'बीजेपी आती है, तो भ्रष्टाचार भागता है' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस टिप्पणी के बाद भ्रष्टाचार फिर से राजनीतिक के केंद्र में आ गया है. आजादी के बाद से ही भारत में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा रहा है और सभी पार्टियां इसे खत्म करने का दावा करती रही है. बीजेपी भी इससे अछूता नहीं है.


पिछले दिनों सीबीआई और ईडी की कार्रवाई के खिलाफ 14 दलों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया तो खुद प्रधानमंत्री मोदी इसके बचाव में उतर आए. प्रधानमंत्री ने कहा कि भ्रष्टाचार में लिप्त नेता एक साथ एक मंच पर आ रहे हैं. कुछ दलों ने भ्रष्टाचारी बचाओ आंदोलन छेड़ा हुआ है, लेकिन एक्शन नहीं रुकेगा.


प्रधानमंत्री की टिप्पणी के बाद विपक्ष ने भी इस बार जोरदार पलटवार कर दिया. कोलकाता में तृणमूल कांग्रेस के अध्यक्ष ममता बनर्जी ने मंच पर वाशिंग मशीन लगाकर बीजेपी पर तंज कसा. ममता ने कहा कि बीजेपी वाशिंग मशीन है और दागियों को धुलकर सफेद कर देती है. ममता ने इसका लाइव डेमो भी दिखाया.


कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी ट्वीट कर मोदी सरकार पर निशाना साधा है. खरगे ने कहा कि विपक्ष के 95 फीसदी नेताओं पर ईडी और सीबीआई का केस दर्ज हुआ है, लेकिन जो नेता बीजेपी में शामिल हो जाते हैं उसका दाग धुल कर साफ कर दिया जाता है. आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं है, बल्कि वे कहते हैं कि बीजेपी में आकर भ्रष्टाचार करो.


सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल, क्या कहा गया है?
कांग्रेस, डीएमके, जेडीयू, राजद, तृणमूल कांग्रेस समेत 14 पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई और ईडी एक्शन के खिलाफ याचिका दायर की है. याचिका में कहा गया है कि सीबीआई और ईडी जैसी जांच एजेंसियों को सेलेक्टिव टारगेट करने के लिए भेजा जाता है. 


याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी के मुताबिक ईडी पीएमएलए एक्ट के तहत 2021-22 में 1180 केस दर्ज की है. 2019-20 में यह 981 था. सिंघवी ने कहा कि इस एक्ट के तहत अब तक सिर्फ 23 अभियुक्तों को दोषी ठहराया गया है. 


उन्होंने कहा कि राजनीतिक आवाज दबाने के लिए जांच एजेंसियों का उपयोग किया जाता है. याचिका में गिरफ्तारी और जमानत को लेकर ढील देने की मांग की गई है और कहा गया है कि इसके जरिए सिर्फ विपक्षी नेताओं को टारगेट किया जा रहा है.


भ्रष्टाचार का वाशिंग मशीन है बीजेपी, 3 आरोप
1. विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि पिछले 9 साल में ईडी और सीबीआई ने बीजेपी के एक भी बड़े नेताओं के यहां कोई कार्रवाई नहीं की है. कई नेताओं पर पहले केस दर्ज हैं, जो फाइलों में खोया हुआ है.


2. विपक्ष का आरोप है कि कई नेताओं पर पहले सीबीआई और ईडी का एक्शन हुआ, लेकिन जैसे ही नेता बीजेपी में शामिल हुए उन पर कार्रवाई रोक दी गई. बीजेपी में आने वाले नेताओं का भ्रष्टाचार जांच एजेंसी को नहीं दिखता है. 


3. विपक्ष का आरोप है कि जिन राज्यों में बीजेपी कमजोर है, वहां पर ईडी-सीबीआई और आईटी को एक्टिव किया जाता है. फिर कई नेताओं को डराया जाता है. डर से जो बीजेपी में जाने को तैयार हो जाते हैं, उन पर कार्रवाई नहीं होती है.


