लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी के निलंबन पर कांग्रेस ने मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. सोनिया गांधी की अध्यक्षता में मीटिंग के बाद कांग्रेस ने राज्यसभा में भी अधीर के निलंबन का मुद्दा उठाया. कांग्रेस में लोकसभा वॉकआउट का फैसला किया है. 


अधीर रंजन चौधरी के निलंबन को मल्लिकार्जुन खरगे ने असंवैधानिक बताया और उपराष्ट्रपति से हस्तक्षेप करने की मांग की है. कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि हम निलंबन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी जा सकते हैं. सरकार बहुमत के दम पर सांसदों का आवाज दबाने की कोशिश कर रही है.


गुरुवार को अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान अधीर रंजन चौधरी ने प्रधानमंत्री को 'नीरव मोदी और अंधा राजा' कहकर संबोधित किया था, जिस पर संसदीय कार्यमंत्री ने आपत्ति जताई थी. अविश्वास प्रस्ताव पास होने के बाद लोकसभा में चौधरी के निलंबन का प्रस्ताव लाया गया, जिसे स्वीकार कर लिया गया.


अधीर के मामले को सरकार ने प्रिविलेज कमेटी में भेजने का फैसला किया. कमेटी की रिपोर्ट के बाद आगे की कार्रवाई हो सकती है. जानकारों का कहना है कि प्रिवलेज कमेटी में केस जाने की वजह से अधीर की सदस्यता भी खतरे में पड़ गई है.


अधीर की सियासत के 5 कहानी...


नक्सल आंदोलन में शामिल हो गए, इमरजेंसी में जेल गए
1956 में जन्मे अधीर रंजन चौधरी ने इंटरमीडिएट की पढ़ाई करने के बाद नक्सल आंदोलन से जुड़ गए. 1975 में इमरजेंसी लगी, तो अधीर को गिरफ्तार कर लिया गया. उन पर मीसा एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया. उस वक्त वे वाम मोर्चा के फॉरवर्ड ब्लॉक से जुड़े हुए थे. बंगाल में उस वक्त सिद्धार्थ शंकर रे के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी. 


इमरजेंसी खत्म होने के साथ ही बंगाल से कांग्रेस की विदाई हो गई. वाममोर्चा के ज्योति बसु मुख्यमंत्री बने. उन्होंने नक्सल मूवमेंट से जुड़े अधिकांश कार्यकर्ताओं पर से केस वापस लेने के लिए माफी अभियान चलाया. अधीर समेत 300 लोगों पर से नक्सल मूवमेंट का केस वापस लिया गया. अधीर इसके बाद सीपीएम के मजदूर यूनियन से जुड़ गए. 


हालांकि, अधीर का मन मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स में जाने की थी. 1990 आते-आते उन्होंने पाला बदल लिया. राजीव गांधी उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष थे. उन्होंने बंगाल में बड़ी संख्याओं में युवाओं को कांग्रेस में शामिल कराया. अधीर भी लेफ्ट का रास्ता छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गए.


बूथ पर CPM कार्यकर्ताओं से जान बचाकर भागे, चुनाव भी हारे
राजीव गांधी के कहने पर 1991 के बंगाल विधानसभा चुनाव में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सिद्धार्थ शंकर रे ने जमकर युवाओं को टिकट बांटा. अधीर को भी मुर्शिदाबाद के नबाग्राम से टिकट मिला. अधीर का यह पहला बड़ा चुनाव था, वो भी लेफ्ट के गढ़ में. 


चुनाव प्रचार के दौरान अधीर ने खूब मेहनत की, लेकिन दलबदल की वजह से कांग्रेस कार्यकर्ताओं का ज्यादा साथ उन्हें नहीं मिला. चुनाव के दिन बूथ पर निरीक्षण के दौरान सीपीएम के 300 कार्यकर्ताओं ने अधीर को दौड़ा लिया.


इतना ही नहीं, अधीर के सामने की ही पीठासीन अधिकारियों को सीपीएम कार्यकर्ताओं ने बंधक बना लिया. अधीर को अपनी जान बचाने के लिए भागना पड़ा. सीपीएम के शिशिर सरकार से अधीर यह चुनाव 1300 वोटों से हार गए. 


जेल में भाषण का टेप रिकॉर्ड, 20 हजार वोटों से चुनाव जीते
1991 के विधानसभा चुनाव के बाद अधीर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. चुनाव हारने के बाद अधीर पर सीपीएम कार्यकर्ताओं की हत्या का आरोप लगा. पुलिस ने केस दर्ज कर अधीर को जेल भेज दिया. 1996 के चुनाव तक अधीर जेल में ही थे. 


