लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान (सेवानिवृत्त) 30 सितंबर को देश के नये प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) के रूप में कार्यभार ग्रहण कर लिया. इसी के साथ तीनों सेनाओं के बीच तालमेल सुनिश्चित करने के लिए सेना को 'थियेटर कमांड' के रूप में फिर से गठित करने के अभियान पर फिर से ध्यान केंद्रित होने के आसार हैं.
दरअसल, थियेटर कमांड पूर्व सीडीएस जनरल बिपिन रावत का एक ऐसा मिशन हैं जो उनकी आकस्मिक मौत के बाद अधूरा रह गया था. लेकिन इसे पूरा करने की जिम्मेदारी अब नए सीडीएस अनिल चौहान पर है.
एक जनवरी, 2020 को जनरल बिपिन रावत ने थल सेना, नौसेना और भारतीय वायु सेना के कामकाज में एकरूपता लाने और देश के समग्र सैन्य कौशल को बढ़ाने के लिए भारत के पहले सीडीएस के रूप में कार्यभार संभाला था.
रावत का एक अन्य प्रमुख उद्देश्य सैन्य कमानों के पुनर्गठन की सुविधा प्रदान करना था जिसके तहत थिएटर कमांड की स्थापना शामिल है.
जनरल बिपिन रावत ने सबसे पहले थिएटर कमांड बनाने का सपना देखा था. जनरल रावत ने जब देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का पद संभाला तो उनके सामने तीनों सेनाओं के बीच तालमेल बैठाने का महत्वपूर्ण काम था.
इसके साथ ही उनके सामने तीन साल के अपने कार्यकाल के अंदर तीनों सेनाओं का पुनर्गठन कर थिएटर कमांड बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. लेकिन जनरल रावत की मौत के बाद ये अभियान रूक गया.
ऐसे काम करता है थिएटर कमांड
थिएटर कमांड का उद्देश्य भविष्य में आने वाली रक्षा चुनौतियों से मजबूती से निपटने के लिए तीनों सेनाओं को एक प्लेटफॉर्म पर लाना है. जनरल बिपिन रावत देश में चार थिएटर कमांड बनाने पर काम कर रहे थे. वहीं जनरल रावत जिस कमांड प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे वो चीन और पाकिस्तान से भविष्य में आने वाले खतरों से निपटने में अहम साबित होगा.
थिएटर कमांड का सबसे बेहतर इस्तेमाल युद्ध के दौरान होता है. क्योंकि युद्ध के समय ही तीनों सेना प्रमुखों के बीच में तालमेल की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, जिससे कि वो सामने आने वाली कठिन चुनौतियों से निपट सकें. थिएटर कमांड के बीच में बनी रणनीतियों के मुताबिक दुश्मन देश पर अचूक वार करना आसान हो जाता है. वहीं तीनों सेनाओं के संसाधनों और हथियारों का इस्तेमाल एक साथ किया जा सकता है.
क्यों पड़ी थिएटर कमांड की जरूरत?
यह जानकारी बहुत कम लोगों को है कि सन 1999 में कारगिल युद्ध बाद बनी समितियों ने थिएटर कमांड और चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का पद बनाने के सुझाव दे दिए थे. कारगिल की लड़ाई के बाद ही तीनों सेनाओं के बीच तालमेल बढ़ाने की बात की जाने लगी थी.
थिएटर कमांड के अंतर्गत आने के बाद तीनों सेनाएं एक साथ मिलकर काम करेंगी. जिससे सबको एक साथ कमांड में लाने पर सैन्य बलों के आधुनिकीकरण का खर्च कम होगा. वहीं किसी भी आधुनिक टेक्नॉलॉजी का इस्तेमाल सिर्फ एक ही सेना नहीं करेगी बल्कि उस कमांड में शामिल सभी सैन्य बलों को उसका लाभ मिलेगा.
चीन, रूस और अमेरिका में थिएटर कमांड
चीन, रूस और अमेरिका में जो थिएटर कमांड हैं उसमें थल, वायु और नौसेना एक साथ मिलकर काम करते हैं. इन देशों में तीनों सेनाओं की अलग-अलग कमांड नहीं होती. अमेरिका में कुल मिलाकर 11 थिएटर कमांड हैं. जिनमें से 6 पूरी दुनिया को कवर करते हैं. रूस के पास 4 थिएटर कमांड हैं, वहीं चीन के पास 5 थिएटर कमांड हैं. चीन अपनी पश्चिमी थिएटर कमांड के जरिए हैंडल करता है. इस कमांड के जरिए वो भारत की सीमा पर निगरानी करता है.