बीजेपी में आते ही किन नेताओं पर रूका एक्शन?
1. हिमंत बिस्वा सरमा, असम- कांग्रेस की तरुण गोगोई सरकार में मंत्री रहे हिमंत बिस्वा शर्मा पर शारदा चिटफंड घोटाले में सीबीआई ने आरोपी बनाया था. सरमा पर आरोप था कि शारदा ग्रुप के डायरेक्टर सुदीप्त सेन से 20 लाख रुपए हर महीने लिए, जिससे ग्रुप का कामकाज बेहतर तरीके से चल सके.


सरमा से अंतिम बार सीबीआई ने 27 नवंबर 2014 को पूछताछ की थी. हिमंत ने अगस्त 2015 में बीजेपी ज्वॉइन कर लिया था. कांग्रेस का आरोप है कि इसके बाद सीबीआई ने हिमंत की फाइल बंद कर दी. हिमंत अभी असम के मुख्यमंत्री हैं.


2. शुभेंदु अधिकारी, पश्चिम बंगाल- ममता सरकार में कद्दावर मंत्री रहे शुभेंदु अधिकारी से सीबीआई ने शारदा घोटाले में पूछताछ शुरू की थी. उन पर आरोप था कि शारदा ग्रुप के डायरेक्टर सुदीप्त सेन से फेवर लिया था. शुभेंदु पर बाद में नारदा स्टिंग ऑपरेशन में भी पैसा लेने का आरोप लगा, जिसकी जांच ईडी ने शुरू की.


तृणमूल कांग्रेस का आरोप है कि शुभेंदु जब टीएमसी में थे, तब जांच एजेंसी उन्हें परेशान कर रही थी, लेकिन जैसे ही बीजेपी में गए तो सारे मामले में उन्हें क्लिन चिट मिलने लगा. 2022 में बंगाल पुलिस ने शुभेंदु के खिलाफ शारदा घोटाले में जांच शुरू की. शुभेंदु वर्तमान में बंगाल विधानसभा में बीजेपी विधायक दल के नेता यानी नेता प्रतिपक्ष हैं. 


3. जितेंद्र तिवारी, पश्चिम बंगाल- आसनसोल के कद्दावर नेता जितेंद्र तिवारी ने 2021 में तृणमूल छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया था. उस वक्त मोदी सरकार में मंत्री रहे बाबुल सुप्रीयो ने इसका खुलकर विरोध किया था. सुप्रीयो ने कहा था कि कोयला चोर और तस्करों को पार्टी में लाने का नुकसान होगा.


सुप्रीयो ने फेसबुक पर पोस्ट लिखकर कहा था कि कोल तस्करी केस में सीबीआई की कार्रवाई के बाद कुछ नेता बीजेपी में आने की जुगत लगा रहे हैं. मैं ऐसा होने नहीं दूंगा. हालांकि, हाईकमान ने तिवारी की एंट्री को हरी झंडी दे दी. तृणमूल का आरोप है कि तिवारी कोयला तस्करी में शामिल रहे हैं और उन पर सीबीआई का एक्शन नहीं हो रहा है.


4. नारायण राणे, महाराष्ट्र- शिवसेना उद्धव गुट का आरोप है कि नारायण राणे को भी बीजेपी ने वाशिंग मशीन में डालकर पाक-साफ कर दिया है. राणे अभी मोदी कैबिनेट में मंत्री हैं. बीजेपी नेता किरीट सोमैया ने उन पर आदर्श सोसायटी मामले में हेरफेर का आरोप लगाया था. 


साल 2012 में सोमैया ने सीबीआई को 1300 पन्नों का एक दस्तावेज भी सौंपा था. साल 2017 में किरीट सोमैया ने ईडी को पत्र लिखकर नारायण राणे की संपत्ति जांच करने की मांग की थी. सोमैया ने कहा था कि राणे मनी लॉन्ड्रिंग कर अपना पैसा सफेद कर रहे हैं.


साल 2019 में नारायण राणे बीजेपी में शामिल हो गए और उन्हें केंद्र में मंत्री बनाया गया. शिवसेना उद्धव गुट का आरोप है कि राणे को लेकर सीबीआई और ईडी ने जांच रोक दी है.


5. बीएस येदियुरप्पा, कर्नाटक- कर्नाटक में बीजेपी का चेहरा बीएस येदियुरप्पा पर भी भ्रष्टाचार का आरोप लगा था. येदियुरप्पा को इसकी वजह से मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. येदियुरप्पा पर 2011 में 40 करोड़ रुपए लेकर अवैध खनन को शह देने का आरोप लगा था और लोकायुक्त ने उनके खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी किया था. 