चुनाव की घोषणा से पहले कांग्रेस ने अधीर के खिलाफ अन्याय का मुद्दा जोर-शोर से उठाया. सिद्धार्थ शंकर रे की सिफारिश पर अधीर को दूसरी बार नबाग्राम से टिकट मिला. अधीर को प्रचार के लिए भी जेल से जमानत नहीं मिली.


इसके बाद उन्होंने जेल के भीतर ही अपने भाषण का टेप रिकॉर्ड किया. अधीर के इस टेप को कांग्रेस के कार्यकर्ता गली-मोहल्लों में लोगों को सुनाने लगे. कांग्रेस के बड़े नेताओं के कार्यक्रम में अधीर का रिकॉर्डेड भाषण पहले बजाया जाता था. 


अधीर का यह प्रयोग सफल रहा और लेफ्ट का मजबूत किले को कांग्रेस ने ध्वस्त कर दिया. अधीर को इस चुनाव में करीब 76 हजार वोट मिले, जबकि सीपीएम के मुजफ्फर हुसैन सिर्फ 56 हजार वोट लाने में कामयाब रहे. अधीर ने यह चुनाव 20 हजार के रिकॉर्ड वोटों से जीता.


दिग्गज रे की हार का बदला लिया, मुर्शिदाबाद बना कांग्रेस का गढ़
1996 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने मुर्शिदाबाद के बरहमपुर सीट से सिद्धार्थ शंकर रे को मैदान में उतारा, लेकिन रे इस चुनाव में तीसरे नंबर पर रहे. वाम समर्थित RPI के प्रमोथेश मुखर्जी चुनाव जीतने में कामयाब रहे. 1998 के चुनाव में भी प्रमोथेश ही बरहमपुर से जीतकर सदन पहुंचे. 


1999 के चुनाव में कांग्रेस ने अधीर को टिकट दिया. अधीर के मजबूती से लड़ने की वजह से इस सीट पर सबसे अधिक हिंसा हुई. कांग्रेस के मुताबिक 1999 के चुनाव में मुर्शिदाबाद में 32 हत्याएं हुई. हिंसा में 12 कांग्रेस कार्यकर्ता मारे गए. अधीर अंत तक डटे रहे और बरहमपुर से जीत गए.


इस चुनाव में अधीर को 4 लाख 34 हजार वोट मिले. अधीर ने अपने प्रतिद्वंदी आरपीएस के प्रमोथेश मुखर्जी को करीब 1 लाख वोटों से हराया. 1999 के बाद अधीर ने यहां अपनी छवि रॉबिनहुड की बना ली. वे 2004, 2009, 2014 और 2019 के चुनाव में भी वोटों के बड़े अंतर से जीतकर संसद पहुंचने में कामयाब रहे. 


प्रणब दा से कहा- जंगीपुर से जंग लड़िए, आप जीत जाएंगे
बंगाल की सियासत में घूमंतू नेता की छवि बना चुके प्रणब मुखर्जी को 2004 में अधीर ने मुर्शिदाबाद की जंगीपुर से चुनाव लड़ने के लिए कहा. प्रणब मुखर्जी उस वक्त सोनिया गांधी के किचन कैबिनेट के सदस्य थे. उनकी गिनती प्रधानमंत्री के दावेदारों में भी होती थी.


अधीर ने स्क्रीनिंग कमेटी की मीटिंग में प्रणब को आश्वासन दिया कि अगर आप जंगीपुर से चुनाव लड़ेंगे, तो जीत जाएंगे. प्रणब 1977 में मालदा और 1980 में बोलपुर सीट से चुनाव हार चुके थे, इसलिए उनके लोकसभा चुनाव लड़ने पर उहापोह की स्थिति थी. 


अधीर के कहने पर प्रणब राजी हुए और जंगीपुर से पर्चा भर दिया. जंगीपुर में चुनाव मैनेजमेंट का काम अधीर ने ही किया. प्रणब चुनाव जीतने में कामयाब रहे. उन्होंने सीपीएम के अबुल हसनत खान को 37 हजार वोटों से हराया.


राष्ट्रपति बनने तक प्रणब इसी सीट से सांसद रहे. 2012-14 में प्रणब के बेटे अभिजीत ने इस सीट से जीत दर्ज की. 


