपोर्ट आने के बाद गुजरात की सरकार हरकत में आ गई. केशुभाई पटेल की मीडिया टीम ने कैग के खिलाफ ही एक विज्ञापन निकलवा दिया.


इसमें कहा गया कि मुख्यमंत्री निवेश लाने गए थे, लेकिन कैग ने लोगों को गुमराह किया है. कैग और सरकार की लड़ाई में विपक्ष भी कूद गया. केंद्र में अटल बिहारी वाजपेई की सरकार थी. राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रहे छविदास मेहता ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख पूरे मामले में एक्शन लेने के लिए कहा.


गुजरात में इस प्रकरण के एक साल बाद ही विधानसभा का चुनाव प्रस्तावित था. बीजेपी ने आनन-फानन में गुजरात के नेताओं की बैठक बुलाई. इसी बैठक में केशुभाई पटेल के हटाने पर सबके बीच सहमति बनी. 6 अक्टूबर 2001 को केशुभाई पटेल का इस्तीफा हो गया.


पटेल की जगह पर नरेंद्र मोदी को विधायक दल का नेता चुना गया. नरेंद्र मोदी पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री बनाए गए.


2. मंत्री बने तो पासवान ने घर सजवाने में कर दिए लाखों खर्च
1989 में वीपी सिंह की सरकार में रामविलास पासवान पहली बार केंद्रीय मंत्री बनाए गए. मंत्री के रूप में उन्हें 12 जनपथ का बंगला दिया गया. 1991 में कैग की रिपोर्ट ने राम विलास पासवान के बंगले को लेकर एक रिपोर्ट जारी कर दी. रिपोर्ट के मुताबिक पासवान ने घर सजवाने के लिए तय रकम से ज्यादा रुपए खर्च कर दिए.


रिपोर्ट में कहा गया कि पासवान को जब बंगला मिला तो ईपीएफओ ने अपने मद से साज-सज्जा के लिए लाखों रुपए खर्च कर दिए. ईपीएफओ की ओर से डबल बेड के लिए 10,945 रुपए, रंगीन टीवी के लिए 13,500 रुपए, पर्दे के लिए 52,300 रुपए दिए गए, जो गलत निर्णय था. 


कैग रिपोर्ट पर हंगामा मच गया और विपक्ष ने ईमानदार राजनीति की बात करने वाले पूर्व पीएम वीपी सिंह को निशाने पर ले लिया. जानकारों का कहना है कि रामविलास पासवान के मामले में सिंह बैकफुट पर आ गए, क्योंकि पासवान उनके काफी करीबी थे. 


1991 में वीपी सिंह की पार्टी को चुनाव में करारी हार मिली. सिंह ने इसके बाद 10 साल तक कोई भी पद नहीं लेने का अघोषित वादा कर लिया.


3. मनमोहन के मंत्री को जेल जाना पड़ा, सरकार भी गई
2010 में कैग ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसने तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी. कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 2 जी स्पैक्ट्रम के आवंटन में धांधली की गई है. यह आवंटन साल 2008 में किया गया था.  कैग के मुताबिक 2जी आवंटन में धांधली की वजह से सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ. 


उस वक्त दूरसंचार विभाग डीएमके के ए. राजा के पास था. कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि ए. राजा ने स्पैक्ट्रम आवंटन में प्रधानमंत्री कार्यालय, वित्त मंत्री कार्यालय के सलाहों को नजरअंदाज कर दिया. मामला सामने आने के बाद बीजेपी ने संसद में मनमोहन सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. 


आनन-फानन में मनमोहन सिंह ने सीबीआई से जांच कराने की बात कही. सीबीआई ने शुरुआती जांच के बाद ए.राजा को गिरफ्तार कर लिया, जिसके बाद उन्हें कैबिनेट से भी हटा दिया गया. हालांकि, बाद में सीबीआई मामले को साबित नहीं कर पाई और कोर्ट से ए.राजा को क्लीन चिट मिल गई.


2-जी स्पैक्ट्रम के बाद कैग कोल आवंटन भी सवाल उठा दिया. लगातार घपले-घोटाले सामने आने के बाद सरकार बैकफुट पर चली गई. अन्ना हजारे के नेतृत्व में लोकपाल बनाने की मांग शुरू हो गई. 2015 में एक इंटरव्यू में आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ने कहा था कि कांग्रेस सीएजी रिपोर्ट के बाद शांत पड़ गई.


लालू के मुताबिक सीएजी रिपोर्ट के बाद बीजेपी अटैक मोड में और कांग्रेस डिफेंड मोड में चली गई, जिसका असर 2014 के चुनाव पर हुआ और मनमोहन सरकार बुरी तरह हार गई.