2013 के चुनाव में येदियुरप्पा अलग पार्टी बनाकर चुनाव लड़े, जिससे बीजेपी को नुकसान का सामना करना पड़ा. इसके बाद येदि की घर वापसी हुई. 2016 में सीबीआई की विशेष अदालत ने येदियुरप्पा को क्लीन चिट दे दिया था. कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी में आने के बाद येदियुरप्पा के खिलाफ एजेंसी ने जांच ठीक ढंग से नहीं किया. 


6. प्रवीण डारेकर, महाराष्ट्र- 2009 से 2014 तक मनसे के विधायक रहे प्रवीण डारेकर पर 2015 में मुंबई कॉपरेटिव बैंक में 200 करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप लगाया गया था. बीजेपी ने इस मामले को जोरशोर से उठाया, जिसके बाद आर्थिक अपराध शाखा को केस की जांच सौंपी गई. 


2016 में डारेकर बीजेपी में शामिल हो गए और विधान परिषद पहुंच गए. साल 2022 में आर्थिक अपराध शाखा ने उन्हें क्लीन चिट दे दिया. डारेकर अभी मुंबई कॉपरेटिव बैंक सोसाइटी के अध्यक्ष हैं.


7. हार्दिक पटेल, गुजरात- पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल पर बीजेपी सरकार के दौरान राजद्रोह का केस दर्ज किया गया था. हार्दिक को इसकी वजह से तड़ीपार भी रहना पड़ा था. हार्दिक पर 20 केस दर्ज किए गए थे.


पटेल गुजरात चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए. कांग्रेस का आरोप है कि राजद्रोह केस में बचने के लिए हार्दिक ने यह कदम उठाया. हार्दिक अभी बीजेपी के वीरमगाम से विधायक हैं.


विपक्ष का कहना है कि इन नामों के अलावा सोवन चटर्जी, यामिनी जाधव और भावना गवली जैसे नेताओं पर भी जांच एजेंसी ने कोई एक्शन नहीं लिया, क्योंकि सभी बीजेपी या उनके सहयोगी पार्टी में चले गए. 


अब उन 2 नेताओं की कहानी, जिस पर विपक्ष में रहने के दौरान बीजेपी भ्रष्टाचार का आरोप लगाती थी. दोनों नेता पहले बीजेपी के साथ गए और उन आरोपों से पीछा छुड़वाया. फिर बीजेपी से बाहर निकल आए.


1. अजित पवार, महाराष्ट्र- महाराष्ट्र के कद्दावर नेता अजित पवार पर 70 हजार करोड़ रुपए के सिंचाई घोटाले का आरोप 2014 से पहले बीजेपी लगाती थी. इस मामले की जांच ईओडब्लयू को सौंपी गई थी. अजित पवार को लेकर बीजेपी के नेता देवेंद्र फडणवीस का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वे पवार को जेल में चक्की पीसने की बात कह रहे थे.


2019 में एक राजनीतिक उठापटक में अजित बीजेपी के साथ चले गए. पवार देवेंद्र फडणवीस के साथ जाकर गठबंधन कर लिया और खुद डिप्टी सीएम बन गए. इसके बाद घोटाले से जुड़ी सारी फाइलें बंद कर दी गई. बाद में अजित पवार बीजेपी छोड़ खुद की पार्टी में लौट आए.


2. मुकुल रॉय, पश्चिम बंगाल- पूर्व केंद्रीय मंत्री मुकुल रॉय पर 2015 में शारदा घोटाले में पैसा लेकर चिटफंड कंपनी फेवर देने का आरोप लगा था. रॉय ने 2017 में बीजेपी ज्वाइन कर लिया, जिसके बाद उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया. साल 2019 में रॉय ने दावा किया कि सीबीआई ने इस मामले में उन्हें क्लिन चिट दे दिया है और गवाह के तौर पर सिर्फ पूछताछ की है.


 


हालांकि, 2021 में मुकुल रॉय बीजेपी हाईकमान से खटपट होने के बाद पार्टी छोड़ फिर से तृणमूल में शामिल हो गए.