सोनिया-राहुल के खास कैसे बने, 3 प्वॉइंट्स...


1. दासमुंशी ने सोनिया से कहा- बंगाल टाइगर से मिलिए
यह वाकया 2007 का है. राष्ट्रपति चुनाव के दौरान प्रतिभा पाटिल के समर्थन में सोनिया गांधी ने दिल्ली की एक होटल में डिनर का आयोजन किया था. इस आयोजन में यूपीए के सभी सांसदों को बुलाया गया था. इंडियन एक्सप्रेस की छपी रिपोर्ट के मुताबिक केंद्रीय मंत्री और बंगाल के कद्दावर नेता प्रियरंजन दासमुंशी ने पहली बार सोनिया से अधीर को मिलवाया.


दासमुंशी ने अधीर का परिचय देते हुए सोनिया से कहा- इनसे मिलिए, ये बंगाल टाइगर हैं. 2009 में प्रणब मुखर्जी को सोनिया गांधी ने बंगाल अध्यक्ष बनाकर भेजा. प्रणब ने अधीर को मालदा-मुर्शिदाबाद की 5 सीटों की जिम्मेदारी सौंपी, जिसे जिताने में अधीर कामयाब रहे.


2. दासमुंशी कोमा में चले गए, प्रणब राष्ट्रपति बन गए
यूपीए सरकार में बंगाल से कांग्रेस के प्रियरंजन दासमुंशी और प्रणब मुखर्जी मंत्री थे. दोनों की गिनती कद्दावर नेताओं में होती थी. 2008 में दासमुंशी कोमा में चले गए. वहीं 2012 में प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति बन गए. बंगाल से मंत्रिमंडल कोटा भरने के लिए सोनिया गांधी ने अधीर पर भरोसा जताया. अक्टूबर 2012 में अधीर मनमोहन कैबिनेट में शामिल किए गए. 


अधीर को मनपसंद रेल मंत्रालय में राज्यमंत्री बनाया गया. 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले अधीर को बंगाल कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया. कांग्रेस 4 सीट जीतने में कामायाब रही. 2016 के चुनाव में अधीर के नेतृत्व में कांग्रेस राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई.


3. खरगे की हार और बन गए लोकसभा में कांग्रेस के नेता
2014-19 तक लोकसभा में मल्लिकार्जुन खरगे कांग्रेस के नेता थे, लेकिन 2019 में वे चुनाव हार गए. उत्तर भारत से भी कांग्रेस को सिर्फ 2 सीटों पर जीत मिली. राहुल वायनाड से सांसदी बचाने में कामयाब रहे. हालांकि, लोकसभा में पार्टी का नेता कौन होगा, इस पर असमंजस बरकरार था. 


पंजाब से सांसद मनीष तिवारी और केरल से सांसद शशि थरूर रेस में आगे थे, लेकिन सोनिया ने अधीर के नाम का प्रस्ताव रखा. 2020 में सोमेन मित्रा के निधन के बाद सोनिया ने अधीर से बंगाल में कांग्रेस की कमान संभालने के लिए कहा. 


अधीर इसके बाद कांग्रेस के भीतर काफी ताकतवर हो गए. 


सियासी विवादों के भी चौधरी हैं अधीर


1. जुलाई 2022 में अधीर ने एक बयान में द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपत्नी बता दिया. इस पर काफी हंगामा हुआ, जिसके बाद सोनिया गांधी ने अधीर से माफी मांगने के लिए कहा. अधीर के बयान पर सोनिया को भी टिप्पणी करनी पड़ी. 


2. 2019 में एक प्रस्ताव पर बोलते हुए अधीर रंजन चौधरी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गंदा नाला बता दिया. बीजेपी ने इस पर काफी हंगामा किया. नरेंद्र मोदी अधीर के बयान को कांग्रेस के चरित्र से जोड़ा.


3. 2019 मे एनआरएसी को लेकर बयान देते हुए अधीर ने कहा था कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह भी बाहरी हैं. गुजरात से अवैध तरीके से दिल्ली आए हैं. अधीर के इस बयान पर भी काफी हंगामा हुआ. 


4. 2018 में मॉब लीचिंग पर बहस की मांग को लेकर कांग्रेस के 5 सांसदों ने बेल में आकर खूब हंगामा किया. अधीर इस दौरान स्पीकर के सामने रखे टेबल पर चढ़ गए. उन्हें 5 दिन के लिए निलंबित कर दिया गया था.