भारत में मंदिर बनाने से पहले कैसे तय की जाती है डिजाइन, क्या है इसके पीछे की परंपरा
नागर शैली का मंदिर उत्तर भारत में हिमालय की पर्वत श्रृंखला से नर्मदा नदी तक पाए जाते है. इस शैली का नाम नगर शब्द से बना है क्योंकि इसे बनाए जाने की शुरुआत नगरों से हुई थी.
भारत को मंदिरों का देश कहा जाता है. यहां हर शहर हर गली में आपको मंदिर देखने को मिल जाएंगे. हमारे देश में मंदिरों का इतिहास काफी पुराना है. कई मंदिर तो ऐसे हैं, जो हजारों हजार साल पुराने हैं. भारत के कुछ प्राचीन शहरों की पहचान ही मंदिरों से है. काशी यानी वाराणसी में स्थित मंदिर हो या फिर दक्षिण भारत में मौजूद मंदिर. लेकिन क्या आपने सोचा है कि मंदिरों को तैयार करने से पहले उसका डिजाइन कैसे किया जाता है. आइए इस सवाल का जवाब जानते हैं.
भारत में तीन प्रमुख प्रकार के मंदिर हैं जिन्हें वास्तुकला और क्षेत्र में बांटा गया है
- नागर शैली
- द्रविड़ शैली
- वेसर शैली
नागर शैली
नागर शैली का मंदिर उत्तर भारत में हिमालय की पर्वत श्रृंखला से नर्मदा नदी तक पाए जाते हैं. इस शैली का नाम नगर शब्द से बना है क्योंकि इसे बनाए जाने की शुरुआत नगरों से हुई थी. इस शैली से बनाए जाने वाले मंदिर संरचनात्मक होते हैं. यानी इस शैली में मंदिरों के छोटे-छोटे टुकडे को जोड़कर बनाया जाता है. जबकि दूसरे प्रकार के मंदिर चट्टान काटकर बनाए जाते हैं. नागर शैली में बने मंदिरों के उदाहरण के रूप में हम खजुराहो के मंदिरों को देख सकते हैं.
नागर शैली में मंदिर के सबसे ऊपर शिखर होता है. नागर मंदिर के शिखर को रेखा शिखर भी कहते हैं. इस शैली की मंदिर में दो भवन होते हैं. पहला गर्भगृह और दूसरा मंडप. मंडप मोटा होता है और गर्भगृह ऊंचा. गर्भगृह के ऊपर एक घंटाकार संरचना होती है जिससे मंदिर की ऊंचाई बढ़ जाती है. इस मंदिर में चार कक्ष होते हैं. पहला गर्भगृह, दूसरा जगमोहन, तीसरा नाट्यमंदिर और चौथा भोगमंदिर.
नागर शैली की प्रमुख मंदिर
- कंदरिया महादेव मंदिर (खजुराहो)
- लिंगराज मंदिर
- जगन्नाथ मंदिर
- कोणार्क का सूर्य मंदिर
- मुक्तेश्वर मंदिर
- खजुराहो के मंदिर
- दिलवाडा के मंदिर
सोमनाथ मंदिर
द्रविड़ शैली
मंदिर बनाने की दूसरी शैली को द्रविड़ शैली कहा जाता है. दक्षिण भारत में जितने भी मंदिर हैं उनमें से ज्यादातर मंदिर द्रविड़ शैली में बने हुए हैं. दक्षिण भारत में जितने भी मंदिर बने हैं उनमें से अधिकतम मंदिर द्रविड़ शैली में बने हुए हैं.
इस शैली के मंदिर की खासियत ये है कि इसका आकार पिरामिडीय होता है. इस विमान में मंजिल पर मंजिल होते हैं. जो बड़े आकार से ऊपर की ओर छोटे आकार का होता चला जाता है और अंत में इसकी गुंबदकार आकृति होती है. इस आकार को जिस तकनीक से बनाया जाता है उसका नाम स्तूपी और स्तूपिका है.
द्रविड़ शैली की मंदिर में एक आयताकार गर्भगृह होता है. जिसके चारों तरफ से बाहर निकलने का रास्ता होता है. द्रविड़ शैली की दो विशेषताएं ये हैं कि इस शैली में मुख्य मंदिर के चार से ज्यादा बाहर निकलने के रास्ते होते हैं. मंदिर का शिखर और विमान पिरामिड के आकार का होता है.
द्रविड़ शैली के मंदिरों के प्रमुख उदाहरण -
- महाबलीपुरम के मंदिर
- कांची के मंदिर
- वातापी तथा एहोल मंदिर
वेसर शैली
वेसर शैली नागर और द्रविड़ का मिला-जुला रूप होता है. ये मंदिर मुख्य तौर पर मध्य भारत में पाया जाता है. इस शैली की मंदिर विंध्याचल की पहाड़ियों से लेकर कृष्णा नदी तक देखा जा सकता है. इस शैली में मंदिर बनने की शुरुआत पूर्व मध्यकाल में हुआ था.
यह एक मिलीजुली शैली है जिसमें नागर और द्रविड़ दोनों के स्वरूप पाए जाते हैं. वेसर शैली में द्रविड़ शैली के तरह विमान होते हैं पर ये विमान एक-दूसरे से द्रविड़ शैली की तुलना में कम दूरी पर होते हैं. जिसका मतलब है कि मंदिर की ऊंचाई कम रहती है. वेसर शैली का उदाहरण है- वृंदावन का वैष्णव मंदिर जिसमें गोपुरम बनाया गया है.
कब हुआ मंदिर निर्माण की शुरुआत
मंदिर बनाने के प्रक्रिया की शुरुआत मौर्यकाल हो गई थी लेकिन आगे चलकर उसमें सुधार किया गया और धीरे-धीरे मंदिरों को और भी कईं विशेषताओं से सजाया जाने लगा. संरचनात्मक मंदिरों के अलावा भी एक अन्य तरह का मंदिर बनाया जाता था जो चट्टानों को काटकर बनाया जाता था.