2013 में रक्षा मामलों के श्वेत पत्र के जरिए चीन ने पहली बार बताया था कि उसकी सेना में कुल 8 लाख 50 हजार अधिकारी तौनात हैं. चीन की थल सेना बीजिंग, नॉनजिंग, चेंगदू, ग्वाहों, शेंगयांग, लानज्हो और जिनान इन सात मिलिट्री कमांड में बंटी हुई है. चीन की वायुसेना को भी इन्हीं थिएटर कमांड में बांटा गया है. इसके साथ ही चीन की तीनों सेनाएं एक साथ मिलकर काम करते हैं, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है.
भारत में कुल 17 कमांड
भारत में तीनों सेनाओं को मिलाकर कुल अलग-अलग 19 कमांड हैं. जिसमें से 7 थल सेना, 7 वायुसेना और 3 नौसेना के पास हैं. वहीं इसके अलावा देश में एक स्ट्रैटेजिक कोर्सेज कमांड है जो परमाणु हथियारों को सुरक्षा देता और उन्हें संभालता है. इसने अलावा अंडमान निकोबार में देश का एकलौता थिएटर कमांड है, जिसकी स्थापना 2001 में की गई थी.
थिएटर कमांड में आने वाली चुनौतियां
थिएटर कमांडों को लेकर देश में जो सबसे पहली चुनौती है वो ये है कि कोई भी कमांड एक जगह पर नहीं हैं. यानी कि ये थिएटर कमांड भारत में अलग-अलग जगहों पर स्थित हैं. इससे सभी कमाड़ों को तालमेल बैठाने में दिक्कत होती है. इसकी वजह से थिएटर कमांडों की ऑपरेशनल एरिया भी दूर-दूर हैं.
इसके अलावा, देश में 2 ट्राई सर्विस कमांड स्ट्रैटेजिक फोर्सेज कमांड (एसएफसी) और अंडमान और निकोबार कमांड (एएनसी) हैं, जिसका नेतृत्व 3 सेवाओं के अधिकारियों द्वारा रोटेशन द्वारा किया जाता है. थिएटर कमांड में एक चुनौती ये भी है.
स्ट्रैटेजिक फोर्सेज कमांड देश की परमाणु हथियार को नियंत्रित और उसकी देखभाल करता है. यह 2003 में बनाया गया था, लेकिन इसकी किसी स्पष्ट क्षेत्र में और जिम्मेदारी नहीं है. वहीं इसके साथ ही यह एकीकृत थिएटर कमांड नहीं है, बल्कि एक एकीकृत फक्शनल कमांड है, जो परमाणु हथियारों के लिए है.
वहीं भारत सरकार से साइबर, एयरोस्पेस और स्पेशल ऑपरेशंस कमांड जैसे अन्य एकीकृत फक्शनल कमांड की मांग की गई है, लेकिन सरकार ने अभी तक किसी को भी मंजूरी नहीं दी है.
युद्ध के दौरान थिएटर कमांड
युद्ध के दौरान ऐसा देखा गया है कि अलग-अलग थिएटर कमांड होने की वजह से सेनाओं के एक्शन में दोहराव या ओवरलैपिंग होती है. वहीं संसाधनों के साथ-साथ मैनपावर भी ज्यादा इस्तेमाल होता है. जबकि आज के दौर में विकसित देश तकनीक का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं. यही वजह थी कि भारत के पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत को उनके तीन साल के कार्यकाल के भीतर तीनों सेनाओं का पुनर्गठन करके थिएटर कमांड बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी.
थिएटर कमांड पर जनरल नरवणे
वहीं देश के पूर्व सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुल नरवणे ने 15 जनवरी 2022 को एक कार्यक्रम में थिएटर कमांड को लेकर कहा था कि "मुझे पूर्ण विश्वास है कि आने वाले समय में तीनों सेनाएं संयुक्त रूप से ऑपरेशन को अंजाम देकर युद्ध क्षेत्र में देश को विजय बनाएगी. इसी उद्देश्य से थिएटराइजेशन पर काम एक समयबद्ध प्लान के तहत चल रहा है. इससे संबंधित कई ट्रांसफार्मेशनल बदलाव आपको देखने को मिलेंगे."
30 सितंबर को लेफ्टिनेंट जनरल (रिट.) अनिल चौहान ने अपना पदभार संभालने के बाद कहा, 'मुझे भारतीय सशस्त्र बलों में सर्वोच्च रैंक की जिम्मेदारी संभालने पर गर्व है. मैं चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के रूप में तीनों रक्षा बलों की अपेक्षाओं को पूरा करने का प्रयास करूंगा. हम सभी चुनौतियों और कठिनाइयों का मिलकर सामना करेंगे.'