Hyderabad Liberation Day: केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने 17 सितंबर 2022 को 'हैदराबाद मुक्ति दिवस' के रूप में मनाने का ऐलान कर दिया है. यह कार्यक्रम पूरे एक साल तक चलेगा. भारत सरकार ने 17 सितंबर, 2022 से 17 सितंबर, 2023 तक हैदराबाद मुक्ति दिवस को सालभर के लंबे स्मृति उत्सव को मंजूरी दी है. वहीं इस कार्यक्रम को दिसंबर 2023 में होने वाले तेलंगाना के विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि दक्षिण भारत के इस राज्य में बीजेपी अपनी पूरी ताकत झोंक रही है, जिससे कि पार्टी तेलंगाना में प्रभावशाली मौजूदगी दर्ज करवा सके. दरअसल, बीजेपी काफी समय से तेलंगाना में जमीन तलाश रही है.  
 
17 सितंबर को हैदराबाद के परेड ग्राउंड में होने वाले उद्घाटन कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मुख्य अतिथि होंगे. वहीं मंत्रालय ने उद्घाटन कार्यक्रम में भाग लेने के लिए तेलंगाना, कर्नाटक और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों को भी आमंत्रित किया है. सालभर चलने वाले इस स्मृति उत्सव का उद्देश्य उन सभी क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि देना है, जिन्होंने हैदराबाद की मुक्ति और भारत में इसके विलय के लिए अपनी जान कुर्बान की थी. 


'ऑपरेशन पोलो'
बता दें कि भारत को आजादी (1947) मिलने के एक साल बाद, 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद निजाम के शासन से आजाद हुआ था. हैदराबाद की आजादी और इसका भारत में विलय देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के कारण संभव हुई थी. वल्लभभाई पटेल ने इसके लिए 'ऑपरेशन पोलो' के तहत समय रहते कार्रवाई की थी, जिसके बाद हैदराबाद भारत में विलय को तैयार हो गया था. 1947 में भारत की आजादी के बाद हैदराबाद की आजादी का आंदोलन भी तेज हो गया. लोगों की बढ़ती भागीदारी और हैदराबाद के भारतीय संघ में विलय की मांग के साथ, यह संघर्ष एक विशाल जन आंदोलन में बदल गया. 


दरअसल, भारत की आजादी की लड़ाई देश के हर राज्य और प्रांत में चल रही थी, लेकिन कुछ ऐसी स्वतंत्र रियासतें थीं जिनके खिलाफ भी आदोलन हो रहे थे. इसी कड़ी में अंग्रेजों के खिलाफ रामजी गोंड का संघर्ष, कोमाराम भीम की लड़ाई, 1857 में तुर्रेबाज खान की लड़ाई हैदराबाद शहर के कोटी में ब्रिटिश रेजिडेंट कमिश्नर के घर पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए थी. 


हैदराबाद में आते थे ये राज्य 
गौरतलब है कि निजाम के शासन में हैदराबाद राज्य में आज का पूरा तेलंगाना, महाराष्ट्र में मराठवाड़ा क्षेत्र जिसमें औरंगाबाद, बीड, हिंगोली, जालना, लातूर, नांदेड़, उस्मानाबाद, परभणी के साथ आज के कर्नाटक के कलबुर्गी, बेल्लारी, रायचूर, यादगिर, कोप्पल, विजयनगर और बीदर जिले शामिल थे. यही वजह महाराष्ट्र और कर्नाटक की राज्य सरकारें आधिकारिक तौर पर 17 सितंबर को मुक्ति दिवस के रूप में मनाती हैं.


बीजेपी की तेलंगाना में पैर जमाने की कोशिश
दरअसल, बीजेपी तेलंगाना में अपने पैर जमाने की रणनीति पर काम कर रही है. इसी रणनीति के तहत माना जा रहा है कि बीजेपी की केंद्र सरकार हैदराबद की विस्तृत योजना पर तैयार कर रही है. वह दिन जब हैदराबाद की रियासत भारतीय संघ का हिस्सा बन गई, इसको 'हैदराबाद मुक्ति दिवस' के रूप में मनाया जाता है. 


33,000 बूथों पर तिरंगा फहराने का फैसला
वहीं इस कार्यक्रम के अंतर्गत बीजेपी ने पूरे तेलंगाना में लगभग 33,000 बूथों पर तिरंगा फहराने का फैसला किया है. इसके साथ ही पार्टी ने तेलंगाना में एक बड़ी रैली की भी योजना बनाई गई है, जिसे गृह मंत्री अमित शाह संबोधित करने वाले हैं. बता दें कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बाद अमित शाह की यह पहली बड़ी जनसभा होगी. वहीं मीडिया रिपोर्टस् के मुताबिक इस रैली में बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा के भी शामिल हो सकते हैं. 


कार्यक्रम के बहाने सीएम पर निशाना
भारतीय जनता पार्टी की तेलंगाना इकाई के अध्यक्ष बंडी संजय कुमार ने शनिवार को कहा था कि राज्य सरकार को आधिकारिक तौर पर 17 सितंबर को 'तेलंगाना मुक्ति दिवस' मनाना चाहिए. लोकसभा के सदस्य बंडी संजय कुमार ने एक बयान में कहा कि ऑल इंडिया मजलिस-ए- इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के डर से मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव तेलंगाना मुक्ति दिवस नहीं मनाना चाहते. कुमार ने दावा किया कि सीएम के. चंद्रशेखर राव आधिकारिक तौर पर इस दिवस को नहीं मनाकर उनका अपमान कर रहे हैं, जिन्होंने मुक्ति के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया. उन्होंने कहा कि बीजेपी ही एकमात्र ऐसी पार्टी है, जो इसके लिए लड़ रही है.


10 सितंबर को दिल्ली में कार्यक्रम 
इसके साथ ही तेलंगाना इकाई के बीजेपी नेता इस कार्यक्रम को लेकर तैयारियों में जुटे हुए हैं. यही वजह है कि केंद्र सरकार के द्वारा आयोजित इस एक साल तक चलने वाले कार्यक्रम को राज्य के विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है. जानकारी के मुताबिक इस समारोह के हिस्से के रूप में, हैदराबाद के भारत के में विलय की कहानी पर आधारित एक झांकी और एक प्रदर्शनी का आयोजन 10 सितंबर को दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में किया जाएगा.


विधानसभा और लोकसभा चुनाव पर नजर
स्वतंत्र भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने हैदराबाद जो उस समय की सबसे बड़ी और सबसे अमीर रियासत थी को भारतीय संघ में विलय करने की रणनीति तैयार की थी. तय रणनीति के तहत 13 सितंबर 1948 को, भारतीय सेना ने हैदराबाद की ओर कूच किया और चार दिनों की लड़ाई के बाद, हैदराबाद के निजाम ने आखिरकार आत्मसमर्पण कर दिया. भारत के साथ हैदराबाद के एकीकरण की कहानी को फिर से जीवंत करके, बीजेपी तेलंगाना में विधानसभा और लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक बढ़त हासिल करना चाहती है.